इसके बाद वह दो-तीन दिन बाद आई। बताया कि बच्चों को स्कूल छोड़ने और लाने के लिए एक रिक्शा लगा रखा है, वह भी साथ ही आती जाती है। आज उसने रिक्शा आधे घंटे पहले बुला लिया था क्योंकि उसे मुझसे मिलना था। उसने बताया कि अगले दिन पतिदेव ने फिर पूछा यह सब क्या चल रहा है तो मैंने कहा कि ठाकुर जी की पूजा कर रही हूं दिन में व्यवधान रहते हैं कंसंट्रेशन नहीं बन पाती है इसलिए सुबह करती हूं शांति के साथ।
मेरे उत्तर से वे संतुष्ट होते तो नहीं दिखे किंतु कुछ और बोले नहीं। उसी दिन शाम को उन्हें खाना देने के बाद बैठे-बैठे मुझे नींद आने लगी तो उन्होंने कहा कि तुम्हें बहुत कस के नींद लगी है जाओ जाकर सो जाओ। मैं तुरंत जाकर सो गई। अगले दिन सुबह उन्होंने पूछा कि आजकल कितने बजे उठना हो रहा है तो बता दिया कि सुबह ढाई तीन बजे ! तो वो बोले कि इतनी सुबह ? रात में सोते सोते ग्यारह तो बज ही जाते हैं। दिन में कुछ समय मिल पाता है आराम करने का ? तो मैंने अपनी पूरी दिनचर्या बता दी जिसमें सोना तो दूर, कमर सीधी करने की भी कोई गुंजाइश नहीं रहती है।
हूं! बोल कर वह चुप तो हो गए लेकिन साफ दिख रहा था कि मेरी ओर से वह चिंतित हैं। कल सुबह तो वह उठे और बड़ी आत्मीयता के साथ पूछे कि हो गई पूजा ! मैंने कहा कि हां जी हो गई। फिर उन्होंने उसी आत्मीयता से पूछा कि इतनी तपस्या का प्रयोजन ? मैंने बिना देर किए बता दिया कि आपकी शराब छुड़वानी है।
इस पर उन्होंने उपहास की मुद्रा में कहा कि तुम्हें लगता है कि तुम्हारे ऐसा करने से मेरी शराब छूट जाएगी ? तो मैं कह दिया कि ठाकुर जी की कृपा से ही मैंने आपको पाया है। उनकी कृपा होगी तो आपकी शराब भी छूट जाएगी।