श्री राम की नगरी अयोध्या और दीपोत्सव

दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः। दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ॥
शुभं करोतु कल्याणम् , आरोग्यं सुखसम्पदः । द्वेषबुद्धिविनाशाय , आत्मज्योतिः नमोऽस्तुते ॥
आत्मज्योतिः प्रदीप्ताय , ब्रह्मज्योतिः नमोऽस्तुते । ब्रह्मज्योतिः प्रदीप्ताय , गुरुज्योतिः नमोऽस्तुते ॥

हमारा धर्म सनातन धर्म है, इस धर्म में पूजा या किसी भी शुभ कार्य में दीप प्रज्वलित करने की प्राचीन परंपरा है। जलता हुआ दीप जीवन से नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकारात्मक ऊर्जा को प्रसारित करता है। दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति। दीपावली के दिन धन और ऐश्वर्य की देवी मां लक्ष्मी और प्रथम पूज्य, बुद्धि के दाता श्री गणेश जी की पूजा की जाती है। इसी दिन प्रभु श्री राम चौदह वर्ष के पश्चात अयोध्या वापस आए थे। उनके आने की खुशी में अयोध्या के लोगों ने अपने प्रभु के स्वागत में घी के दिए जलाए थे। तभी से अर्थात - त्रेतायुग से यह पर्व अनरवत पूरे भारत में प्रतिवर्ष पूरी श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

अयोध्या का वो दिन कैसा होगा जब अनगिनत दीप कतारबद्ध हो जगमगाए होंगे। मन श्री रामचंद्र जी की पावन नगरी अयोध्या के उस काल खंड में भ्रमण करने निकल जाता है, जहां सर्वप्रथम दिवाली के दिए जगमगाए होंगे, प्रतीक्षारत नगरवासियों ने अपने प्रिय राम के चौदह वर्ष पश्चात वापस आने की खुशी में। कितना अभूतपूर्व दृश्य होगा वह , जब विरह व्याकुल नगर वासियों के नयनों ने अपने प्राण आधार श्री राम को अश्रु की पावन गंगा से स्नान कराया होगा। पावन सरयू का निश्चल घाट कितने वर्ष पश्चात उत्साह से भरा होगा। अटल तपस्या में लीन अयोध्या नगरी ने अपनी तपस्या का फल प्राप्त किया होगा।

राम सिर्फ नाम नहीं संपूर्ण जीवन का आधार है। जिनका व्यक्तित्व और कृतित्व जीवन जीने की प्रेरणा देता है। राम ने कोई भी ईश्वरीय चमत्कार नहीं किए। उन्होंने प्राकृत मानव के रूप में अवतार लिया था। उन्होंने वो सारे संघर्ष झेले जो एक मनुष्य झेलता है। परन्तु अपने सरल, निर्मल व्यक्तित्व से जन-जन के प्रिय बन गए। राम का शांत एवं विनम्र स्वभाव ही उन्हें लोगो के हृदय में विराजित करता है। वो सुख और दुःख दोनों में सामान्य रहते हैं - एकदम तटस्थ ! जैसे सूर्य के उगने और अस्त होने के समय कोई अंतर नहीं दिखता। सभी उनके लिए समान हैं।

जन-जन के प्रिय राम की प्रतीक्षा चौदह वर्षों तक उनकी प्रिय प्रजा ने किया। अपने प्रिय भावी राजा राम को उनकी प्रजा कितना प्रेम करती थी, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उनके वन गमन से व्याकुल नगरवासी उनके साथ ही चल पड़े थे और किसी भी तरह लौट जाने के लिए तैयार नहीं थे। अतः रात्रि के तीसरे पहर, भरे हृदय से उन्हें सोता छोड़ वन के लिए प्रभु राम ने प्रस्थान किया था। ये दिवाली के जगमगाते दिये हैं - प्रभु श्री राम और उनकी प्रजा के निश्छल प्रेम के, प्रतीक हैं - अयोध्या की प्रतीक्षा के, भरत जी के भातृ प्रेम के, उर्मिला के पति से मिलन का और राम जी के मातृ भूमि में आगमन का। उस काल खंड का दृश्य मेरी आखों से कुछ इस तरह दिखता है।

अयोध्या नगरी का द्वार – द्वार और उसका हर कोना घी के दियों और रंगोली से सजा दिया गया है। सरयू का घाट और जल में तैरते दिए सभी का मन मोह रहे हैं। दीवारों पर श्री राम की गाथा अंकित की गई है। सुंदर चौक पूर दी गई है। तोरण, बंधनवार, पताका, रंग-बिरंगे पुष्पों से नगर का घाट-घाट, बाट-बाट सज गया है। प्रकृति भी पूरे उल्लास के साथ इस उत्सव को मना रही है। सुंदर पक्षियों का कलरव, कोयल और मयूर का मधुर स्वर बीच-बीच में अपनी रागिनी छेड़ रहा है। ढोलक की थाप के साथ मधुर स्वर में मंगल गीत गाए जा रहे हैं। आज अयोध्या अल्हड़ किशोरी सी चंचला हो गई है और नई नवेली दुल्हन सी सज गई है।

तारों की जगमगाहट भी मंद पड़ गई है इन दियों के अलौकिक प्रकाश के समक्ष या तारे स्वयं धरा पर उतर आए हैं श्री राम के स्वागत में। हर नगरवासी का मुख दमक रहा है। प्रभु के अप्रतिम रूप के समक्ष सभी अपनी सुध-बुध खो चुके हैं। दियों की जगमगाहट चारों ओर बिखरी है। अंधकार का पता नहीं कहां दुबक गया है। एक अलौकिक प्रकाश हर तरफ फैला हुआ है। रोम-रोम में बसे राम अपनी प्रजा को चिर-परिचित मंद, मधुर-मुस्कान और सजल नेत्रों से देखते हैं। प्रजा के नेत्रों से अश्रु की धारा बह निकलती है। राम के अभिराम रूप के सम्मोहन में सभी बंध गए हैं। इस अनुपम दृश्य को देवता भी टकटकी बांधे देख रहे हैं। धन्य है अयोध्या और अयोध्यावासी जिन्हें राम जी का प्रेम मिला। ऐसा लग रहा है वर्षों पश्चात उनकी अयोध्या नगरी में प्राणों का संचार हुआ है। पावन सरयू नदी के जल पर दीपों से जगमगाती अयोध्या का प्रतिबिंब अपनी अलग छटा बिखेर रहा है।

भगवान राम का अवतार त्रेतायुग में हुआ था। कई युग बीत गए हैं राम के अयोध्या आगमन को, पर उस दिन को आज भी लोग दिए जलाकर दीपावली के रूप में मनाते हैं। देश ही नहीं बल्कि सुदूर देशों में भी दीपावली पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। वैसे तो अयोध्या में हर साल दीपावली मनाई जाती है, पर इन कुछ वर्षो में ये खास हो गई है। अयोध्या के साथ देश वासियों की लंबी प्रतीक्षा का अंत जो हुआ है। बस कुछ ही समय बाकी है जब भव्य मंदिर में हमारे राम जी मां सीता के साथ विराजमान होंगे।

राम की नगरी अयोध्या में तो दीपोत्सव कई दिन पहले से शुरू हो जाता है। राम कथा को दर्शाते चित्रों, प्रसंगों से अयोध्या नगरी सज जाती है। सरयू नदी का घाट लाखों दीयों से जगमगा उठता है। पिछले साल तो इन दियों की संख्या बीस लाख के करीब थी। जो कि एक नया कीर्तिमान था। एल ई डी लाइट्स के द्वारा प्रभु राम के जीवन की गाथा प्रस्तुत की जाती है। अयोध्या की दिवाली देखने और मनाने यहां हर साल लाखों की संख्या में लोग आते हैं राम नाम की गूंज, राम नाम की धूम और दीयों की जगमगाहट जहां मन में असीम शांति लाती है, वहीं हम प्रभु श्री राम की निकटता को महसूस कर अपने धर्म और संस्कृति पर गर्वित होते हैं।

प्रियंका शुक्ला