द्वितीय अवतार.....कश्यप अवतार

भगवान विष्णु का दूसरा अवतार कश्यप अवतार है। यह अवतार उस समय हुआ था जब देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। इस कथा का आरंभ उस समय हुआ था जब महर्षि दुर्वासा किसी कार्य से इंद्रलोक गए और किसी कारणवश इन्द्र देव से नाराज़ होकर देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया। देवता शक्तिहीन हो गए तो दानवों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। जिसमें शक्तिहीन देवता हार गए और देवताओं के कई सैनिक मारे गए। देवता इंद्रलोक छोड़ कर यहां वहां भागने लगे। सभी देवता श्री हरि के पास गए और उनसे प्रार्थना करने लगे। देवराज ने कहा हे करूणानिधान हमारी रक्षा कीजिये। महर्षि दुर्वासा ने हमें शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया है जिस वजह से राजा बलि ने पृथ्वीलोक और इन्द्रलोक पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया है। दानवों की वजह से देवता इंद्रलोक छोड़कर यहाँ वहाँ भाग रहे हैं इसीलिए हम आपकी शरण में आये है हमारी रक्षा कीजिये।
विष्णु भगवान बोले हे देवेंद्र आप सभी की शक्तियां वापस तो आ सकती हैं पर शक्तियां प्राप्त करने का साधन बहुत ही कठिन और दुर्गम होगा। आप सभी की शक्तियां वापस तभी आएंगी जब सभी देवता अमृत का पान करेंगे। अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करना होगा जिसमें सभी तरह की जड़ी बूटियों को डाल देना होगा। समुद्र मथने के लिए मंदराचल पर्वत तथा बासुकीनाग की सहायता लेनी होगी। समुद्र मंथन में से कई तरह की अलौकिक वस्तुएं प्राप्त होंगी। पर, याद रखना वे वस्तुएं दानवों को प्राप्त नहीं होनी चाहिए। वे वस्तुएं दानवों को प्राप्त होना देवताओं के लिए हितकारी नहीं होगा। अगर वे वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए शक्ति का प्रदर्शन करने लगें तो उन्हें वस्तुएं लेने देना। जब समुद्र मंथन में से अमृत प्राप्त होगा तो अमृत का पान मैं बस तुम्हें अर्थात देवताओं को कराऊंगा। अगर दानव अमृत का पान कर लेंगे तो सम्पूर्ण सृष्टि में हाहाकार मच जाएगा।
तब विष्णु भगवान बोले हे देवेंद्र तुम राजा बलि के पास जाओ और उन्हें समुद्र मंथन में भाग लेने के लिए प्रस्ताव दो। सभी देवतागण भगवान श्री हरि को प्रणाम करके वहां से चले गए। सभी देवतागण राक्षस राज बलि के पास पहुंचे देवराज बोले हे राक्षस राज बलि मैं आपके लिए एक प्रस्ताव लेकर आया हूँ यह प्रस्ताव अमृत पान करने का है हम देवतागण युद्ध करके थक चुके हैं इसीलिए हम दोनों राक्षस और देवता अमृत पान करके अमर हो जाएंगे। इस प्रकार आपके और हमारे बीच का युद्ध भी समाप्त हो जाएगा। इसलिए हमारे ऊपर किसी भी शस्त्रों का कोई भी प्रभाव नही पड़ेगा। इंद्रदेव का यह प्रस्ताव सुनकर राजा बलि इस प्रस्ताव के लिए सहमत हो गए समुद्र मंथन शुरू कर दिया। समुद्र मंथन के लिए मंदार पर्वत का प्रयोग किया गया तथा समुद्र मंथन के लिए बासुकिनाग को डोर बनाया गया। समुद्र मंथन से कई प्रकार की अलौकिक वस्तुवें और देवियाँ प्रकट हुईं। कुछ वस्तुओं पर देवताओं ने अपना आधिपत्य जमाया और कुछ वस्तुओं पर राक्षसों ने। सम्पूर्ण सृष्टि में उस समय हाहाकार मच गया जब समुद्र मंथन में से विष निकला। सम्पूर्ण सृष्टि त्राहिमाम त्राहिमाम कर रही थी। तब देवताओं ने भगवान भोलेनाथ से सृष्टि की रक्षा की प्रार्थना की और भगवान भोलेशंकर ने उस विष को पीकर सम्पूर्ण सृष्टि को फिर से बचा लिया।
समुद्र मंथन फिर से शुरू हो गया। जब मंथन शुरू हुआ तब मंदराचल पर्वत समुद्र में डूबने लगा। इस स्थिति को देख भगवान श्री हरि ने कछुए का रूप धारण किया और मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर उठा लिया। समुद्र मंथन फिर से शुरू हो गया। समुद्र मंथन में से कई और दिव्य वस्तुएं प्राप्त हुईं जैसे कल्पवृक्ष, कामधेनु गाय आदि।
अन्ततः समुद्र मंथन में से अमृत प्राप्त हुआ जिसे पाने के लिए देवताओं और दानवों के बीच फिर से युद्ध छिड़ गया तब भगवान विष्णु ने एक मोहिनी रूप धारण किया और चालाकी से सभी देवताओं को अमृत पान और राक्षसों को जलपान करा दिया। पर राक्षसों में से एक राक्षस राहु ने भगवान विष्णु की चालाकी को पहचान लिया और देवता का रूप धारण करके देवताओं की पंक्ति में बैठकर अमृत पान किया। जैसे ही भगवान विष्णु को यह ज्ञात हुआ कि यह राक्षस है तो उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से उसका गला काट दिया पर वह राक्षस तो अमृत पान कर चुका था इसीलिए उसका सर और धड़ अलग होकर भी जीवित रह गया और उसे राहु केतु के नाम से जाना गया।
यह थी भगवान विष्णु के कश्यप अवतार की कहानी।