आज पेशवा बाजीराव को पढ़ने का सौभाग्य मिला। आश्चर्य है कि इतने बड़े योद्धा के विषय में हम कितना कम जानते हैं। अतिशयोक्ति लगेगी, पर पिछले दो हजार वर्षों में भगवा भारत का सबसे बड़ा नक्शा उसी योद्धा ने बनाया था। ईसा के बाद हिन्दुओं का सबसे बड़ा साम्राज्य उसी के समय खड़ा हुआ।
अशोक त्रिपाठी
ठाणे, मुम्बई
पेशवा बाजीराव अपने जीवन में कुल 43 युद्ध लड़ते हैं और उनमें 43 जीतते हैं। शत प्रतिशत जीत ! दस से अधिक युद्ध लड़ने वाले योद्धाओं में ऐसा रिकॉर्ड किसी और का नहीं। बाबर का नहीं, औरंगजेब का नहीं, बल्कि अकबर का भी नहीं। रुकिये ! नेपोलियन का भी नहीं, सिकन्दर का भी नहीं…
सिकन्दर तो भारत में ही दो बार हारे, अकबर कभी मेवाड़ से जीत नहीं सके, औरंगजेब की सेना को बीसों बार अहोम हराये। नेपोलियन तो पराजित हो कर कैद में मरे… पर बाजीराव अपने एक भी अभियान में असफल नहीं हुए। बाजीराव कभी पराजित नहीं हुए। वे इकलौते योद्धा थे जिनके लिए कहा जा सकता है- जो जीता वह बाजीराव !
उस युग में भारत की कोई ऐसी शक्ति नहीं थी जो बाजीराव बल्लाळ भट्ट से पराजित न हुई हो। मुगल, निजाम, पुर्तगाली… अपने युग के उस सर्वश्रेष्ठ घुड़सवार ने समूची भूमि अपने पैरों तले रौंद दी थी।
शिवाजी महाराज के पोते क्षत्रपति साहू जी महाराज लगभग 15 वर्षों तक मुगलों के यहाँ बंधक रहे थे। उन्ही शाहूजी महाराज के ध्वज तले बाजीराव ने केवल पाँच सौ घुड़सवारों के बल पर मुगल सम्राट को तीन दिन तक लालकिले में लगभग बंधक बनाये रखा। और यह भी हुआ तब, जब मुगल भारत की सबसे बड़ी शक्ति थे।
सन 1299 में महाराज कर्णदेव बघेल की अलाउद्दीन खिलजी से पराजय के साथ ही गुजरात विदेशियों के कब्जे में गया, उसे साढ़े चार सौ वर्ष बाद बाजीराव ने छुड़ाया। मालवा 1305 से विदेशियों का गुलाम था, उसे भी बाजीराव ने मुक्ति दिलाई।
वे भारत में हिन्दू पद पादशाही का लक्ष्य लेकर निकले और जीवन पर्यंत उसके लिए लड़ते रहे। वीर शिवाजी के सपनो का देश बनाने का कार्य प्रारम्भ बाजीराव के पिता बालाजी विश्वनाथ ने किया, पर उसे पूर्ण किया बाजीराव ने, और उसे सजाया, सँवारा और आगे बढ़ाया उनके पुत्र बालाजी बाजीराव ने…. अटक से कटक तक हिन्दू साम्राज्य ! भगवा ध्वज ! हर हर महादेव का जयघोष… फैलाया।
बाजीराव की चर्चा उनके छत्रसाल कुमारी मस्तानी से प्रेम के कारण भी होती है। खेद है कि उनके जीवन का सबसे सुन्दर अध्याय ही सबसे भयावह अध्याय भी है। प्रेम सदैव शुभ नहीं होता न… !
वे युद्ध के लिए बने थे। तपते मध्यप्रदेश की भीषण लू उस महान योद्धा को अल्पायु में ही खा गई। इंदौर के निकट रावड़खेड़ी नामक अप्रसिद्ध स्थान पर इस महायोद्धा की समाधि है।
इस समाधि स्थल के दर्शन का सौभाग्य हमें अप्रैल 2024 में श्री नर्मदा परिक्रमा के मध्य श्री प्रकाश भाऊ (यशोधन ट्रैवेल्स) के सौजन्य से प्राप्त हुआ।