पारिवारिक और सामाजिक संबंधों की प्रगाढ़ता का पर्व : रक्षाबंधन

भारतीय संस्कृति की अनूठी परम्परा में रक्षाबंधन का पर्व विश्वास, समर्पण, निष्ठा व संकल्प का पर्व है। रक्षा बंधन का आशय सुरक्षा, दायित्व बोध, अपनत्व तक सीमित नहीं है अपितु आपत्ति आने पर रक्षा के लिए अथवा आयु आरोग्य की वृद्धि के लिये भी रक्षा-सूत्र बांधा जाता है। भगवान श्री कृष्ण श्रीमद्भगवतगीता में कहते हैं कि-

मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय। / मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव।।7.7।।

डॉ. ज्योत्स्ना सिंह राजावत, ग्वालियर

हे धनंजय ! मुझसे भिन्न दूसरा कोई भी परम कारण नहीं है। यह सम्पूर्ण जगत सूत्र में मणियों के सदृश मुझमें ही गुँथा हुआ है, ‘सूत्र’ अर्थात अविच्छिन्न संबंध। सबको एक साथ जोड़ने वाला बन्धन, प्रेम, स्नेह, विश्वास रूपी बिखरे हुए मोतियों को एक रक्षासूत्र में पिरोकर, रक्षा पर्व एकत्व भाव स्थापित करता है। आपसी सद्भाव से भाई बहन के बन्धन को जोड़ता है।

रक्षाबंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। रक्षाबंधन के दिन शुभ मुहूर्त में बहन भाई को रोली-कुमकुम से तिलक लगाकर, मिठाई खिलाती और अपनी भावनाओं के अनुरूप राखी बांधती है। यह राखी रंगीन कलावा, रेशमी रंगीन धागा, अथवा सोने या चांदी से बनी हुई राखी होती है। राखी कैसी है यह महत्वपूर्ण नहीं है, अपितु रक्षासूत्र को कलाई में बांधने का महत्व है। रक्षासूत्र बांधने के लिए रक्त संबंध हो यह आवश्यक नहीं है, आस-पड़ोस दूर दराज की एवं मुंह बोली बहनों-भाइयों में भी यह त्योहार बड़ी आत्मीयता के साथ निभाया जाता है। मधुर संबंध बनाने की भावना से राखी बांधने का पुराना चलन है। सरहद पर तैनात फौजी भाइयों की रक्षा के लिए प्रतिवर्ष लाखों बहनें राखियां भेजती हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न संस्थाओं द्वारा एवं नई दुनिया आदि समाचार-पत्रों के अभियान के तहत छोटे बड़े सभी बच्चे एवं बहनें सुन्दर-सुन्दर राखी बनाकर संदेश सहित सरहद पर भेजते हैं, कहीं किसी भाई की कोई कलाई सूनी न रह जाए। यह राखी (रक्षासूत्र) भावनात्मक एकता का प्रतीक है। इसीलिए इसे पवित्र माना जाता है। यह एक ऐसा पावन पर्व है जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को पूरा आदर और मान-सम्मान देता है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग ढंग से रक्षासूत्र पर्व को बड़े विधि विधान से मनाया जाता है। आज बदलाव के इस डिजिटल युग में राखी का स्वरूप और तरीके दोनों बदल गये हैं, पहले बहुत बड़ी बड़ी फोम की चमकती राखियों से बाजार सज जाते थे, अब छोटी-छोटी कलावे में पिरोई गई पसंदीदा राखियां ऑनलाइन घर बैठे मिल जाती हैं। पहले सावन में भाई बहनों को विदाई कराने जाते थे, बहनों के आ जाने से हर घर में रौनक आ जाती थी, परिवार की सभी बहनें मिलकर एक साथ सारे भाइयों को राखी बांधती थीं। शादी के बाद बेटियों का पहला सावन मायके में ही हो, यह बहुत महत्व रखता था, किन्हीं कारणों से बहनें यदि मायके नहीं आ पाती हैं तो भाई चले जाते थे, बहन के दूर होने पर डॉक विभाग के सहयोग से राखी पहुंच जाती थी, लेकिन अब डिजिटल युग में राखी के त्योहार का स्वरूप काफी परिवर्तित हो गया है डिजिटल संदेशों के माध्यम से वीडियो कॉल से दूर दराज बैठे भाई बहन अपने-अपने संदेश दे देते हैं। साथ ही उपहार भी विभिन्न एप के सहयोग से पहुंचा दिए जाते हैं। समय के साथ-साथ स्थितियां बदल रहीं हैं, उसी तरह मनोभावों में भी बदलाव आया है।

भारतीय सनातन परम्परा में किसी भी कर्मकांड व अनुष्ठान की पूर्णाहुति बिना रक्षा सूत्र बांधे पूरी नहीं होती थी। धागे से संपादित होने वाले अनेक व्रत पूजन एवं संस्कार सम्मिलित हैं वट सावित्री पूजा, महालक्ष्मी पूजन, एवं उपनयन संस्कार, विवाह सहित विभिन्न मन्नतों में कच्चा सूत धागा बांधनें की परंपरा रही है। स्त्रियां वृक्षों को रक्षा सूत्र लपेटकर रोली, अक्षत, चंदन, धूप और दीप दिखाकर मनोकामना पूर्ण की मनौती मांगती हैं एवं पूजा अर्चना कर अपने पति के दीर्घायु होने की कामना भी करती हैं। आंवला नवमी तिथि पर आंवला के वृक्ष पर धागा लपेटने के पीछे मान्यता है कि इससे उनका परिवार धन धान्य से परिपूर्ण होगा। प्रकृति संरक्षण के लिए वृक्षों को भी राखी बांधने की परंपरा रही है जैसे तुलसी केला, वेल, आमला आदि।
इसी तरह भाइयों के लिए थाली में राखी रखकर रोली, कुमकुम, हल्दी, चावल, दीपक, मिष्ठान के साथ मस्तक पर टीका करके उसकी दाहिनी कलाई पर राखी बांधी जाती है। भाई बहन को उपहार स्वरूप सगुन देता है और बहन की रक्षा की प्रतिज्ञा लेता है। कहीं- कहीं परम्परा स्वरूप आज भी पुरोहित तथा आचार्य सुबह यजमानों के घर पहुंचकर उन्हें राखी बांधते हैं और बदले में धन वस्त्र और भोजन आदि दान दिया जाता है। प्रायः पूजा पाठ करने से पहले आचार्य यजमान को निम्न मंत्र के साथ रक्षा सूत्र लपेटकर बांध देते हैं, यह रक्षासूत्र साधारण नहीं होता है इसके पीछे महान उद्देश्य पौराणिक कथाएं एवं घटित होने वाली घटनाओं के संकेत रहते हैं, जो यजमान को साहस, शक्ति, बल एवं सफलता प्रदान करते हैं शुक्ल यजुर्वेद से- विभिन्न पूजा पाठी ग्रंथों में भी यह श्लोक वर्णित है -

ॐ येन बद्धो बलीराजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे माचल माचल ॥

- कर्मकाण्ड भास्कर पेज 13।

"आचार्य यजमान को सूत्र बांधता और यजमान को अक्षत देता, यजमान अक्षत को मुठ्ठी में भर कर बन्द कर लेता है तब आचार्य यजमान को सूत्र लपेटते हुए इस मंत्र को कहता है जिसका अर्थ है - जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न होना।)"
विभिन्न पुराणों में इस प्रसंग का विस्तृत विवरण दिया गया है, दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्गलोक का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुँचे। गुरु के मना करने पर भी, बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर किया गया था।
अन्य प्रसंग भागवत पुराण में वर्णित है कि जब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को प्रसन्न कर पाताल लोक में रोक लिया तब भगवान ने बलि को आश्वासन दिया मैं दिन-रात तुम्हारी और तुम्हारे अनुचरों की रक्षा करुंगा, जब लक्ष्मी जी को पता चला तब नारद मुनि के साथ लक्ष्मी जी पाताल लोक पहुंची और बलि को भाई बनाकर श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि पर राखी बांधी जिससे बलि ने प्रसन्न होकर प्रभु को वापस जाने की सहमति दे दी पर शर्त रखी की चार महीने हमारे साथ पाताल लोक में रहा करेंगे। तब से प्रभु के जाने पर देवशयनी एकादशी मनाई जाने लगी। लक्ष्मी जी द्वारा राखी बांधने पर रक्षाबंधन के पर्व का चलन हो गया --

‘रक्षिष्ये सर्वतोहं त्वां सानुगं सपरिच्छिदम्।
सदा सन्निहितं वीरं तत्र मां दृक्ष्यते भवान्॥’

- श्रीमद्भागवत,स्कन्ध 8,अध्याय 22,श्लोक33

इसी प्रकार श्री कृष्ण और द्रोपदी प्रसंग चीरहरण की कथा से भी यह पर्व जुड़ा हुआ है। मध्यप्रदेश उत्तरप्रदेश राजस्थान छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में रसोई की दीवार पर गेरू से श्रवण कुमार बनाकर खीर पूरी अथवा मिठाई से भोग लगाया जाता है और भाई को राखी बांधने से पहले श्रवण कुमार को राखी पहनाने की परंपरा बहुत पुरानी है, जो आज भी चल रही है। राखी पर्व के अनेक ऐतिहासिक प्रसंग भी जुड़े हुए हैं और काफी चर्चित हैं तथा बचपन से कहानियों में पढ़ते आये हैं। निष्कर्ष यही है कि भारतीय संस्कृति में सभी पर्वों का विशेष महत्व है और जो पर्व जिन तिथियों पर होते हैं उनकी कोई वजह होती है श्रावण मास शिव के अभिषेक से आरंभ होता है, हरियाली तीज, नाग पंचमी, हरियाली अमावस्या, रक्षाबंधन, कामिका एकादशी, पुत्रदा एकादशी, श्रावण पूर्णिमा आदि।

पूरे महीने भर हरी-भरी रिमझिम बूंदों के साथ हर पर्व उमंग और उत्साह के साथ होते रहे हैं, रक्षा बंधन के साथ भुजरियों का पर्व हमारे पारिवारिक और सामाजिक संबंधों की प्रगाढ़ता का पर्व है। प्रकृति प्रेम और खुशहाली बनाए रखने के लिए यह पर्व सदियों से मनायें जा रहे हैं।