सम्पादक की ओर से

आप सबकी अपनी ‘जनमैत्री’ पिछले अंकों की तरह इस बार भी पठन सामग्रियों में विविधता के साथ नये कलेवर और नये अन्दाज में मानसिक खुराक लेकर पेश है। पत्रिका का यह चौथा अंक है। यह अंक ऐसे समय में पढ़ने को मिल रहा है, जब देश अपनी स्वतंत्रता की गौरवगाथा का गुणगान कर रहा है। आजादी के ‘अमृतकाल’ के दौर में हमने ‘क्या खोया, क्या पाया’ पर तो विचार करना ही है, लेकिन उपलब्धियों को अलग सोच के साथ देखना होगा। हमें नकारात्मक चिन्तन के दलदल से निकल कर सकारात्मक दृष्टिकोण से दृष्टि डालनी होगी, तो पता चलेगा कि 77 वर्षों में हमारा देश कहां से कहां पहुंच गया। बदलाव की बयार बह रही है। तरक्‍की की राह पर सरपट दौड़ का सिलसिला बेरोकटोक जारी है।

देश के शासकों की दूरदर्शी सोच और सामूहिक कोशिशों के नतीजे साफ-साफ दिख रहे हैं। सचमुच कुछ उपलब्धियां स्वभाविक रूप से ही गौरव की अनुभूति कराती हैं। आज हमारे देश की दुनियाभर में चर्चा हो रही है। विश्‍व के समृद्ध और शक्‍तिशाली राष्ट्रों के साथ तुलना हो रही है। सबकी नजरें भारत पर टिकी हुई हैं। अर्थव्यवस्था के लिहाज से अक्सर दूसरे समर्थ देशों के साथ जिक्र होता है। अर्थशास्त्री हों या फिर अन्तर्राष्ट्रीय निवेशक, भारत के प्रति सभी का आकर्षण बढ़ा है। आत्मनिर्भर बनने का जन-मानस के बीच जो उत्साह दिख रहा है, वह निश्‍चित रूप से मजबूत-ताकतवर हिन्दुस्तान के भविष्य का संकेत है। इसे अब कोई नजरंदाज नहीं कर सकता। रक्षा के क्षेत्र में उत्तरोत्तर आत्मनिर्भर होने के प्रयास सराहनीय और दूरदर्शितापूर्ण सोच का द्योतक हैं। आज के समय में हम हथियार सिर्फ खरीदते नहीं, बल्कि बेचते भी हैं। रक्षा उत्पादों के निर्माण का एक हिस्सा निर्यात हो रहा है।

चन्द्रयान-3 अगले कुछ ही दिनों में नया इतिहास रचने वाला है। चन्द्रयान-3 का सफर अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी हमारे बढ़ते कदमों का गवाह है। विकास की यात्रा कभी रुकती नहीं, कभी थमती नहीं। चलते ही जाना है। अंत नहीं है। इसलिए सबकुछ हासिल हो गया। ऐसा भी नहीं है। अभी भी हमें बहुत कुछ हासिल करना है। प्रयत्नशीलता का भाव बनाए रखना है। ऐसा भी नहीं है कि कमजोरियां, खामियां और जरूरतें खत्म हो गई हैं। हमें शिक्षा, स्वास्थ्य और युवाओं की बढ़ती फौज की जरूरतें पूरी करनी हैं। बुनियादी सुविधाओं को बढ़ाना है, मजबूत करना है। देश के गांवों में अभी विकास का, आधारभूत सुविधाओं का अभाव है, जिस पर गौर करना है, लेकिन साथ ही साथ इस बात का भी अहसास करते रहना है कि पिछले कुछ समय के दौरान बहुत कुछ हासिल भी हुआ है। ग्रामीण भारत की तस्वीर बदली है और बदल रही है। सड़क, बिजली, पानी सरीखी सुविधाएं विकसित हुई हैं। राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण लगातार जारी है। रोजाना प्रति किलो मीटर के मुकम्मल अनुपात से सड़कें बन रही हैं। अगर जरूरतों की लम्बी फेहरिस्त है तो उपलब्धियों की भी लम्बी शृंखला है। आइए, हम सब राष्ट्रीय पर्व पर अपने अधिकारों के साथ ही कर्तव्यों का भी बोध करें। पाठकों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

प्रदीप शुक्ल