चवन्नी का चक्कर

प्रयागराज एक्सप्रेस धड़ल्ले से दौड़ती हुई जा रही थी। हम एयरकंडीशन वर्थ 2 बी की लोवर वर्थ पर आसीन हो गए थे। मैं भी सोने का प्रयास कर रहा था। तभी 56 नंबर के वर्थ वाले से एक और आदमी से गहरी तू तू मैं मैं होने लगी। कैसे-कैसे लोग होते हैं वर्थ दूसरे की और खुद उसमें सोने की जिद कर रहे होते हैं। तभी हमारे साथ के साथी सुरेन्द्र दुबे उठे और उससे पूछा, “तुम्हारी सीट कौन सी है?”
उसने टिकट दिखाया ऊपर वाली सीट थी। हालांकि मैं हमेशा सुरेन्द्र दुबे को मना किया है कि, हमसे दूसरे के मामले से क्या मतलब ! लेकिन उनके लड़ने से नींद में खलल भी पड़ रही थी।
सुरेन्द्र दुबे उसको अपनी सीट दे दिया और खुद उसकी सीट पर आसीन हो गए थे। टिकिट कंडक्टर खड़ा सब देख रहा था, फिर भी वो कुछ बोला नहीं।
हमारे साथ चित्रकूट जिले के ही मऊ तहसील के कुछ सज्जन भी उसी वर्थ में यात्री थे। उनमें एक रिटायर्ड मास्टर थे जिनसे मेरी कुछ सकारात्मक बातें हुईं। लेकिन एक तगड़ा सा नवजवान एक सज्जन से उलझ गया और वह अपनी अंधभक्ति में डूबा हुआ था; वह एक नेता के पक्ष में उसका गुणगान कर रहा था और एक दूसरे नेता को बुरा-भला कहने लगा था। मामले की नजाकत और संजीदगी को देखते हुए मैंने सुरेन्द्र दुबे से कहा कि, “दुबे, आज पंद्रह अगस्त 2024 का दिन है और यह क्या हो रहा है किसी तरह से इन्हें शांत करवाया जाए!”
हम और भी कई लोगों ने दिमाग लगाया और किसी तरह से मामला शांत हुआ और फिर माहौल को हंसी खुशी का बनाया गया। हमारे ही जिले के होने के कारण उनसे जल्दी ही परिचय हो गया और हम सभी अपनी अपनी सीट पर सो गए थे।
सुबह चार बजे कि, वही अंधभक्त सज्जन जो मेरी सीट के सामने वाली सीट के ऊपर मध्य वाली सीट पर सोए थे काफी आवाज करके उतरे सो ऐसा लगा मुझे कि शायद आठों सीटों के लोग जाग गए थे फिर भी चुप थे।
आखिर मैंने पूछ ही लिया, “क्या हुआ जी?”
मुझे वह अच्छा लगा, वह मजाकिया अंदाज में था और कहा, “क्या बताऊं, मेरी तो चवन्नी गिर गई है; उसी को ढूंढ रहा था!”
मुझे भी यह अंदाज अच्छा लगा और मैं भी तुरंत ही खेद जताया, “ओह, तब तो बहुत बड़ा नुकसान हो गया!”
पता नहीं क्या हुआ और सभी हंस पड़े ! तभी मास्टर साहब ने कहा, “हम तो केजा वाले थे !” ( केजा कहते हैं, अनाज लेकर दुकानदार के पास जाना और अनाज के बदले सौदा – सामान लेना !)
मुझे भी बचपन याद आया और मैंने कहा, “मैं तो दो आने की पाव भर ( ढाई सौ ग्राम ) जलेबी खाया है चवन्नी का गिरना बहुत ही नुकसान दायक है !”
हम अपने घर से पांच रुपए में चित्रकूट घूमकर वापस आ जाते थे खाना भी खाते और पिक्चर भी श्रृंगार टाकीज कर्वी में देखते थे।