किशोरि जू

"राधा रानी" वस्तविक स्वरूप

मोनिका शुकला हावडा

हमारे हिंदू धर्म में 33 कोटि देवी देवता हैं। हमने सबके बारे में पढ़ा है जाना है। संतो के मुख द्वारा सभी की महिमा को जाना है। अखिल कोटि ब्रह्मांड नायक श्री कृष्ण की लीलाओं का गुणगान हम सभी बचपन से ही सुनते आ रहे हैं। कैसे वह गोकुल की गलियों में अपनी सखाओं के साथ लीलाएं करते थे, गऊ चराने जाया करते थे, गोपियों के वस्त्र चुराया करते थे। शायद कृष्ण ने यह सभी लीलाएं अपने भक्तों के आनंद के लिए ही रची थी ताकि भविष्य में हम उनकी लीलाओं की चर्चा करें और उन्ही में रमें रहें क्योंकि श्री कृष्ण सतचित आनंद स्वरूप हैं। श्री कृष्ण से कम शक्ति जिनमें प्रकट होती है वह है परमात्मा और सबसे कम शक्ति जिनमें प्रकट होती है वह है ब्रह्मा। श्री कृष्ण के तीन रूप हैं- सत स्वरूप, चित स्वरूप और आनंद स्वरूप। श्री कृष्ण की जो अपनी निज शक्ति हैं उसे कहते हैं  स्वरूप  शक्ति।


अखिल कोटि ब्रह्मांड नायक श्री कृष्ण का जब मोहिनी अवतार हुआ तो मोहिनी अवतार के उस स्वरूप के सौंदर्य पर 33 कोटि देवता न्योछावर हो गए। सबके मन में यह भाव आया कि यह जो भी प्रकट हुई है किसी भी प्रकार से हमको हमारी ग्रहणी के रूप में प्राप्त हो जाए इतना सुंदर ठाकुर जी स्वयं बनकर आए थे। चंद्रमा भी पीछे चल रहे थे, शिव जी भी पीछे चल रहे थे, ब्रह्मा जी भी उनके पीछे चल रहे थे। सभी श्री कृष्ण के इस अवतार पर ऐसे लट्टू हुए कि एक बार मोहिनी जी हमको देख भर लें - इसी से हमारा कल्याण हो जाएगा "ऐसा ठाकुर जी का स्वरूप था"। परंतु उन 33 कोटि देवताओं में एक देवता ऐसे हैं जिनका मोहिनी के प्रति ऐसा कोई दुर्भाव नहीं था और वह थे सूर्यदेव। सूर्यदेव ने जब मोहिनी जी को देखा तब उनके मन में भाव आया -- इतनी सुंदर, इतनी सुकुमारी इतनी मधुर उन्हें लगा यह मेरी बेटी बन जाए और यह मुझे पुत्री रूप में प्राप्त हो जाए। मोहिनी जी ने सूर्य देव को अपने कटाक्ष नेत्रों से देखा और उनकी अभिलाषा समझ कहा - इतना साधारण नहीं है मुझे पुत्री रूप में प्राप्त करना।

मंडप को दीदी (बड़ी बहन) बनाती थीं। लंबी-चौड़ी साड़ियों में चुन्नट डालकर मण्डप का आकार देना और संभालना उनके ही बस का था। मैं तो बस सेफ्टीपिन पकड़ाने का काम करती थी।

वही सूर्य वृषभानु रूप में प्रकट हुए और ब्रह्मा जी से याचना की कि श्री कृष्ण का मोहिनी अवतार उन्हें पुत्री रूप में प्राप्त हो। फिर ब्रह्मा जी ने उसकी जिम्मेदारी ली और ब्रह्मा जी बरसाना में पर्वत के रूप में खुद विराजमान हो गए। स्वयं ब्रह्मा जी ने श्री कृष्ण से याचना की कि आप बरसाना धाम में वृषभानु जी के यहां उनकी पुत्री के रूप में अवतरित होकर सूर्य देव की मनोकामना को पूर्ण कीजिए। भगवन श्री कृष्ण ने गहन विचार किया और गोलोक में एक दिन घूमते - घूमते एक वृक्ष की मणि पर अपना ही प्रतिबिंब देखा। श्री कृष्ण अपना प्रतिबिंब देखकर उससे इतना रीझ गए कि उसे सजाने लगे। अपने ही प्रतिबिंब को स्वर्ण आभूषणों से सजाने लगे और इतने मोहित हो गए कि उसी प्रतिबिंब से श्री राधा रानी का अवतरण हुआ। फिर श्री कृष्ण ने उनकी स्तुति की और श्री राधा रानी से प्रार्थना किया कि आप वृषभानु जी और कीर्ति मैया जी जो बरसाना धाम में है, उनके यहां उनकी पुत्री के रूप में जन्म लीजिए। तदुपरांत श्री राधारानी जू ने पुत्री  रूप  में वृषभानु जी के घर जन्म लिया।

निष्काम प्रेम की स्थापना के लिए श्री कृष्ण का वह मोहिनी स्वरुप वृषभानु जी और कीर्ति मैया जी के यहां किशोरी के रूप में अवतरित होता है। श्री राधारानी जू श्री कृष्ण की ह्लादिनी शक्ति हैं। ह्लादिनी शक्ति का अर्थ है - दिव्यता का आनंद देने वाली शक्ति, जिसे आनंददायिनी शक्ति भी कहा गया है। जो ह्लादिनी शक्ति का सारभूत तत्व है उसका भी सार यानी उच्च कोटि का प्रेम रस - जिसे महाभाव कहते हैं। श्री कृष्ण अपना दिव्य प्रेम खुद नहीं देते है किसी संत के द्वारा दिलवाते हैं। प्रेम मिलने पर भगवत प्राप्ति हो जायेगी और श्री कृष्ण आपके वश में हो जायेंगे। महाभाव जो अंतिम है श्री कृष्ण का प्रेम रस। उसी का अवतार हैं - श्री राधिका ठाकुरानी जी। इसलिए श्री कृष्ण भी उनके दास बने रहते हैं। यही महाभाव गोपियों को भी मिला था। महाभाव रस के ऊपर भी एक और उच्च कोटि का रस है - जिसे कहते हैं - मदन्यखा रस। जो सिर्फ किशोरी जी के पास ही है श्री कृष्ण के पास भी नहीं है और जिसे पाने के लिए श्री कृष्ण भी प्यासे रहते हैं। श्री कृष्ण सब अवतारों के मूल अवतारी  हैं।

संपूर्ण देवियां राधारानी जू के ही अंश से प्रगट हुई हैं। राधारानी जू में वो समस्त सद्गुण विराजमान हैं जो श्री कृष्ण को सदा उनके आधीन किए रहते हैं। राधारानी को अनुपम गौरव प्राप्त है। राधारानी जी को जानना साधारण विषय नहीं है, क्योंकि वह प्रेम समुद्र का सार है। किशोरी जी दिव्य चिन्मय स्वरूपा हैं और निर्लिप्ता हैं। कोई उन्हें किसी वस्तु से नहीं रिझा सकता है। राधारानी जू की सहचरियों की शरणागति से उन्हें रिझाने की पद्धति मिलती है। जब श्री जी के लाडले प्रेमियों के संग से हमारे हृदय में भाव उत्सव प्रकट होता है तब उनकी चरण सेवा का अधिकार प्राप्त होता है। राधारानी जू अपने भक्तों पर कृपा वृत्ति से व्याकुल रहती हैं। कैसे वह अपने लाडले भक्तों पर कृपा करके उन्हें सुख पहुंचाए। राधारानी जू महा युगल प्रेम स्वरूप हैं। श्री कृष्ण का मूर्तिमान प्रेम ही श्री राधारानी जू है। राधारानी जू श्री कृष्ण के हृदय गुहा में रहती हैं, राधारानी जी वृंदावन की ही नहीं ब्रज चौरासी कोस की महारानी भी हैं। श्री राधिका रानी 64 कला प्रवीण श्री राधारानी जू हैं और ठाकुर जी 16 कला प्रवीण हैं। राधा तत्व परम रहस्य है, जिसको जानने के लिए ठाकुरजी भी उनसे याचना करते रहते हैं। कहीं भी अगर श्री कृष्ण प्रेम है, इसका तात्पर्य है कि उसके हृदय में श्री राधारानी जू के चरणों की कृपा हुई है - तभी उसे श्री कृष्ण अनुराग मिला है चाहे वह किसी भी संप्रदाय का हो। हमारे संत तो यह भी कहते है श्री कृष्ण से विशुद्ध प्रेम श्री राधारानी जी की कृपा के बिना नहीं हो सकता है। राधारानी जू श्री कृष्ण का ही प्रतिबिंब हैं उन्हीं की आत्मा हैं। भक्ति मार्ग के पथ पर चलते हुए अगर आप विशुद्ध प्रेम की अभिलाषा रखते हैं तो आपको श्री राधारानी जी को ही अपने हृदय को समर्पित करना होगा और उनकी अहैतुकी कृपा से ही हम अपने अमूल्य जीवन को कृतार्थ  कर  पाएंगे।