इंजीनियर गोलू

एक गांव में एक गरीब परिवार रहता था। परिवार में तीन सदस्य थे गोलू , उसकी माँ शारदा और उसके पिता रामानुज। रामानुज एक किसान थे और उतना ही कमा पाते थे जितने में वे अपने परिवार को दो वक्त की रोटी दे सके। गोलू गांव के एक छोटे से स्कूल में पढ़ता था, जिसमें नि:शुल्क शिक्षा दी जाती थी। काफी परेशानियों के बाद भी उसने कभी अपने पिता से शिकायत नहीं की। गोलू अपने छोटे से घर में भी बहुत खुश था। उसके घर के बगल में एक और आलीशान घर था, जिसमें एक वृद्ध जोड़ी रहती थी। गोलू उन्हें अपने दादा-दादी की तरह ही मानता था। एक दिन उन दोनों के घर में उनका पोता, जो शहर में अपने माता-पिता के साथ रहता था, छुट्टियों में गांव आया। उसका नाम प्रशांत था। वह शहर के एक नामी स्कूल में पढ़ता था। प्रशांत और गोलू की बहुत अच्छी दोस्ती हो गयी और वह दोनों ढेर सारा समय साथ में बिताने लगे। जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे गोलू के मन में यह भाव आने लगा कि प्रशांत उससे ज़्यादा अच्छे और मंहगे स्कूल में पढ़ रहा है तो उसे और भी अच्छी शिक्षा मिल रही होगी। यह बात उसने अपने पिता और माता से भी की, जिसके उत्तर में उन्होंने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन कितने महंगे स्कूल में पढ़ता है, क्यों कि सभी स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ यही शिक्षा मिलती है कि हमें सबकी सहायता करनी चाहिए और सबके साथ मिल-जुल कर प्रेम से रहना चाहिए।

गोलू उस वक़्त यह बात समझ न पाया। पर, एक दिन वह जब अपने मित्र प्रशांत के साथ नदी किनारे खेल रहा था, उन्हें तभी एक बिल्ली पानी में डूबती हुई दिखी। गोलू और प्रशांत दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा और तुरंत बिना सोचे पानी में छलांग मारकर दोनों ने उस बिल्ली को बचा लिया। इस घटना के बाद गोलू को अपने पिता की बातें याद आयी और उसने यह फैसला किया कि अब से वह कभी भी अपनी तुलना किसी और से नहीं करेगा और यह कभी नहीं सोचेगा की उसे औरों की तुलना में कम सुविधा मिलती है।

इसी सोंच के साथ उसने मन लगाकर आगे की पढ़ाई की। बाद में उसे स्कॉलरशिप भी मिलने लगी, जिसकी वजह से उसने शहर जाकर बाकी की पढ़ाई पूरी की। इस तरह अपनी निश्छल भावनाओं और कड़ी मेहनत की बदौलत वह एक सफल इंजीनियर बना।

सुनिष्का त्रिपाठी, कक्षा VIII,
रायन इंटरनेशनल स्कूल, मुंबई