शिव सर्वत्र हैं, शिव सबके हैं, शिव समाधान हैं, सभी समस्याओं के समाधिस्थ होने का नाम शिव है। जहाँ पीड़ा और आनन्द एकीकृत हो जाते हैं - वहाँ शिव हैं। शिव कोई संज्ञा नहीं है, बनावट का विलीन होना ही जीवन में शिव का प्रवेश है। घटना का घटित होना ही शिव है। शिव असीम हैं, शिव तरल हैं, शिव को प्राप्त करने का मार्ग सहज है। सृष्टि के समस्त भावों को जहाँ आश्रय मिले, वहीं शिव हैं। शिव द्वार रहित, मार्ग रहित हैं। शिव शक्ति भी हैं, शिव से शक्ति को विलग करने से शिव शव हैं, शमशान में भी शिव हैं। हमारे पुराणों में वर्णित है कि --
"अलंकारम् विष्णु: प्रियः । जलधारा शिवम् प्रियः ।।"
शिव जी सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हैं, पूरा ब्रह्मांड ही उनका शरीर है, तो उनपर जलधारा तो प्रकृति ही कर सकती है। इस कारण श्रावण में बादल बरसते हैं, और सम्पूर्ण सृष्टि का अभिषेक होता है। यह विश्व ऊर्जा का एक खेल मात्र है --"सकारात्मक ऊर्जा और नकारात्मक ऊर्जा" शिव नकारात्मक ऊर्जा का संहार करके सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करते हैं। शिव विश्व की आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक हैं। उनका तीसरा नेत्र ज्ञान और विवेक का प्रतीक है।
श्रावण का ज्योतिष शास्त्र में भी बहुत महत्व है - श्रावण मास के आरम्भ में सूर्य अपनी राशि परिवर्तन करते हैं। सूर्य का गोचर सभी 12 राशियों को प्रभावित करता है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस वर्ष श्रावण के प्रथम सोमवार को विभिन्न शुभ संयोग बन रहे हैं -- "प्रीति संयोग" - इस योग के स्वामी स्वयं श्री हरि हैं। पुराणों में इसे अत्यंत मंगलकारी बतलाया गया है। "आयुष्मान योग" - भारतीय संस्कृति में लंबी आयु का आशीर्वाद हेतु - "आयुष्मान भव" कहा जाता है। "नवम् पंचम राजयोग" - इस योग में शिव पूजन करने से कुंडली में मौजूद सभी ग्रह दोष दूर हो जाते हैं। "शश योग" - इस योग के स्वामी शनिदेव हैं, जो भगवान शिव के शिष्य हैं। शश योग के प्रभाव से व्यक्ति समाज में अपनी अलग पहचान बनाता है। "सर्वार्द्ध सिद्धि योग" - इसका नाम ही इसका परिचायक है, यह योग सभी कार्यों को सिद्ध करता है। श्रावण पूर्णिमा को राखी पूर्णिमा भी कहा जाता है।
श्रावण के महीने का प्रकृति से भी गहरा सम्बन्ध है।