अपनी शक्ति को पहचाने

एक बौद्ध भिक्षुक भोजन बनाने के लिए जंगल में लकड़ियाँ चुन रहा था कि तभी उसने बिना पैरों की एक लोमड़ी को देखते हुए मन ही मन सोचा, आखिर इस हालत में ये जिंदा कैसे है ? और ऊपर से ये बिल्कुल स्वस्थ भी है। वह अपने ख़यालों में खोया हुआ था कि अचानक चारों तरफ अफरा - तफरी मचने लगी। जंगल का राजा शेर उस तरफ आ रहा था।
भिक्षुक भी तेजी दिखाते हुए एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गया और वहीं से सब कुछ देखने लगा। शेर एक हिरण का शिकार किये हुए था और उसे अपने जबड़े में दबा कर लोमड़ी की तरफ बढ़ रहा था। पर उसने लोमड़ी पर हमला नहीं किया बल्कि उसे भी खाने के लिए मांस के कुछ टुकड़े डाल दिए। ये तो घोर आश्चर्य है, शेर लोमड़ी को मारने की बजाय उसे भोजन दे रहा है। भिक्षुक बुदबुदाया, उसे अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था। इसलिए वह अगले दिन फिर उसी जगह आया और छिप कर शेर का इंतज़ार करने लगा। आज भी वैसा ही हुआ, शेर ने अपने शिकार का कुछ हिस्सा लोमड़ी के सामने डाल दिया। यह भगवान के होने का प्रमाण है ! भिक्षुक ने अपने आप से कहा। वह जिसे पैदा करता है उसकी रोटी का भी इंतजाम कर देता है। आज से इस लोमड़ी की तरह मैं भी ऊपर वाले की दया पर जीऊंगा, ईश्वर मेरे भी भोजन की व्यवस्था करेगा। और ऐसा सोचते हुए वह एक वीरान जगह पर जाकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया।
