दंभ का दमन होता चमचमाती चमक में आंखें खोता रावण हो या ध्रतराष्ट्र फिर है रोता जात, जनम, जनेऊ से नहीं कोई बामन होता वही है बस बामन जिसका साफ़ हो अंतर्मन चाहे बुद्ध हो या हो कबीर निशाना हो सधा तभी लगेगा तीर राम ने खाए शबरी के जूठे बेर उन्हें न था कभी भी जात-जनम से वैर कृष्ण ने गाये रण में क्षत्रीय हित गान शीतल शोणित खौल उठा, उठ गये तीर – कमान प्यार किए बिना कोई नहीं है उत्कर्ष ये ही ले जाता है फर्श से उठाकर अर्श अपने पात्र आप हो, अपने मात्र आप हो, बाकी है जंजाल आप ही हो अपने लिए एकमात्र झुंझाल जैसा विषय से वास्ता वैसा आ जायेगा रास्ता !