बंदउँ कौसल्या दिसि प्राची

- डॉ. लक्ष्मी शंकर त्रिपाठी, कानपुर
राम जी की लीला ही ऐसी रही कि भाव एवं भक्ति की आँखे बरबस बरस जाती हैं, आप सब पर प्रभु राम कृपा बरसाते रहें।
कुछ प्रसंग 'मति अनुरूप' लिखने का प्रयास किया है
"बंदउँ कौसल्या दिसि प्राची"
'रिपु रन जीति सुजस सुर गावत,
सीता सहित अनुज प्रभु आवत'।
मारुति नन्दन का शुभ संदेश श्री भरत लाल गुरुदेव तथा रनिवास तक पहुंचाते हैं। पवन पुत्रका संदेश पवन से भी अधिक शीघ्रता से सारे अयोध्या में प्रसारित हो गया। चतुर्दिक हर्ष, उल्लास, उमंग एवं उत्साह का वातावरण था। राजपथ, भवन, छतों से सभी टकटकी लगाए विमान की प्रतीक्षा में आकाश की ओर निहार रहे थे।
'अवध पुरी प्रभु आवत जानी
भई सकल सोभा कै खानी'
अयोध्या नगरी एक दुल्हन की भांति सज गई। ध्वजा, पताका, आम्र पत्र के तोरण, कदली स्तम्भ, मंगल कलश शोभा बढ़ा रहे थे। धूप अगर तथा अन्य सुगंधित वस्तुओं से वातावरण सुवासित हो रहा था। असंख्य दीप जगमगा रहे थे। आज श्री राम चौदह वर्ष बाद अपनी नगरी पधार रहे थे। गुरुजन, विप्रजन, परिजन, प्रजाजन अति उत्साह से श्री राम के पधारने की प्रतीक्षा कर रहे थे। श्री भरत लाल अनुज शत्रुघ्न के साथ व्यवस्था हेतु आर्य सुमंत्र तथा अन्य अमात्य से चर्चा कर आश्वस्त हो रहे थे। राज्य कर्मचारी इस अवसर के अभूतपूर्व आयोजन हेतु पूरी निष्ठा से सक्रिय थे।
रनिवास में समाचार माता कौशल्या तक पहुंचा, वे उस समय माता कैकेयी एवं माता सुमित्रा के साथ दीर्घ चौदह वर्षों के काल गणनानुसार आज उसकी समाप्ति की प्रतीक्षा कर रही थीं। शुभ समाचार ने माताओं को भाव विह्वल कर दिया, प्रेमाश्रु झर झर बहने लगे। वधुओं ने समाचार सुना और माता कौशल्या के कक्ष में भागी भागी आ गईं। जब से मारुति सुत ने, युध्द भूमि में मेघनाद द्वारा वीर घातिनी शक्ति से मूर्च्छित लखन लाल का समाचार भरत लाल को सुनाया था, सभी पूजा, जप, प्रार्थना, दान कर रहे थे, किन्तु देवी उर्मिला इष्ट देव कक्ष में ही साधना रत थीं। सभी वहीं पहुंचे।
माता कौशल्या ने भाव विह्वल हो उर्मिला को आलिंगन में ले रुंधे गले से शुभ समाचार सुना कर कहा-
पुत्री तेरी साधना, तपस्या, वंदना, पूजा सफल हुई। उर्मिला के तेजोमय दीप्त शान्त मुख मंडल पर हलकी मुस्कान के साथ अश्रु धारा बह चली। ये आंसू हर्ष के साथ इष्ट देव की कृपा पर कृतज्ञता के भाव अर्पण थे।
