ट्रम्प टैरिफ प्रभाव एवं इसके दुष्प्रभाव को रोकने के उपाय - एक विश्लेषण

संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारतीय वस्तुओं पर 50 प्रतिशत आयात शुल्क (टैरिफ) लगाया है जिसका प्रभाव अरबों डॉलर के व्यापार और दुनिया के सबसे अधिक जनसंख्या वाले राष्ट्र में हजारों नौकरियों पर पड़ने की संभावना है। यह आयात शुल्क बुधवार (अगस्त 27, 2025) से प्रभावी हो गया है। यूएस ने पहले 30 जुलाई को भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया था और एक सप्ताह बाद अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया। इसका कारण भारत द्वारा रूस से तेल खरीदना बताया गया है। अब नया 50 प्रतिशत टैरिफ दर, जो अमेरिका के उच्चतम टैरिफ में से एक है, रत्न और आभूषण, परिधान, जूते, फर्नीचर से लेकर औद्योगिक रसायनों तक की कई वस्तुओं पर लागू हो गया है। यह भारी टैरिफ दर भारत को निर्यात प्रतिस्पर्धा मेंबाधा उत्पन्न करेगा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के देश को एक प्रमुख विनिर्माण केंद्र में बदलने के आर्थिक उद्देश्यों को कमजोर कर सकता है। हाल तक, अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जिसकी वार्षिक द्विपक्षीय व्यापार मूल्य $212 अरब है। इस टैरिफ से कौन से उद्योग सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे और इसका अमेरिका-भारत संबंधों परक्या असर पड़ेगा ? कौन से क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होंगे ? नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक, ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) ने द फाइनेंशियल टाइम्स अखबार को बताया कि अमेरिकी बाजार में
भारतीय निर्यात इस साल $86.5 अरब से घटकर 2026 में लगभग $50 अरब हो सकता है, जो इस टैरिफ का दुष्परिणाम होगा। GTRI ने कहा कि वस्त्र, रत्न, आभूषण, झींगा और कालीन सबसे अधिक प्रभावित होंगे, और इन क्षेत्रों को निर्यात में 70 प्रतिशत की गिरावट का सामना करना पड़ सकता है, जिससे सैकड़ों / हजारों नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं। द वायर समाचार साइट के संस्थापक संपादक एमके वेणु ने बताया कि, “इसका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा।” उन्होंने कहा, “हालांकि भारत
अमेरिका के लिए बड़ा व्यापारिक भागीदार नहीं है, लेकिन भारत के लिए अमेरिका सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है,” उन्होंने यह जोड़ते हुए कहा कि निर्यात वस्त्र, परिधान, रत्न और आभूषण, मछली पालन, चमड़े की वस्तुएं और हस्तशिल्प के क्षेत्रों में प्रभावित होगा। ये क्षेत्र “बहुत श्रम-गहन” हैं। छोटे और मध्यम आकार की कंपनियाँ, जो इस झटके को सहन नहीं कर सकतीं, इसके बारे में वेणु ने उन क्षेत्रों के संदर्भ में कहा, जिन पर टैरिफ का प्रभाव पड़ेगा। “वै अपने व्यवसायों को वियतनाम, बांग्लादेश और पाकिस्तान सहित अन्य पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के हाथों खो देंगे।”
क्या किसी उद्योग को छूट दी जाएगी ? भारतीय फार्मास्यूटिकल उद्योग को तुरंत टैरिफ बढ़ोतरी से छूट दी गई है क्योंकि अमेरिका में सस्ती स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में जेनेरिक दवाओं का महत्व है। अमेरिकी जेनेरिक दवा आयात का लगभग आधा भाग भारत से आता है। 2024 में, भारत के फार्मास्यूटिकल निर्यात अमेरिका में लगभग $8.7 बिलियन तक रहा। इस बीच, सेमीकंडक्टर और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स भी अलग, क्षेत्र-विशिष्ट अमेरिकी टैरिफ में शामिल होंगे। अंत में, एल्यूमिनियम और स्टील उत्पादों के साथ-साथ यात्री वाहन भी 50 प्रतिशत के सामान्य दर से अलग टैरिफ के अधीन होंगे। भारत सरकार इस प्रभाव को कम करने के लिए क्या कर रही है ?
प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों की रक्षा, कर में कटौती और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने का संकल्प लिया है। मोदी जी ने नई दिल्ली के लाल किले में अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में कहा, “भारत को आत्मनिर्भर बनना चाहिए – विवशतावश नहीं अपितु संकल्प से” वैश्विक स्तर पर आर्थिक स्वार्थ बढ़ रहा है और हमें अपनी कठिनाइयों पर बैठकर रोना नहीं चाहिए अपितु इस समस्या के निदान का समाधान ढूंढ़ना चाहिए। नई दिल्लीके फोरे स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में भू-राजनीति के प्रोफेसर फैसल अहमद कहते हैं कि भारत की घरेलू उत्पादन क्षमता बढ़ाना नया नहीं है। “यह मोदी जी द्वारा COVID-19 महामारी के दौरान लिया गया एक नीतिगत विकल्प था। ट्रम्प के टैरिफ इस प्रक्रिया को तेज कर सकते हैं”। इस वर्ष के बजट में घोषित 12 अरब डॉलर की आयकर छूट के अतिरिक्त, भारतीय प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि व्यवसाय
शीघ्र ही एक “भारी कर बोनस ” की अपेक्षा कर सकते हैं और इस घोषणा को मोदी जी ने वास्तविकता में परिणित भी कर दिया। वस्तु एवं सेवा कर में सुधार (Next Gen GST 2.0) 22 सितम्बर 2025 से प्रभावी भी हो गया है। यह सीधे मासिक खाद्य बिल को कम करता है और उपलब्ध आय बढ़ाता है। आवश्यक वस्तुओं पर जीएसटी को 18% से 5% तक घटाकर, बीमा और खाद्य आवश्यकताओं को छूट देकर, और कारों एवं उपकरणों पर कर दर को 28% से 18% तक तार्किक बनाकर, ये सुधार सीधे घरों को सशक्त बनाते हैं, प्रमुख क्षेत्रों को उन्नत करते हैं, और भारत को वैश्विक झटकों से सुरक्षित रखते हैं। यह, लगभग पांच मिलियन राज्य कर्मचारियों और 6.8 मिलियन पेंशनभोगियों के वेतन में बढ़ोतरी के साथ (जो अगले साल लागू होगी), भारत की अर्थव्यवस्था को कुछ वृद्धि बनाए रखने में सहायक हो सकते हैं।
एक भारतीय वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि टैरिफ से प्रभावित निर्यातकों को वित्तीय सहायता और अन्य लाभ प्रदान किए जाएंगे ताकि वे लैटिन अमेरिका और मध्य पूर्व जैसे बाजारों में विविधीकरण कर सकें। वेणु, जो फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस समाचार पत्न के पूर्व प्रधान संपादक भी हैं, कहते हैं कि केंद्रीय बैंक और प्रधानमंत्री की ओर से आश्वासन आया है, लेकिन कोई वास्तविक नीति नहीं है। “सब्सिडी का वित्तपोषण कौन करेगा ? क्या यह करदाताओं द्वारा किया जाएगा या उन बड़ी कंपनियों में से कुछ द्वारा जो रूसी तेल निर्यात से लाभान्वित हुईं ? तो, यह स्पष्ट नहीं है कि सब्सिडी कैसे प्रदान की जाएगी। भले ही सब्सिडी प्रदान की जाए, यह इतने बड़े झटके को कम करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी,” वेणु ने बताया। भारतीय मीडिया ने बताया कि अमेरिकी बाजार पर अत्यधिक निर्भरता पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। भारत बहुपक्षीय व्यापार समझौतों में शामिल होने की संभावना का भी पता लगा सकता है – जो कदम उसने पहले टाल दिया था। देश ने दर्जनों देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौतों पर भी हस्ताक्षर किए हैं, और इस वर्ष के अंत तक यूरोपीय संघ के साथ एक व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने के प्रयास चल रहे हैं। फोरे स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट के अहमद ने कहा कि ये टैरिफ “भारत की जीडीपी पर महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं डालेंगे… शायद लगभग 1 प्रतिशत” । निर्मल बैंग की प्रमुख
अर्थशास्त्री टेरेसा जॉन ने अहमद की बात को दोहराया और रॉयटर्स को बताया कि “हम लगभग $36 बिलियन, या जीडीपी के 0.9 प्रतिशत का [नकारात्मक] प्रभाव अनुमानित करते हैं,” । इस वर्ष के प्रारम्भ में, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत की अर्थव्यवस्था के 2026 में 6.4 प्रतिशत बढ़ने का पूर्वानुमान लगाया था। यह बदल भी सकता है।
ट्रम्प ने टैरिफ के लिए क्या कारण बताया ?
व्यापार युद्ध को कम करने के लिए बातचीत पांच दौर की वार्ता के बाद विफल हो गई, ट्रम्प के भारत से रूसी तेल के आयात को रोकने के आह्वान के बाद । उच्च अमेरिकी शुल्क के लगातार खतरे के उपरान्त, भारत ने इस वर्ष रूसी कच्चे तेल की खरीद जारी रखी है – यद्यपि घटते स्तरों पर । भारत को रूस और पश्चिम के बीच
राजनीतिक प्रतिपक्ष के कारण भी प्रभावित होना पड़ा है। शीर्ष ट्रम्प अधिकारियों, जिनमें अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट शामिल हैं, ने भारत पर यूक्रेन के विरुद्ध रूस के युद्ध को वित्तपोषित करने का आरोप लगाया। उन्होंने यह इंगित किया कि भारत का रूसी तेल आयात यूक्रेन युद्ध से पहले 1 प्रतिशत से बढ़कर 37 प्रतिशत हो गया। उन्होंने भारत पर “अत्यधिक लाभ कमाने की प्रवृत्ति” का आरोप लगाया। भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत “अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगा” और यह इंगित किया कि रूसी तेल आयात बाजार की ताकतों और देश की 1.4 बिलियन लोगों की ऊर्जा आवश्यकताओं से प्रेरित थे। भारत ने भी वॉशिंगटन पर रूसी तेल खरीदने के लिए भारत को चुनिंदा रूप से निशाना बनाने का आरोप लगाया, जबकि यूरोपीय संघ और चीन – जिनके साथ ट्रम्प ने व्यापार समझौते किए हैं – दोनों रूस से ऊर्जा आयात करना जारी रखते हैं। ट्रम्प ने एक शुल्क युद्ध शुरू किया है जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था डांवांडोल हो गई है, और भारत द्वारा लगाए गए उच्च कस्टम ड्यूटी पर प्रकाश डाला है। अमेरिका के अनुसार “भारत विश्व में लगभग सबसे अधिक सीमा शुल्क वाला राष्ट्र रहा है। भारत को बेचना बहुत कठिन है क्योंकि वहाँ व्यापार बाधाएँ और बहुत कड़े टैरिफ हैं,” ट्रम्प ने फरवरी में प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान कहा। भारत ने अमेरिकी कुछ औद्योगिक वस्तुओं पर लगाए गए लेवी हटाने और रक्षा और ईंधन की खरीद बढ़ाने का वचन दिया – ताकि व्यापार असंतुलन के मामले में ट्रम्प की शिकायतें कम की जा सकें। लेकिन उसने अपने विशाल कृषि और डेयरी क्षेत्र को सस्ते अमेरिकी आयात के लिए खोलने से मना कर दिया। वस्तुतः अमेरिका अपने सरप्लस एग्रीकल्चर सामान को भारत में डाल कर अपने देश के किसानों के बचाना चाहता है। अमेरिका के पास इस समय निम्नांकित सरप्लस है:
सोयाबीन – 20 मिलियम टन सरप्लस है।
मक्का – 63 मिलियन टन सरप्लस है ।
गेंहूँ – 30 मिलियन टन सरप्लस है।
पोल्ट्री उत्पाद: 2 टन सरप्लस हैं।
बीफ का उत्पाद : 3 टन सरप्लस है।
डेयरी उत्पाद :- 3 टन सरप्लस है,
यदि अमेरिका उपरोक्त सरप्लस को एक्सपोर्ट नहीं कर पाता तो उसे 50-55 बिलियन डालर का नुकसान होगा। वहां के किसानों को इन फसलों से 70% का नुकसान होगा और लाइव स्टाक से 30% का नुकसान हो सकता है इसके अतिरिक्त अमेरिका को अपने किसानों को 20-25 बिलियन डालर की अतिरिक्त सब्सिडी
देनी पड़ेगी। ट्रम्प सरकार अपने किसानों का वोट बैंक खराब नहीं करना चाहती और ना ही यह नुकसान झेलना। उसे भारतीय किसानों के हित में बनाये कानून से कोई मतलब नहीं, वह अपने किसान लोगों के लिए एक बड़ा बाजार खोज रहा है। भारत में सरसों तेल के बाद सब से अधिक प्रयोग में आने वाला सोयाबीन तेल और उसके उत्पाद हैं। अमेरिका की मक्का भारत में आया होने पर उसका भाव 5 रुपये किलो पड़ता है जब कि भारतीय किसान द्वारा उत्पादित मक्का 24 रुपये प्रति किलो । भारत के पास अमेरिकन मक्का लेने का बहाना है। देर सवेर भारत उपरोक्त तीन पदार्थ लेने के लिए संभवतः मान सकता है और अपने किसान यूनियन को मना सकता है।
“प्रधानमंत्री मोदी किसी भी नीति के विरुद्ध दीवार की तरह खड़े हैं जो भारत हितों को खतरे में डालती हो । जबहमारे किसानों के हितों की रक्षा की बात आ जाएगी, तो भारत कभी समझौता नहीं करेगा। संदर्भ के लिए, भारत द्वारा कृषि आयात पर लगाई गई साधारण औसत सीमा शुल्क दर 2024 के अंत में 39 प्रतिशत थी। इसके विपरीत, अमेरिका ने अपने कृषि आयात पर 4 प्रतिशत शुल्क लगाया था। ट्रम्प को यह पसंद नहीं आया। पिछले वर्ष, भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगभग $212 अरब था, जिसमें भारत के पक्ष में लगभग $46 अरब का व्यापारिक अंतर था। ट्रम्प के कड़े रुख ने भारत को प्रतिस्पर्धी चीन के साथ संबंध सुधारने के लिएविवश कर दिया – जो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और भारत के बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है, जिसका द्विपक्षीय व्यापार लगभग $136 अरब है। भारत रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के स्वागत की तैयारी भी कर रहा है, क्योंकि भारत मास्को के साथ अपने पारंपरिक संबंधों को सुदृढ़ करने की दिशा में कदम उठा रहा है। “भारत में अधिकांश रणनीतिक विशेषज्ञ पहले ही कह चुके हैं कि भारत और अमेरिका के बीच विश्वास अब सबसे निचले स्तर पर है। इसलिए यह आकलन किया गया है कि भारत रूस, चीन और ब्रिक्स की ओर संतुलन बनाएगा,” अनुभवी भारतीय पत्रकार वेणु ने कहा। भारत अमेरिकी द्वारा लगाए गए 50% शुल्क के प्रभाव को कम करने के लिए कई रणनीतियों को अपनाने की योजना बना रहा है: विविधीकरण और बाजार अन्वेषण – वैकल्पिक बाजार ।
एमएसएमई के लिए: माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम (MSMES) भारत के निर्यात वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण हैं, और सरकार उन्हें टैरिफ चुनौतियों से निपटने में सहायता करने के लिए विशेष समर्थन प्रदान कर सकती है।
रणनीति एवं नीतिगत उपाय:
संरचनात्मक प्रतिस्पर्धात्मकता का निर्माण – निर्यात इकोसिस्टम विकास – भारत को एक ऐसा निर्यात इकोसिस्टम बनाना होगा जो भूराजनीतिक झटकों, मूल्य युद्धों और बदलती उपभोक्ता प्राथमिकताओं का सामना कर सके। घरेलू खपत घरेलू खपत को बढ़ावा देने से कम निर्यात से उत्पन्न कुछ झटकों को अवशोषित करने में सहायता मिल सकती है।
रणनीति की शुरुआत :
2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने स्पष्ट संकेत दिया था कि भारत की सबसे बड़ी चुनौती चीन नहीं, बल्कि अपनी आर्थिक कमजोरियां हैं – डॉलर पर निर्भरता, तेल आयात और हथियारों में विदेशी पकड़ । समाधान के रूप में डोभाल ने सुझाव दिया कि भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा मजबूत करनी होगी, नौसेना को सशक्त बनाना होगा और घरेलू बाजार को रणनीतिक ताक़त के रूप में विकसित करना होगा। इसके बाद भारत ने एक दीर्घकालिक ढांचा बनाकर उसपर क्रियान्वन प्रारम्भ किया, क्रमबद्ध तैयारी की :
2014 में मेक इन इंडिया अभियान की शुरुआत हुई।
2015 में कतरगैस डील नए सिरे से तय की गई।
2016-17 में UPI और GST ने डिजिटल अर्थव्यवस्था की नींव
डाली।
2018 में अमेरिकी पाबंदियों से बचने के लिए वैकल्पिक भुगतान
तंत्र तैयार किया गया।
2019 की इलेक्ट्रॉनिक्स पॉलिसी ने स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा
दिया।
2020 में ₹1.97 लाख करोड़ की PLI योजना आई।
2021 में रणनीतिक तेल भंडारण बढ़ाया गया।
2022 में INS विक्रांत और क्षेत्रीय व्यापार समझौते सामने आए ।
2023 में रुपये में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार शुरू हुआ।
2024 में अग्नि-V परीक्षण और चाबहार पोर्ट पर प्रगति हुई।
2025 में सर्विस एक्सपोर्ट $387.5 अरब तक पहुंच गया,
आयकर / वस्तु एवं सेवा करों में सुधार हुआ।
आर्थिक और सामरिक छलांग :
2013 की तुलना में, जब भारत की GDP $1.86 ट्रिलियन थी, 2025 में यह $4.19 ट्रिलियन तक पहुंच गई। क्रयशक्ति समानता (PPP) के आधार पर भारत $17.65 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बन चुका है। विदेशी निवेश (FDI) $300 अरब से ऊपर है और गरीबी का स्तर आधा हो चुका है। ये आंकड़े मात्र विकास की गाथा नहीं हैं, अपितु उस कवच का प्रमाण हैं जिसने भारत को बाहरी दबाव से सुरक्षित किया है। वस्तुतः, भारत पिछले एक दशक से जिस दिशा में अपनी आर्थिक और सामरिक तैयारी कर रहा है, उसी का परिणाम है कि अमेरिकी टैरिफ अब निर्णायक दबाव नहीं बना पा रहे। यही कारण है कि ट्रम्प के टैरिफ बयान ने वैश्विक हलचल तो पैदा की, परन्तु भारत पर इसका प्रभाव प्रायः शून्य रहा। जहां यूरोपियन यूनियन ने विरोध दर्ज कराया, जापान ने तुरंत वार्ता की पहल की और चीन ने पलटवार किया, वहीं भारत चुप रहा। यह चुप्पी कमजोरी नहीं, बल्कि आत्मविश्वास का प्रतीक थी। वस्तु एवं सेवा करों में सामयिक सुधार ने अर्थव्यवस्था को और सशक्त करने का कार्यकिया है। इसके परिणामस्वरूप विश्व बैंक ने भारत की अर्थव्यवस्था की प्रगति 6.5 प्रतिशत रहने की आशा व्यक्त की है जो पहले 6.3 प्रतिशत अनुमानित थी। स्वदेशी “जोहो सॉफ्टवेयर कंपनी” का विकास एवं इसमें निरंतर गतिशील प्रगति गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी अमेरिकी कंपनियों को टक्कर दे रही है। हमें विश्वास है कि निकट भविष्य में यह पश्चिमी कंपनियों पर हमारी निर्भरता काम करेगी।
निष्कर्ष:
अमेरिकी टैरिफ का प्रभाव न दिखना इस बात का संकेत है कि भारत अब वैश्विक राजनीति में पुराने प ति पर नहीं चल रहा। वह नतो घबराता है, न ही दबाव में झुकता है। यह बदलाव किसी एक फैसले का परिणाम नहीं, अपितु एक दशक लंबी सुनियोजित रणनीति का परिणाम है। ट्रम्प अत्यन्त अप्रत्याशित हैं, भविष्य में वे क्या करेंगे अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता, परन्तु यह बात तो निश्चित है कि “देश हमारा नहीं झुकेगा”
