प्यार मांगे नहीं दे जाएँ खुशी से,
वादा टूटकर भी निभता है उसी से,
राधे का मोहन कहें - ये किससे,
दिल चुराने वाली दिल बनकर दिल बदल गई कैसे !
अब ना मेरा कुछ मेरा है,
अब ना तेरा कुछ तेरा है,
गिरधर की एक रास प्रिया राधिका प्रेम जिया है,
समय में लय होने को मिलते हैं दो प्राण,
प्यार ही है खुशियों का दामन दान,
जीते जी मिले नहीं धरती से आकाश,
राधा बिन हुआ नहीं वृंदावन में रास,
मर कर भी जो मिल जाते हैं वो है प्रेम खास,
निधि वन में सजती है आज भी पूरणमास,
नाच - गान के रंग दो जोड़ों के संग,
महके माटी, महके तुलसी, उठे मौज तरंग,
कलयुग को भी दिखता है राधा कृष्ण का संग ,
प्यार अमर है, आत्मा अमृत,
राधा- कृष्ण भी एक दूजे में
श्याम छटा में चंद्र कला से एक हैं संयुक्त,
प्यार ही जीवन प्यार ही मोहन
प्यार ही हर राधा का आराधन,
प्यार ही है हर भक्त का परम भगवत धन।
अमित मिश्रा, सरायकेला
विष्मृत यादें
बचपन जैसी वो रात नहीं मिलती,
अब तारों की वो बारात नहीं मिलती...
बचपन में तारों का मेला था,
आज तो चांद भी अकेला था।
हंसना था, हंस के रोना था
हम सब को संग ही होना था।
दिलों की अब वो मुलाकात नहीं मिलती,
बचपन जैसी वो रात नही मिलती...
वो हंसी वो ठिठोली,
वो यारों की टोली
जहाँ हम गिरते थे,
गिर कर ही तो संभलते थे...
जीवन इक सपना था,
बस यही खेल अपना था...
एहसासों की वो सौगात नहीं मिलती...
बचपन जैसी वो रात नहीं मिलती...
इमारतों की भीड़ में,
रोशनियों का शोर है
खुद से आगे कैसे निकलूं
बस यही अब होड़ है
रिश्तों की इस झिलमिलाहट में
वो पुरानी मिठास नहीं मिलती...
बचपन जैसी वो रात नही मिलती...
अब तारों की वो बारात नही मिलती...
अंकुर मिश्रा, कानपुर
पावस की प्रथम बरसात
गर्मी से व्याकुल धरती का आर्त्तनाद सुन
घन समूह उठ पड़े मचलने नीलाम्बर पर
करने को फिर तृप्त दग्ध धरती का अंतर
धधक रहा था जो अविरल रवि किरणें सहकर
अब सरसेंगी सूनी वसुधा पा अमृत रस
था अपूर्ण जिसके बिन उसका सारा वैभव
दग्ध भूमि फिर शस्य श्यामला हो जायेगी
जैसे हो निराश मन में आशा का उद्भव
अब बरसेंगे गरजेंगे हहराएँगे ये
जन जन में फिर नई चेतना ये लाएंगे
अब गूंजेंगे पुनः षोडषी के सुर रुनझुन
जिसको सुन बांके छैले फिर ललचाएँगे
किन्तु इसी पावस ने कितने ही उर मन में
एक अनबुझी आग और फिर भड़का दी है
आशा नव आयाम नहीं मिल पाया इससे
घन समूह ने दबी वेदना उकसा दी है
डॉ. लक्ष्मी शंकर त्रिपाठी, कानपुर
अनगिनत तारे गगन में
एक सूरज ही हमारे काम का।
कृष्ण गौतम भीष्म गाँधी,
या कि तुलसी सूर नानक।
ये सभी हैं पथ प्रदर्शक,
हम सभी इनके हैं बालक।
अनुकरणीय हैं आदर्श जिनके,
वह नाम प्रभु श्री राम का।
एक सूरज ही हमारे काम का।।
नाम अगणित हैं जिन्हें,
हम सभी सम्मान करते।
जिनके सुखद आशीष की,
छाँव स्नेहिल नित्य गहते।
एक अपना पिता ही,
ईश्वर धरा के धाम का।
एक सूरज ही हमारे काम का।।
सन्तान बनिता गेह परिजन,
आदि से जो नेह बन्धन।
तोड़ जाता है सभी कुछ,
काल का जब चले स्यंदन।
अमर है वह स्नेह जीवन,
देश के जो काम का।
अनगिनत तारे गगन में,
एक सूरज ही हमारे काम का।।
श्याम मनोहर शुक्ल, रायबरेली
यूँ ही आते रहना
यूं ही आते रहना, हक़ीक़त में ना सही
ख्यालों में ही समाते रहना,
तुम यूं ही आते रहना
मन की प्यास है जो वो नज़रों से ना सही
यादों में ही यादों से बुझाते रहना,
तुम यूं ही आते रहना..
दिल हर पल पास जाने की चाह रखता है,
जानता है, ना मिल सकेंगे हम कभी
फिर भी साथ जीने की चाह रखता है
ना दिल में सही पर ख्यालों में जगह देना
तुम यूं ही आते रहना ..
वक़्त गुज़र जायेगा लम्हे याद आते रहेंगे
तुम्हारे साथ जो पल गुजारे, हमे सताते रहेंगे
क्यों नहीं हैं हम पास एक दूसरे को पता नहीं
दिल है पर पास ये बात ना भूलना कभी
हक़ीक़त में ना सही पर ख्यालों में ही आते रहना
दिल है तुम्हारे हवाले ना ये भुलाना कभी
तुम बस यूं ही आते रहना ..
उमेश बद्री शर्मा 'अनंत', हावड़ा
मन की शक्ति
क्या सुंदर और असुंदर है।
ये मन पर करता निर्भर है।।
जब अपना अंतर निर्मल है।
तो सारी दुनिया निश्छल है।।
मन ही देता है नया राग।
मन ही देता है नयी दृष्टि।।
मन ही समष्टि का उन्नायक।
मन ही करता है नयी सृष्टि।।
मन शीतल, कोमल, प्रांजल भी।
मन चंचल भी है अविचल भी।।
मन रामचरित सा पावन भी।
मन में बसता है रावण भी।।
मन में करता है रमण सदा।
इस सकल भुवन का मूर्तिकार।।
मन के बल पर करता मानव।
दुर्गम उदयाचल पर विहार।।
मन हार गया तो हार गए।
मन जीत लिया तो हुई जीत।।
प्रतिकूल हुआ तो शत्रु बना।
अनुकूल हुआ तो बना मीत।।
जिसने इस मन को साध लिया।
वो मानव परम मनस्वी है।।
मन की क्षमता पहचाने जो।
होता बस वही यशस्वी है।।