शिक्षा और समाज का अंतरंग संबंध है, ठीक उसी प्रकार जैसे किसी मिष्ठान्न में शक्कर का होता है। इन दोनों को अलग करके देखने की कल्पना नहीं कि जा सकती है। क्योंकि एक दूसरे के बिना मिष्ठान्न का अस्तित्व अधूरा है। साथ ही इनका सापेक्षिक अनुपात ही मिष्ठान्न के स्वरूप और गुणवत्ता को निर्धारित करता है। हमारे पूर्वजों ने शिक्षा की इस महत्ता को युगों पूर्व समझ लिया था और समाज को शिक्षित करने पर जोर दिया था। अनादिकाल से चली आ रही यह आवश्यकता आज भी समसामयिक और अति आवश्यक है।
एक शिक्षित समाज ही प्रगति के पथ पर निरंतर अग्रसर होता है। यहाँ पर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि जितनी आवश्यकता शिक्षा की है उससे अधिक शिक्षा की गुणवत्ता की है। क्योंकि साधारण शिक्षा मात्र साक्षर बनाती है पर चरित्र का समग्र विकास नहीं करती। वर्तमान परिस्थितियों के पीछे शिक्षा की गुणवत्ता में कमी एक बहुत बड़ा कारण है। जिसके कारण साक्षरों की फौज तो खड़ी हो गयी जिसने समाज मे न केवल बेरोजगार पैदा किया अपितु अन्य सामाजिक समस्याओं को भी जन्म दिया। जिनमें बात-बात पर आंदोलन, आतंकवाद, नारी के प्रति अत्याचार, सामाजिक/ धार्मिक/ लैंगिक असहिष्णुता को जन्म दिया।
दूसरी ओर गुणकारी और समग्र शिक्षा न केवल व्यक्तित्व का विकास करती है अपितु खुद के और दूसरों के लिए रोजगार के अवसर भी प्रदान करती है, जिससे एक स्वस्थ्य और प्रगतिशील समाज का निर्माण होता है और विभिन्न प्रकार के अपराधों और सामाजिक असन्तोष में कमी आती है।
आज जब हम पश्चिमी देशों से अपने देश की तुलना करते हैं तो यह अंतर साफ नजर आता है। मैकाले द्वारा प्रतिपादित शिक्षा पद्धति के अंधानुकरण करने से विगत 75 वर्षों में देश ने सिर्फ साक्षर ही पैदा किये हैं जो कि सिर्फ नौकरी और प्रथमतया सरकारी नौकरी ही करना चाहते हैं। जिसके कारण देश और समाज में व्यापक रूप से है और कई समस्याएं पैदा हुई हैं। इस वस्तुस्थिति को भांप कर वर्तमान सरकार लोगों को शिक्षित करने के साथ कौशल विकास पर भी ध्यान दे रही है ताकि आज के युवा नौकरी खोजने वाले से नौकरी देने वाले बन सकें और समाज की उन्नति और प्रगति में योगदान कर सकें। कौशलयुक्त शिक्षित समाज में विभिन्न समस्याएं स्वतः ही कम होती जायेंगी।
देश में शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव की आवश्यकता विगत कई दशकों से महसूस की जा रही थी। क्योंकि वर्तमान शिक्षा प्रणाली न सिर्फ बेरोजगार युवक युवतियाँ उत्पन्न कर रही है अपितु पढ़ाई बीच में छोड़ने वालों का भविष्य अधर में लटक जाता है। अतः विगत कुछ वर्षों में व्यापक एवं देशव्यापी विमर्श के उपरांत नई शिक्षा प्रणाली की घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा 29 जुलाई 2020 को की गई। यह 1986 से लागू भारतीय शिक्षा नीति के बाद पहला नया बदलाव प्रदान करती है। वर्तमान सरकार द्वारा इसे शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम बताया जा रहा है इससे उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले वर्षों में देशव्यापी परिवर्तन एवं प्रभाव देखने को मिलेगा। सही वस्तुस्थिति का पता, लागू होने के बाद ही चल सकेगा। पर बेहतर शिक्षा प्रणाली समाज में बदलाव का माद्दा रखती है इससे इंकार नहीं किया जा सकता।