मनुष्य को अपने विकास के लिए समाज की आवश्यकता हुयी। इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए समाज की प्रथम इकाई के रूप में परिवार का उदय हुआ। क्योंकि, बिना परिवार के समाज की रचना के बारे में सोच पाना असंभव था। समुचित विकास के लिए प्रत्येक व्यक्ति को आर्थिक, शारीरिक, मानसिक सुरक्षा का वातावरण का होना नितांत आवश्यक है। परिवार में रहते हुए परिजनों के कार्यों का वितरण आसान हो जाता है। साथ ही भावी पीढ़ी को सुरक्षित वातावरण एवं स्वस्थ पालन पोषण द्वारा मानव का भविष्य भी सुरक्षित होता है और उसके विकास का मार्ग प्रशस्त होता है। परिवार में रहते हुए ही भावी पीढ़ी को उचित मार्ग निर्देशन देकर जीवन संग्राम के लिए तैयार किया जा सकता है।
आज भी संयुक्त परिवार को ही सम्पूर्ण परिवार माना जाता है। वर्तमान समय में भी एकल परिवार को एक मजबूरी के रूप में ही देखा जाता है। हमारे देश में आज भी एकल परिवार को मान्यता प्राप्त नहीं है। औद्योगिक विकास के चलते संयुक्त परिवारों का बिखरना जारी है। परन्तु आज भी संयुक्त परिवार का महत्त्व कम नहीं हुआ है। संयुक्त परिवार के महत्त्व पर चर्चा करने से पूर्व एक नजर संयुक्त परिवार के बिखरने के कारणों एवं उसके अस्तित्व पर मंडराते खतरे पर प्रकाश डालने का प्रयास करते हैं। संयुक्त परिवारों के बिखरने का मुख्य कारण है रोजगार पाने की आकांक्षा। बढ़ती जनसँख्या तथा घटते रोजगार के कारण परिवार के सदस्यों को अपनी जीविका चलाने के लिए गाँव से शहर की ओर या छोटे शहर से बड़े शहरों को जाना पड़ता है और इसी कड़ी में कभी-कभी विदेश जाने की आवश्यकता भी पड़ती है।
परंपरागत कारोबार या खेती बाड़ी की अपनी सीमायें होती हैं जो परिवार के बढ़ते सदस्यों के लिए सभी आवश्यकतायें जुटा पाने में समर्थ नहीं होता। अतः परिवार को नए आर्थिक स्रोतों की तलाश करनी पड़ती है। जब अपने गाँव या शहर में नयी संभावनाएं कम होने लगती हैं तो परिवार की नयी पीढ़ी को रोजगार की तलाश में अन्यत्र जाना पड़ता है। अब उन्हें जहाँ रोजगार उपलब्ध होता है वहीं अपना परिवार बसाना होता है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं होता की वह नित्य रूप से अपने परिवार के मूल स्थान पर जा पाए। कभी कभी तो सैंकड़ो किलोमीटर दूर जाकर रोजगार करना पड़ता है। संयुक्त परिवार के टूटने का दूसरा महत्वपूर्ण कारण नित्य बढ़ता उपभोक्तावाद है, जिसने व्यक्ति को अधिक महत्वकांक्षी बना दिया है। अधिक सुविधाएँ पाने की लालसा के कारण पारिवारिक सहनशक्ति समाप्त होती जा रही है और स्वार्थ परता बढ़ती जा रही है। अब वह अपनी खुशियां परिवार या परिजनों में नहीं बल्कि अधिक सुख साधन जुटाने में ढूंढता है जो संयुक्त परिवार के बिखरने का कारण बन रहा है। एकल परिवार में रहते हुए मानव भावनात्मक रूप से विकलांग होता जा रहा है। जिम्मेदारियों का बोझ और बेपनाह तनाव सहन करना पड़ता है। परन्तु दूसरी तरफ उसके सुविधा संपन्न और आत्म विश्वास बढ़ जाने के कारण उसके भावी विकास का रास्ता भी खुलता है। अनेक मजबूरियों के चलते हो रहे संयुक्त परिवारों के बिखराव के वर्तमान दौर में भी संयुक्त परिवारों का महत्त्व कम नहीं हुआ है। बल्कि, उसका महत्व आज भी बना हुआ है। उसके महत्त्व को एकल परिवार में रह रहे लोग बेहतर समझ पाते हैं। उन्हें संयुक्त परिवार के फायदे नजर आते हैं, क्योंकि किसी भी वस्तु का महत्त्व उसके अभाव को झेलने वाले अधिक समझ सकते हैं।
आज विभक्त परिवारों का युग है। छोटा परिवार सुखी परिवार माना जाता है। पति-पत्नी और एक-दो बच्चे वाला विभक्त, छोटा परिवार ही आज का आदर्श बन गया है। एक समय था जब लोग संयुक्त परिवार में रहते थे। संयुक्त परिवार में माता-पिता के अतिरिक्त दादा-दादी, चाचा-चाची तथा उनकी संतानें भी होती थीं। सब लोग मिल-जुलकर परिवार की जिम्मेदारियाँ सँभालते थे। परिवार को बड़े-बुजुर्गों की छत्रछाया मिलती थी। घर के झगड़े घर में ही सुलझा लिए जाते थे।
आज के विभक्त परिवार छोटे भले हों, पर उनकी समस्याएँ बड़ी हैं। मामूली बातों को लेकर पति-पत्नी में ठन जाती है। उनमें आए दिन झगड़े होते रहते हैं। इनके कारण घर की सुख-शांति भंग हो जाती है। घर में कोई बुजुर्ग न होने से उन्हें समझाने वाला कोई नहीं होता। आखिर तलाक तक नौबत आ जाती है।
एकल कुटुंब में कमाने की जिम्मेदारी प्राय: पति की होती है। यदि पति बीमार हो गया या उसकी नौकरी छूट गई तो परिवार मुसीबत में पड़ जाता है। खाने-पीने के लाले पड़ जाते हैं। बच्चों की परवरिश और पढ़ाई-लिखाई पर बुरा असर पड़ता है। संयुक्त परिवार में ऐसी स्थिति नहीं आती।
महँगाई के इस जमाने में केवल पति की कमाई से घर नहीं चल सकता। कमाने के लिए पत्नी को भी घर से बाहर जाना पड़ता है। बच्चे घर में अकेले रह जाते हैं। वे टी. वी. देखने में व्यस्त रहते हैं। इससे उनका समय भी नष्ट होता ही है और उनके चरित्र पर भी असर पड़ता है। माता-पिता की अनुपस्थिति में वे बुरी संगति में पड़ जाते हैं और बुरी आदतें सीखते हैं।
एकल परिवारों की यह स्थिति हमारे समाज को पतन की ओर ले जा रही है। ऐसा लगता है कि संयुक्त परिवार की जितनी आवश्यकता आज है, उतनी पहले कभी नहीं थी।