रिपोर्टिंग

 

पं. राकेश राज मिश्र “जिज्ञासु” कानपुर

इस संसार में कार्यकुशलता होना ही पर्याप्त नहीं है। व्यवहार कुशलता भी होनी चाहिए अन्यथा पग पग पर अपमानित होने की स्थितियां उत्पन्न होती रहती हैं। बात सन् 2012 की रही होगी। मैं उस समय एक केमिकल कंपनी में चीफ मार्केटिंग मैनेजर (टेक्सटाइल्स) के पद पर कार्यरत था। मुझे बैठने के लिए बॉस के बगल वाला कमरा मिला हुआ था। बाकी स्टाफ के लिए हॉल में कई सारे केबिन बने हुए थे। ऑफिस में स्टेनोग्राफर के पद पर एक पाण्डेय जी की नियुक्ति अभी हाल में ही हुई थी। उनकी विशेषता उनकी फास्ट टाइपिंग स्पीड थी। क्या हिंदी, क्या अंग्रेजी, दोनों में ही उन्हें महारत हासिल थी। उन्हें इस बात का अभिमान भी था जिसे वे अपने विनम्र व्यवहार से ढकने का प्रयास करते थे।

ऑफिशियल कॉरेस्पॉन्डेंस में अधिकांश लेटर्स पेमेंट और सी फॉर्म रिमाइंडर और ऑर्डर रिसीविंग कन्फर्मेशन होती है। जिसे वे प्रचलित फॉर्मेट में टाइप कर देते थे, जोकि बॉस को स्वीकार्य थे। बॉस की अनुपस्थिति में ऐसे पत्र मेरी हस्ताक्षर से जाते थे। एक दिन ऐसे ही बॉस के बाहर होने पर पांडेय जी ऐसे लेटर्स मेरे हस्ताक्षर के लिए मेरे पास लेकर आए। मेरा उनका यह पहला आमना सामना था।

लेटर्स की भाषाशैली मुझे सही नहीं लगी। एक लेटर जिसमें ऑर्डर कन्फर्मेशन के साथ पेमेंट रिमाइंडर था, बड़े रूखेपन से लिखा था कि पेमेंट भेजो नहीं तो माल नहीं भेजेंगे। सभी लेटर्स में ऐसा ही रूखापन था। मैंने कहा ठीक है ! आप इन्हें मेरे पास छोड़ दीजिए और इनकी सॉफ्ट कॉपी मुझे मेल कर दीजिए। वे चले गए और सारे लेटर्स मुझे मेल कर दिए। एक आधे घंटे के भीतर मैने सारे अपने हिसाब से एडिट करके उन्हें वापस मेल कर दिए।

थोड़ी ही देर में उनके प्रिंटआउट के साथ वे मेरे सामने खड़े थे। बड़े आग्रहपूर्वक बोले, सर मैं बैठ सकता हूं। मैंने कहा श्योर ! प्लीज ! कहते हुए कुर्सी की तरफ इशारा किया। बैठते ही बोले सर ! आपकी ड्राफ्टिंग गजब की है ! इतने कम शब्दों में, इतनी पोलाइटली आप ने सब कुछ कह दिया ! मुझे लगा कि मुझे यह कला आपसे सीखनी चाहिए ! मुझे सिखाएंगे सर ? मैंने कह दिया आपका स्वागत है ! आप लेटर्स ड्राफ्ट करके ऐसे ही मेल कर दिया कीजिए, मैं एडिट कर दिया करूंगा।

लेटर्स में साइन करने के साथ ही मैं उनसे बात करता रहा कि लेटर हम किसी को तभी भेजते हैं जब आमने सामने का संवाद संभव नहीं होता है। आप लेटर्स को संवाद का विकल्प समझिए और संवाद में जिस प्रकार इन बातों का विचार करना होता है कि संवाद हम किससे कर रहे हैं ! क्या कहना चाहते हैं ! और कहने का सर्वोत्तम तरीका क्या होगा ! कम से कम शब्दों में अपनी बात कैसे समझा सकते हैं, उसी के अनुसार हम शब्द स्वर और शैली का प्रयोग करते हैं। लेटर्स में भी इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

लेटर्स साइन करके मैंने उन्हें दे दिए। वे बड़ी कृतज्ञता के साथ थैंक्यू कह कर चले गए। अगले ही दिन से पाण्डेय जी के लेटर्स मेरे द्वारा एडिट होकर जाने लगे। आरंभ में तो भाषा ही बदलनी पड़ती थी पर धीरे धीरे उन्होंने मेरी लेखन शैली अपना ली तो संशोधन कम होने लगे।

मेरा कमरा चूंकि बॉस के बगल में ही था सो ऊंचे स्वर में यदि कोई बातचीत हो तो मुझे पता लग जाता। किसी को डांट पड़ती तो स्वाभाविक जिज्ञासा होती कि आज किस की क्लास लगी। दोपहर में जब बॉस लंच पर जाते तो कोई न कोई बता ही देता। एक दिन ऐसे ही पाण्डेय जी की क्लास लगी, जिसका पता चपरासी द्वारा लगा जो लगभग उसी समय कुछ पेपर्स लेकर मेरे पास आया।

बॉस जब लंच पर चले गए तो मैं उठकर पांडेय जी के केबिन में गया। वो बहुत दुखी थे मेरे पूछने पर बोले कि सर मेरा दिन ही खराब है आज ! सारे लेटर्स हो गए थे। बस एक ही रह गया था ! जाते ही बॉस ने उसी के बारे में पूंछ लिया तो मैंने बताया कि ये तो अभी नहीं हो पाया सर ! सुनते ही वो बरस पड़े। “आप करते क्या रहते हैं दिनभर ! जो भी काम पूछो, नहीं हुआ !” जितना मैं सफाई देने का प्रयास करूं उतना ही उनकी आवाज ऊंची होती गई। तो मैं चुप हो गया ! इस पर वो और गुस्सा हो गए और सारे पेयर्स मेरे मुंह पर मार कर मुझे चले जाने को कहा तो मैं चला आया। समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं !

मैने समझाया, नौकरी कर रहे हैं तो ऐसी स्थितियों का सामना तो कभी भी करना पड़ सकता है। विचारणीय ये है कि ऐसा क्या किया जा सकता है कि दोबारा ऐसा न हो। पाण्डेय जी ने कहा कि वो उसी काम के बारे में पूछें जो नहीं हो पाया हो, इसे कैसे रोका जा सकता है ! मैंने कहा कि अपनी रिपोर्टिंग में सुधार लाकर ! उन्होंने पूछा कि क्या आपको ऐसा लगता है कि ऐसा हो सकता है ? मैंने कहा कि बिल्कुल ! शत प्रतिशत ! तो वो बोले कि सबसे पहले तो आप ये बताइए कि मैं ऐसा क्या कर सकता था जो आज की स्थिति न आती ?

मैंने कहा कि पहले आप बताएं कि आज हुआ क्या और कैसे हुआ। उन्होंने बताया कि जैसे ही उनका संदेश मिला, मैंने सारे कागज समेटे और उनके रूम में पहुंचा तो वो फोन पर व्यस्त थे। मैं प्रतीक्षा करने लगा कि वो मुखातिब हों तो जो जो वो पूछते जाएं मैं उनके सामने प्रस्तुत करता जाऊं। अब मेरी बदनसीबी कि उन्होंने सबसे पहले उसी लेटर के बारे में पूछा जो नहीं हो पाया था। मुझे कहना पड़ा कि सर ये तो अभी नहीं हो पाया। बस वो बरस पड़े।

मैंने कहा कि आप कल्पना करें कि आप जाते ही जो लेटर्स आप बना चुके थे, हाथ में लेकर खड़े न रहते, उनके सामने टेबल पर रख देते। तो फोन से फ्री होते ही वो क्या करते ? पांडे जी बोले कि निस्संदेह वे लेटर्स देखने लगते। लेकिन जब वे उस लेटर के बारे में पूछते तब तो बताना ही पड़ता न ?

मैंने कहा, बिल्कुल बताना पड़ता ! पर आप ऐसे भी तो बता सकते थे कि “सर ! मैं वही कर रहा था ! आपका बुलावा आया तो मैं वैसे ही छोड़कर आ गया !” आप विचार करें, क्या तब भी बॉस ऐसे ही गुस्सा करते ? पांडे जी मुस्कुराते हुए बोले, “नहीं सर ! बिल्कुल नहीं ! वो यही कहते कि ठीक है ! कीजिए जाकर और तुरंत मुझे दीजिए!”

पाण्डेय जी के चेहरे से सारा तनाव, डांट खाने का सारा विषाद जा चुका था। कृतज्ञता के साथ बोले कि सर, आपने तो मेरी सोच ही बदल दी ! इतने अच्छे से समझाया कि मेरा सारा दुख दूर हो गया। मैं तो सारा दोष आज के दिन को और अपनी किस्मत को दे रहा था पर वास्तव में दोष मेरे तरीके में था। और मेरी समझ में आ गया कि मुझे अपना तरीका बदलने की जरूरत है। मैं बदलूंगा सर ! आगे से वैसा ही करूंगा जैसा आप ने बताया है। थैंक्यू सर ! मैं भी “आपका स्वागत है” कह कर वहां से चला आया।

अगले दिन बॉस के लंच पे जाते ही पाण्डेय जी का फोन इंटरकॉम पर आया। पूछने लगे कि सर बिजी तो नहीं है ! मैंने कहा नहीं ! बताएं ! बोले कुछ बात करना चाहता था आपसे ! मैंने कहा आ जाइए ! वो आए तो मेरी तरफ आकर मेरे पैर छुए और हाथ जोड़कर खड़े हो गए। मैंने उन्हें स्नेहपूर्वक बैठने के लिए कहा।

जब वो बैठ गए तो मैने प्रश्नवाचक दृष्टि से उनकी ओर देखा। वे बोले कि सर आपकी कल की सलाह ने मुझे अंदर तक खलबला के रख दिया। मैं स्वयं से ये प्रश्न करता रहा कि इतनी छोटी सी बात अब तक मेरे दिमाग में क्यों नहीं आई। इसके अभाव में बहुत अपमानित होता रहा हूं अबतक!

मैंने कहा कि इसका एकमात्र कारण है कि आपने अपनी कार्य कुशलता पर तो पूरा ध्यान दिया पर व्यावहारिक कौशल की ओर ध्यान ही नहीं दिया कभी। नौकरी करनी हो अथवा स्वयं का व्यवसाय, व्यावहारिक पक्ष दुर्बल हो तो सफलता संदिग्ध हो जाती है। नौकरी में रिपोर्टिंग बहुत महत्वपूर्ण होती है। कार्य कुशलता में कमी भी हो तो कुशल रिपोर्टिंग से सम्हाला जा सकता है। और ये आप देख ही चुके हैं कि रिपोर्टिंग कौशल नहीं है तो कार्य कुशलता अधूरी है।

बोले, सर ! आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। अपनी दुर्बलता से मैं भली भांति परिचित हूं और अब तक इसे स्वीकार कर रखा था और अपनी तकदीर को दोष देता था। कल आपने समझाया तो लगा कि इसे सुधारा जा सकता है। आपके पास मैं इसी उद्देश्य से आया हूं कि मेरा मार्गदर्शन करें। मैंने कहा कि ध्यान रखें, कभी भी बॉस को नकारात्मक उत्तर नहीं देना है। प्रयास तो ये होना चाहिए कि उन्हें प्रश्न करने का अवसर ही न मिलने पाए। जाते ही पेपर्स उनके सामने प्रस्तुत कर दें। जो नहीं हो पाया है, उसके बारे में पूछने पर यही कहना है कि सर अभी यही कर रहा था ! बस दो मिनट में देता हूं।

एक बात और ! थोड़ा ध्यान इस बात पर भी दिया कीजिए कि बॉस का ध्यान किन बातों पर अधिक रहता है ! उन विषयों पर आप अपने को अपडेट रखा कीजिए। इस बात पर हमेशा ध्यान रखा कीजिए कि वो आप से क्या क्या पूछ सकते हैं। उसका उत्तर यदि आप ने तत्काल दे दिया तो आप बॉस के प्रिय हो जाएंगे।

पाण्डेय जी कुछ देर शांत बैठे रहे फिर बोले, ठीक है सर ! आगे से मैं ध्यान रखूंगा, सर ! कल घर पर आपके विषय में मिसेज को बताया तो वो बहुत प्रसन्न हुईं और कहने लगीं कि आप जैसे मार्गदर्शक बड़े सौभाग्य से मिलते हैं। मैं मुस्कुरा दिया ! वापस जाते समय वे पुनः मेरे पैर छूने को बढ़े तो मैंने मना कर दिया कि ऑफिस में इस प्रकार से अभिवादन उचित नहीं। मन में सम्मान है तो वह व्यवहार से प्रकट हो जाता है। उन्होंने श्रद्धापूर्वक हाथ जोड़े और बोले ठीक है सर !

काम के सिलसिले में मेरा बाहर जाना होता रहता था। कोई भी ट्रिप चार दिन से कम नहीं होती थी। इस बार लौटा तो लगा कि पाण्डेय जी ने ज्यादा ही मिस किया। बॉस के जाते ही मेरे कमरे में आए और आते ही बोले। सर, आप रहते हैं तो मैं स्वयं को बहुत सुरक्षित महसूस करता हूं। आप नहीं रहे तो मैं बड़ा अकेला पड़ गया।

मैंने पूछा कि कोई खास बात हुई क्या ! तो बोले कि सर, कुछ भी उनके हिसाब से नहीं हो पाता है तो बॉस पेपर्स मेरे मुंह पर फेंक देते हैं ! ऐसा ही आपके जाने के अगले दिन हुआ तो सोचा कि आगे से कुछ करने के पहले उनसे एक बार पूछ लिया करूंगा। अब जब मैं पूछने गया तो वे फिर दहाड़ उठे कि अब ये भी मुझे बताना है कि कैसे लिखना है, तो फिर आपको क्यों रखा है ? आपसे नहीं होता है तो छोड़ दीजिए ! जाइए ! मैं कोई और रख लूंगा।

मैंने कहा कि बस इतनी सी बात ! अब मेरा रिपोर्टिंग का अगला सबक याद कर लीजिए कि बॉस के सामने कभी भी समस्या लेकर न जाएं ! जब भी जाएं उसके संभावित समाधान साथ में लेकर जाएं ! फिर पूछें कि सर, ऐसे ठीक रहेगा ? यदि वह सही न हुआ तो बॉस उसमें संशोधन करके बता देंगे, डांटेंगे नहीं ! पाण्डेय जी ने कुछ समय लिया मेरी बात को समझने में। फिर बोले कि सर आपके पास हर समस्या का बड़ा सटीक और आसान समाधान रहता है। मेरा सौभाग्य है कि आपके साथ काम करने का अवसर मिला है। आपकी कृपा से मेरी कार्य शैली में गुणात्मक सुधार हो रहा है जो जीवन भर मेरे काम आएगा। मैं मुस्कुरा दिया।

पाण्डेय जी की कार्य शैली में बदलाव ने उन्हें बॉस के कोप भाजन से प्रिय भाजन की श्रेणी में ला दिया था। इसका स्पष्ट प्रभाव उनके और व्यवहार से झलकने लगा था। बॉस के उनसे आत्मीय व्यवहार के कारण उनके व्यवहार में कुछ अकड़ सी आ गई थी।

वर्ष 2013-14 का राष्ट्रीय बजट सदन में गुरुवार 28 फरवरी को पेश किया गया। इस बार कुछ केमिकल्स पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी गई थी। जिससे हमारे काफी प्रोडक्ट्स की कॉस्टिंग बढ़ गई और प्राइस लिस्ट रिवाइज करनी पड़ी। 

अगले दो दिन इसी में लग गए। मेरी रविवार रात की पानीपत जाने की टिकट थी सो शनिवार शाम को एक सर्कुलर लेटर ड्राफ्ट करके पार्टीज की लिस्ट पाण्डेय जी को मेल कर दी और उनसे बताया कि मुझे रविवार रात पानीपत के लिए निकलना है। प्राइसेज रिवाइज हो गई हैं इसकी इन्फॉर्मेशन सभी कस्टमर्स को भेजनी है। मैंने कवर लेटर और पार्टीज के नाम उन्हें मेल कर दी है। उन्हें प्राइस लिस्ट अकाउंट्स से लेकर सबको भेजनी है। उन्होंने कहा ठीक है सर !

सोमवार शाम पाण्डेय जी को फोन करके पूछा कि हमारी सारी पार्टीज को लेटर्स चले गए तो बोले सर, कुछ रह गए हैं। कल सारे चले जाएंगे। मैं समझ गया कि आज नहीं भेजे गए। अगले दिन शाम को पूछा तो फिर वही जवाब ! तो मैंने नाराज़गी व्यक्त की तो बोले सर ! बॉस का कुछ अर्जेंट काम मिल गया। आप समझ सकते हैं मेरी स्थिति। मैंने कहा कि वो लेटर्स भी बॉस का ही काम है। मेरे पर्सनल लेटर्स नहीं हैं। तो वो बोले सर, कल मैं सबसे पहले आपका ही काम करूंगा। मैंने कहा ठीक है ! अब मैं आपको और रिमाइंड नहीं करूंगा। यदि न हो सके तो मुझे बता अवश्य दीजियेगा। उन्होंने कहा ठीक है सर !

मंगलवार को उनका फोन नहीं आया तो मैंने मान लिया कि काम हो गया। बुधवार को मेरा पानीपत से लुधियाना जाने का कार्यक्रम बन गया था। शुक्रवार सुबह ऑफिस पहुंचा तो सबसे पहले पाण्डेय जी से पूछा कि हमारे लेटर्स सारे चले गए, तो उन्होंने बताया कि सर नहीं जा पाए ! इतना लोड है काम का कि समय ही नहीं मिला ! मैंने पूछा कि आप को मुझे यह बताने का भी समय नहीं मिला कि नहीं हो पाए ! तो उनके पास कोई उत्तर नहीं था।

मुझे लगा कि बॉस को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि टेक्सटाइल की पार्टीज को रिवाइज्ड प्राइसेज अभी तक नहीं भेजी गई हैं। अन्यथा इसका दोष मेरे मत्थे मढ़ा जाएगा। सो मैंने इसकी विस्तृत जानकारी उन्हें दी जाकर। सुनते ही बॉस का पारा हाई हो गया उन्होंने तुरंत पाण्डेय जी बुलाया और कायदे से उनकी क्लास लगाई। उनकी आवाज इतनी ऊंची हो गई थी कि पूरे ऑफिस को पता चल गया कि आज पाण्डेय जी की शामत आई है।

पाण्डेय जी वास्तव में मेरे लेटर्स की अहमियत समझ ही नहीं पाए थे, अन्यथा वो इतनी लापरवाही नहीं बरतते ! जब उन्हें फटकार पड़ी तब शायद समझ पाए हों। किंतु उन्हें मुझसे बड़ी शिकायत थी कि मैंने उनकी शिकायत करके बॉस से डांट पड़वाई। उन्हें मुझसे ऐसे व्यवहार की लेशमात्र भी उम्मीद नहीं थी।

अगले दिन पाण्डेय जी के बगल वाले केबिन के मिश्रा जी जो कि एक्सपोर्ट की डॉक्यूमेंटेशन देखते थे, मुझसे मिले और बताया कि पाण्डेय जी मेरी ओर से बहुत दुखी हैं। अब तक वो आश्वस्त थे कि इस ऑफिस में मैं उनका सर्व प्रकार रक्षक हूं, कैसी भी विपदा आवे मैं उन्हें बचा लूंगा। उनका ये विश्वास मैने तोड़ कर उन्हें बहुत ठेस पहुंचाई है।

सबसे विशेष बात तो ये कि पाण्डेय जी को अपनी पत्नी के समक्ष लज्जित होना पड़ा क्योंकि उन्होंने उन्हें आरंभ से ही सावधान रहने को कहा था कि वे मुझ पर इतना विश्वास न करें। पाण्डेय जी को इस बात का कष्ट अधिक था कि उनकी पत्नी उनसे अधिक समझदार है, जो मुझसे मिले बिना भी समझ गई और वो इतने निकट रह कर भी मुझे नहीं समझ पाए।

मैंने कहा कि निस्संदेह उनकी पत्नी अधिक समझदार हैं। पाण्डेय जी ने मुझे समझने में वास्तव में भूल की है। मैने जितनी भी उनकी सहायता की है वह उनकी कार्य शैली में सुधार लाने की दृष्टि से की है। न कि उनके दोष छिपाने में। उनकी लापरवाही में भी उनकी सहायता करूंगा उनकी मुझसे ऐसी अपेक्षा गलत थी। मेरे लिए काम में लापरवाही अक्षम्य है चाहे वह किसी के भी द्वारा हो।

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