बागीचा सूख गया

बद्री प्रसाद वर्मा अनजान

गोपाल के पापा सुरेन्द्र ने अपने घर के पिछवाड़े वाली खाली जमीन में आम बेल अमरूद अनार के पेड़ के साथ फूलों का भी बागीचा लगा रखा था।

गोपाल के पापा रोज सुबह उठकर बागीचे की साफ सफाई करते और सभी फूलों में नियमित पानी डालते थे ताकि पेड़ सूखने न पाए। गोपाल के पापा को रोज सुबह बागीचे से ताजा ताजा फल भगवान को चढ़ने को मिल जाते थे और दूसरे लोग जो फूल मांगने आते उन्हें मुफ्त में फूल देते थे।

एक दिन गोपाल के पापा ने गोपाल से कहा गोपाल बेटा मैं चार दिन के लिए अपनी बहन के घर गोरखपुर जा रहा हूं और बागीचे का साफ सफाई और फूलों में रोज पानी डालने का काम तुम्हें सौप रहा हूं मुझे विश्वास है मेरे न रहने पर तुम बागीचे की अच्छी तरह देखभाल करोगे ताकी मेरे आने के बाद हमारा बागीचा इसी तरह हरा भरा दिखाई दे।

पापा की बात सुनकर गोपाल बोला आप खुशी खुशी — जाइए मैं आपके न रहने पर भी बागीचे की अच्छी तरह से देखभाल करूंगा ताकि कोई पेड़ न सूखने पाए।

पापा के जाने के बाद गोपाल ने बागीचे में जाना ही छोड़ दिया और बागीचे में सूखे पत्तों की जगह जगह ढेर लग गई साथ ही फूलों के पेड़ पानी न पाने से सूखने लगे।

चार दिन बाद जब गोपाल के पापा गोरखपुर से घर आए तो सबसे पहले बागीचा देखने चल दिए। बागीचे में फूल के पेड़ों को सूखते और जगह जगह गंदगी देखकर तुरंत गोपाल को बुलाकर कर पूछा — तुमको मैं बागीचे की देखभाल करने को कहकर गया था मगर तुमने तो बागीचे को सुखाकर रख दिया। बताओ इसकी क्या सजा दूं तुमको?”

पापा को गुस्से में देखकर गोपाल कहने लगा पापा हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई। इसके लिए आप से माफी मांगता हूं। आप हमें जो सजा देना चाहेंदे सकते हैं। 

गोपाल की बात सुनकर उसके पापा गोपाल की कान पकड़कर बोले तेरे लिए यही सजा है कि तुमको हर दिन बाग की साफ सफाई करनी होगी और रोज फूलों को पानी देना हेगा जबतक सूखे पेड़ हरे नहीं हो जाते हैं तबतक तुमको फूलों को पानी देना होगा।

पापा की बात सुनकर गोपाल सारा काम करने को राजी हो गया। थोड़ी सी लापरवाही के कारण आज गोपाल को इतनी बड़ी सजा मिली। उस दिन से गोपाल ने लापरवाही करना छोड़ दिया और सही रास्ते पर आ गया।

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