माता अहिल्याबाई द्वारा निर्मित मूर्तियाँ, मंदिर तथा तीर्थस्थल अत्यंत सुंदर, भव्य तथा सुदृढ़ हैं। सभी अपने आप में भारतीय वास्तुकला तथा शिल्पकला के नायाब उदाहरण हैं। स्वयं शिव की उपासिका होने के कारण उनके द्वारा सर्वाधिक संख्या में शिव मंदिरों का निर्माण करवाया जाना स्वाभाविक है, किंतु उन्होंने विभिन्न धार्मिक मतावलंबियों के लिए भी देवी-देवताओं के अनेक प्रतिष्ठित मंदिर बनवाये। श्री बद्रीनारायण, श्री द्वारका, श्री रामेश्वर, श्री जगन्नाथ पुरी, सौराष्ट्र, श्री शैल मल्लिकार्जुन, ओंकारेश्वर, परली बैजनाथ, काशी, त्रयंबकेश्वर, घृष्णेश्वर, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, अवन्तिका (उज्जैन), चित्रकूट, पुष्कर, एलोरा, भुसावल, पुणताम्बे, भरतपुर, नाथद्वारा (राजस्थान), टेहरी (बुंदेलखंड), बुरहानपुर, बेरुल, नैमिषारण्य, संवलग्राम, प्रयाग, अमरकंटक, पंढरपुर, चौंडी, केदारनाथ, नासिक, ऋषिकेश, गंगोत्री, इंदौर, गया, आदि जैसे अनेक स्थानों पर देवी अहिल्याबाई ने जनहित में मंदिर, धर्मशाला, कुंड, घाट आदि बनवाये। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अहिल्याबाई ने जो भी निर्माण कार्य करवाये, उनके पीछे सत्ता, वैभव, तथा राजसी ठाठबाट का प्रदर्शन करना नहीं रहा। उनका हर कार्य लोकहित की भावना से अनुप्रेरित था। उनका हृदय मानवीय संवेदनाओं और राष्ट्रीय सौहार्द्र का आगार था। गया जी अवस्थित श्री विष्णुपद मंदिर व सभा मंडप का निर्माण करके तो देवी अहिल्याबाई ने अपने पितरों के प्रति सबसे अच्छी और सबसे सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की। उनकी कृपा से अनेक प्रतिभाशाली शिल्पियों, कलाकारों और मजदूरों को रोजगार प्राप्त हो सका।