श्रीकृष्ण कथा

क्यों लेना पड़ा श्रीकृष्ण को अवतार ?

भगवान श्रीकृष्ण का परमशत्रु कंस पूर्वजन्म में हिरण्यकश्यप था। भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय शाप के कारण बार-बार असुर रूप में जन्म ले रहे थे। भगवान विष्णु ने इन्हें शाप से मुक्ति के लिए वरदान दिया था कि जब भी तुम जन्म लोगे तो तुम्हारी मृत्यु मेरे हाथों होगी और तुम्हारा उद्धार होगा। कालांतर में उसी के फलस्वरूप कंस ने धरती पर जन्म लिया और अपने अत्याचार से धरती पर हाहाकार मचा रखा था। इसके अत्याचारपूर्ण शासन से साधु-संत कष्ट पा रहे थे। दूसरी ओर शिशुपाल जो पूर्वजन्म में हिरण्याक्ष था वह भी धरती पर आ चुका था। इन दोनों को मुक्ति प्रदान करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अवतार लिया।

राधा का शाप बना कृष्ण अवतार का कारण

ब्रह्मवैवर्त पुराण में एक कथा है कि एक बार देवी राधा श्रीकृष्ण से रूठकर गोलोक से कहीं चली गईं। अवसर का लाभ उठाकर राधा की सखी विरजा श्रीकृष्ण के समीप आ गईं। इसी बीच राधा का गोलोक में आगमन हुआ और विरजा को श्रीकृष्ण के समीप देखकर दोनों को भला बुरा कहने लगीं। विरजा वहां से तुरंत नदी रूप धारण करके चली गईं। श्रीकृष्ण पर नाराज होते हुए देवी राधा को देखकर सुदामा नाम के गोप से सहन नहीं हुआ और देवी राधा के क्रोध को शांत करने के लिए उन्हें समझाने का प्रयास किया। लेकिन इससे देवी राधा शांत होने की बजाय और उग्र हो गईं। देवी राधा ने सुदामा को शाप दे दिया कि वह असुर बनकर धरती पर चले जाएं। सुदामा भी क्रोध पर नियंत्रण नहीं रख पाए और देवी राधा को शाप दे दिया कि आप भी गोलोक से पृथ्वी पर चली जाएं और कुछ समय तक आपको भी श्रीकृष्ण से विरह का दु:ख भोगना पड़े। श्रीकृष्ण ने देवी राधा को समझाया कि चिंता ना करें यह पूर्व निर्धारित है कि आपको पृथ्वी पर अवतार लेना है, आपके साथ मैं भी पृथ्वी पर अवतार लूंगा, जिससे सुदामा का शाप भी फलेगा और हमारा साथ भी बना रहेगा।

नारद का शाप

भागवत एवं शिव पुराण में एक कथा है कि नारद मुनि के मन में एक बार विवाह करने की इच्छा उत्पन्न हुई। मोह में फंसे नारद मुनि भगवान विष्णु के पास हरि के समान रूप मांगने पहुंच गए। भगवान विष्णु ने ही नारद के अहंकार को तोड़ने के लिए सारी लीला रची थी इसलिए उन्होंने तथास्तु कह दिया। नारद मुनि विवाह की इच्छा से स्वयंवर में पहुंचे लेकिन कन्या ने उनकी ओर देखा तक नहीं। निराश होकर नारद मुनि लौट रहे थे तो उन्होंने जल में अपना प्रतिबिंब देखा। नारद मुनि का चेहरा बंदर के समान था। भगवान विष्णु पर क्रोधित होकर नारद मुनि बैकुंठ पहुंचे। नारद मुनि ने भगवान विष्णु से कहा कि आपने मुझे बंदर का रूप दिया है जिसकी वजह से मेरा विवाह नहीं हो पाया। मैं जिस विरह वेदना को महसूस कर रहा हूं आप भी उस वेदना को महसूस करेंगे।

नारद मुनि ने विष्णु भगवान को शाप दे दिया कि आपको धरती पर अवतार लेना होगा और देवी लक्ष्मी से विरह का कष्ट भोगना होगा। नारद मुनि के इसी शाप के कारण भगवान विष्णु को रामावतार में देवी सीता का वियोग और कृष्णावतार में देवी राधा का वियोग सहना पड़ा।

कलियुग का आरंभ

ईश्वरीय विधान है कि सभी युग के अंत में भगवान का अवतार होता और वह धर्म की स्थापना करते हैं। इसके बाद चल रहा युग समाप्त होता है और नया युग आरंभ होता है। द्वापर में धरती महान योद्धाओं की शक्ति से दहल रही थी। जनसंख्या का भार भी काफी हो गया था। अगर उस युग के योद्धाओं का अंत नहीं होता तो धरती पर शक्ति का असंतुलन हो जाता। शक्ति के संतुलन और नए युग के आरंभ के लिए श्रीकृष्ण ने अवतार धारण किया। महाभारत का महायुद्ध शक्ति के संतुलन और धर्म की स्थापना के लिए किया गया था जिसकी पटकथा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने लिखी थी। महाभारत के महायुद्ध से ही कलियुग के आगमन की आहट शुरू हो गई थी।