दुर्घटना
पडघा की

वर्षा ऋतु का मौसम था, शीतल, मंद, सुगंध पवन बह रही थी, अत्यन्त सुहाना मौसम था। छुट्टी (शनिवार) का दिन था, बच्चों ने मुझसे कहा कि इतना अच्छा मौसम है चलिए हम लोग लॉन्ग ड्राइव पर कहीं भ्रमण करके आते हैं। आपस में विचार विमर्श करके निर्णय लिया गया कि इगतपुरी, महाराष्ट्र चलते हैं, ताकि इस सुहाने मौसम में विहंगम दृश्यों का आनन्द लेकर भ्रमण करके शाम तक घर वापस आ जायें। अतः हम लोग अपनी गाड़ी से लगभग 11 बजे के आस पास घर से नाशिक रोड से इगतपुरी के लिए प्रस्थान किये। अंकित (मेरे कनिष्ठ पुत्र) ने गाड़ी चलाने की इच्छा व्यक्त की और मेरी स्वीकृत मिलने पर स्टीयरिंग पर बैठ गया। अंकुर (मेरा ज्येष्ठ पुत्र) भी उसके साथ अगली सीट पर बैठ गया। हम दोनों (मैं और मेरी श्रीमती जी (सुषमा) पीछे की सीट पर बैठे।

अशोक शंकर त्रिपाठी ठाणे

हम लोग अभी थोड़ी दूर ही गए थे कि घनघोर वृष्टि होने लगी, "घन घमंड नभ गर्जत घोरा" का दृश्य था, मैंने अंकित से सावधानी से गाड़ी चलाने के लिए कहा। अंकित मार्ग में हुए जल भराव में पानी उड़ाते हुए मस्ती से गाड़ी चला रहा था। कुछ दूर और जाने पर वृष्टि का वेग कम हो गया। सब लोग आपस में अपने पुराने किस्से सुनाते हुए आनन्द पूर्वक जा रहे थे कि अचानक पडघा टोल पर सामने वाली गाड़ी के आगे चल रहा ट्रक रुक गया, अतः उसके पीछे चल रही गाड़ी ने भी अपनी गति अत्यन्त धीमी कर ली, अंकित ने भी अपनी गाड़ी में ब्रेक लगाया, पर रुकते-रुकते स्किड होने के कारण हमारी गाड़ी के आगे चलने वाली गाड़ी ठुक गई। उसके प्रभाव से सामने वाली गाड़ी का बूट खुल गया। सब लोग गाड़ी से नीचे उतरे, आगे वाली गाड़ी से भी लोग नीचे उतरे। मैंने उस गाड़ी के चालक से क्षमा मांगी और कहा कि स्किड होने के कारण गाड़ी में ब्रेक लगाने के बाद भी आपकी गाड़ी ठुक गयी, इसमें हमारा दोष नहीं

है। पर वो सज्जन क्रोध में बोले कि मेरी अभी नई गाड़ी है (Volkswagen Vento) 10-12 दिन ही हुए हैं इसे क्रय किये हुए, हम लोग (वे और उनके मित्र गण) इगतपुरी वीकेंड मनाने जा रहे हैं और आपलोगों ने हमारी आशाओं पर तुषारापात कर दिया। उन्होंने कहा कि आजकल के लड़के अत्यन्त वेग से और लापरवाही से गाड़ी चलाते हैं, मैं पुलिस कंप्लेंट करूँगा और इसे (अंकित की ओर संकेत करके) सबक सिखाऊंगा (I will teach him a lesson)।

मैंने उनसे कहा कि आप इन्स्योरेन्स क्लेम से अपनी गाड़ी ठीक करवा लीजिये। यह भी कहा कि हमारी गाड़ी भी क्षतिग्रस्त हुई है, इसका भी रेडियेटर फट गया है। मैंने उन्हें पुनः समझाने का प्रयास किया और क्षमा याचना की, पर वो कुछ सुनने के मूड में नहीं थे। मैंने उनके साथ जो सज्जन गाड़ी में बैठे थे, (जो मुझे कुछ अधिक बुद्धिमान लग रहे थे), से आग्रह किया कि आप अपने मित्र को समझाइये कि अनावश्यक पुलिस आदि के चक्कर में न पड़ें, आप लोग अपने कार्यक्रम के अनुसार आगे बढ़िए और जाकर अपना वीकेंड मनाइये, वापस आकर इन्स्योरेन्स क्लेम से अपनी गाड़ी ठीक करवा लें। तब उन सज्जन ने बताया कि ये राठौड़ साहब हैं (retired district judge) और मैं भी acting district judge हूँ, ये बिना पुलिस कंप्लेंट के नहीं मानेंगें। उनके कुछ और मित्र आगे की गाड़ी में बैठकर इगतपुरी की ओर गए हैं। वो लोग भी इसी व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। वे फ़ोन पर लगातार किसी से वार्ता कर रहे थे।

मैंने भी अपने कुछ मित्रों को फ़ोन से संपर्क किया और इस दुर्घटना के विषय में बताया, उन लोगों ने मुझे आश्वस्त किया की हाईवे में इस तरह की दुर्घटनाएं होना सामान्य बात है और चिंतित न होने के लिए कहा। मेरे एक मित्र ने जो (आरएसएस से सम्बन्धित हैं) किसी और मित्र को फ़ोन करके पडघा पुलिस स्टेशन को सूचित किया और इस घटना के सम्बन्ध में मेरी सहायता करने का निवेदन किया। मैंने ईश्वर से इस घटना के शांतिपूर्ण समाधान एवं निवारण के लिए प्रार्थना की और मन में सोचा कि विधाता को जो स्वीकार्य होगा वही होगा।

थोड़ी देर में पुलिस कि गाड़ी आ गयी, उन लोगों को VIP व्यवहार मिला और हम लोगों को पुलिस की गाड़ी में बैठाकर थाने लेकर गए, रेडियेटर फटने के कारण हमारी गाड़ी को चलाना सुरक्षित नहीं था, अतः हमने अपनी गाड़ी हाईवे पर ही सड़क के किनारे एक सुरक्षित स्थान पर खड़ी कर दी और थाने आ गए। थाने पहुंचकर जस्टिस राठौड़, उनके मित्र और मैं इंस्पेक्टर के केबिन में बैठे, मेरे दोनों बच्चे और श्रीमती जी केबिन के बाहर रुक गए।

हमलोगों ने पुलिस इंस्पेक्टर को दुर्घटना का वृत्तान्त सुनाया, इंस्पेक्टर मेरे प्रति नम्र था, संभवतः मेरे मित्र का फोन उनके पास आ चुका था। मैंने इंस्पेक्टर से आग्रह किया कि यह अनअपेक्षित दुर्घटना तो हो गयी, दुर्घटना ग्रस्त गाड़ियां इन्स्योरेन्स क्लेम के द्वारा बिना किसी अतिरिक्त आर्थिक हानि के ठीक करवाई जा सकती हैं और यदि कोई व्यय जिसका क्लेम नहीं मिल सकता उसका व्यय मैं वहन करने को तैयार हूँ, ऐसा प्रस्ताव मैंने राठौड़ साहब को दिया है। यह सुनकर इंस्पेक्टर ने मुझे शांत रहने का संकेत दिया। इसी बीच राठौड़ साहब के फ़ोन पर कोई कॉल आया और वह कॉल अटेंड करने के लिए बाहर गए। थोड़ी देर पश्चात वे वापस आये और बोले कि आज का दिन उनके लिए अत्यन्त शुभ है, मेरा एक कार्य जो पिछले 3-4 वर्षों से अटका हुआ था वह आज निष्पादित हो गया है। मैं अपना सायन वाला फ्लैट 3-4 वर्षों से बेचने का प्रयास कर रहा था, पर उचित मूल्य न मिलने के कारण अटका हुआ था उसकी डील आज हो गयी है, अतः मुझे पुलिस कंप्लेंट नहीं करनी है।


मैं इस लड़के का भविष्य नहीं बिगाड़ना चाहता, हो सकता है कि भविष्य में इसे कोई सरकारी नौकरी मिले तो उसमें इस पुलिस कंप्लेंट के कारण कोई असुविधा नहीं आनी चाहिए। यह लड़का मेरे लिए शुभ है अतः मैंने इसे क्षमा कर दिया। और चूंकि त्रिपाठी जी ने अतिरिक्त व्यय वहन करने का आश्वासन दिया है अतः मैं बिना कोई कंप्लेंट किये अपने गन्तव्य की ओर प्रस्थान करता हूँ। राठौड़ साहब ने मेरा कांटेक्ट नंबर ले लिया। यह सुनकर इंस्पेक्टर ने उन्हें जाने दिया और हमें भी जाने का आदेश दिया, पर उनके कांस्टेबल ने कहा कि पहले मैं इस लड़के का स्टेटमेंट रिकॉर्ड कर लेता हूँ उसके पश्चात आप लोग जा सकते हैं। मैंने अंकित को कहा कि निर्भीक होकर अपना स्टेटमेंट रिकॉर्ड करवा दो, जो सत्य है वही बताना कि वर्षा के कारण गाड़ी का ब्रेक ठीक से नहीं लगा और मैं निर्दोष हूँ। कांस्टेबल ने एक दूसरे कमरे में ले जाकर अंकित का स्टेटमेंट रिकॉर्ड किया और हमलोगों को जाने का आदेश दिया। उन लोगों को धन्यवाद देकर हम लोग वहाँ से हाईवे की ओर निकले।

मैंने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया जिन्होंने ने मेरी प्रार्थना सुन ली और जस्टिस राठौड़ का मत परिवर्तित कर दिया। ईश्वरीय अनुकम्पा से यह चमत्कार हुआ। इस बीच अंकित ने टोइंग गाड़ी बुला ली थी अतः हमलोग ठाणे वापस आकर अपनी गाड़ी सर्विस सेंटर में रिपेयर के लिए देकर घर वापस पहुंचे। मार्ग में मैंने सबका मन हल्का करने के लिए अंकित से कहा कि तुमने भी पंगा एक ऐसे व्यक्ति से लिया जो एक डिस्ट्रिक्ट जज निकला, किसी सामान्य गाड़ी को ठोकते तो इतना मानसिक कष्ट सबको न होता।

इस घटना से हमें यह सबक मिला कि अपना हर कार्य अति सावधानी से करो, विपरीत परिस्थिति में संयम एवं धैर्य रखो, ईश्वर पर विश्वास रखो क्योंकिं उन्हीं कि अनुकम्पा से विपरीत परिस्थिति से उबरा जा सकता है।