शहीद शिरोमणि वीर चंद्रशेखर आज़ाद

गतांक से आगे…….

पिछले अंक में हमने अपनी पत्रिका (जनमैत्री, फ़रवरी 2023 - पेज 34 - 36) के माध्यम से श्री सतीश कुमार मिश्र के सौजन्य से प्राप्त उनके दादा जी स्व. शिव विनायक मिश्र "बैद्य" द्वारा संकलित शहीद शिरोमणि वीरों के वीर श्री चंद्रशेखर जी आज़ाद के जीवन से संबद्धित संस्मरणों को आप तक पहुँचाने का प्रयास किया था, जो पाठकों के मध्य प्रमुख आकर्षण का केंद्र रहा। ये गर्व कि बात है कि श्री आज़ाद का नाम भारत की स्वतंत्रता संग्राम के गौरवशाली इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा गया है और हमें उनसे संबद्धित कुछ सत्य एवं रोचक जानकारियां प्रकाशित करने का मौका मिला है।

पिछले अंक में श्री आज़ाद जी के जन्म से लेकर उनके स्वभाव, कार्य कलापों एवं स्वतंत्रता की राह पर उनके पदार्पण सहित अन्य कई रोचक तथ्यों पर प्रकाश डाला गया था। इस अंक में हम लेकर आये हैं साहस और चातुर्य के साथ-साथ उनके जीवन से जुड़े कुछ अन्य रोचक तथ्य जो आपके अंदर एक विशेष ऊर्जा का संचार कर देंगे।

प्रस्तुत है स्व. शिव विनायक मिश्र "बैद्य" द्वारा प्रकाशित पुस्तक से लिए गए कुछ रोचक अंश :

साहस और चातुर्य

एक बार सम्पूर्णानन्द जी ने चंद्रशेखर आज़ाद को कांग्रेस की नोटिस कोतवाली के पास चिपकाने को दिया। यहां पर पुलिस का सख्त पहरा था। आजाद अपनी पीठ में नोटिस उलट कर चिपका कर ले गया और नोटिस की पीठ पर लेई लगाकर, सिपाही से बाते करने लगा। पीछे उसके टेलीफोन का खम्भा था, उसी में सट के खड़ा हो गया और सिपाही से बात करता रहा। उसी दौरान पीठ को घुमाकर उसने खम्भे में नोटिस चिपका दिया। सिपाही जब दूसरी तरफ को जाने लगा तो 'आजाद' भी चलता बना। थोड़ी देर में राह चलने वाले नोटिस पढ़ने लगे। भीड़ को देखकर सिपाही उधर से जब घूम कर आया तो देखा कि कोई नोटिस चिपका हुआ है। बहुत परेशान हुआ। आजाद बहुत चतुर था। उसी समय से हम लोगों ने समझ लिया कि यह होनहार बालक है।

काशी के बैजनत्था मुहल्ले में भी श्री आजाद फरार होने के दिनों में आकर एक कोयला की दुकान करने वाली बुढ़िया के यहाँ ठहरा करता थे। एक बार पुलिस को कुछ सन्देह हुआ तो उसने बैजनत्था मुहल्ले में धावा मार कर आजाद को पकड़ना चाहा। आजाद ने पुलिस को देख लिया और वह बुढ़िया की दुकान में छिप गए । वह कोयले के अन्दर घुस गए । बुढ़िया से कहा कि बोरों के ऊपर से कोयले भर दो और बोरा खुला रहने दो। पुलिस आई और तलाशी लेकर चली गयी। श्री आजाद समाधिस्थ होकर बोरा में बैठ गए और पुलिस की आँख में धूल झोंक कर बाद में बाहर निकल गए।

मतभेद की बातें

श्री चन्द्रशेखर आजाद के सम्बन्ध में अखबारों में तथा कई पुस्तकों में जो उनके सम्बन्ध में खबरें निकली हैं, उनमें कई मतभेद की बातें भी देखने में आयी हैं। अभी हाल में तथा पहले भी कई खबरें पढ़ने में आयी थीं कि श्री चन्द्रशेखर आजाद कहाँ पैदा हुए थे ? जो बिलकुल बेबुनियाद खबरें थीं। मिसाल के तौर पर दो-एक बात का जिक्र करना आवश्यक है।

श्री चन्द्रशेखर आजाद की एक जीवनी कई वर्ष पहले पंडित ज्योति प्रसाद मिश्र निर्मल ने लिखी थी। उसमें उन्होंने चन्द्रशेखर आजाद का जन्म मुहल्ला बैजनाथ टोला काशी लिखा है और उनके पिता का नाम बैजनाथ लिखा है जो सरासर गलत है। बैजनत्था मुहल्ला है। जहां आजाद एक बुढ़िया के यहाँ कभी - कभी रहा करते थे, जिसका जिक्र मैंने अपने लेख में किया है।

अभी हाल में थोड़े दिन पहले काशी में निशात सिनेमा गृह में आजाद फिल्म दिखाई गयी थी। फिल्म के सम्बन्ध में एक नोटिस वितरित की गयी थी जिसमें आजाद के बनारस जिले में पैदा होने का जिक्र किया गया था। इसी प्रकार की कई अनर्गल बातें समाचार पत्रों में और उनकी कई और भी जीवनियों में प्रकाशित हुई हैं।

काकोरी केस में

आजाद का नाम जब काकोरी डकैती केस में आया और पुलिस उन्हें पकड़ने के फेर में थी, उस समय 'आजाद' मुझसे छिपकर काशी में मिले। उन दिनों वे विद्यापीठ में पढ़ते थे। मुझ से जब वे मिले तो उन्होंने मुझसे अलग बात करनी चाही। मैंने एकांत में पूछा क्या बात है ? उन्होंने स्पष्ट कहा कि मैं काकोरी केस में था। पुलिस मेरी तलाश में है, क्या करूँ ? मैंने हँसकर कहा - "मैं तो इस समय अहिंसावादी हूँ। मेरी सलाह से तुम्हारा काम न बनेगा। अब अपने नये गुरूओं से जाकर पूछो। 'आजाद' ने मुस्कुराकर कहा, जल्दी बताइये कि हम क्या करें ? इस समय सभी साथी तिड़ी - बिड़ी हुए हैं। मैंने 'आजाद' को समझाया कि तुम्हारे जैसे बहादुर लोगों का यही मार्ग है कि अपने तरीके से जितने दिन छिपकर रह सको और देश की सेवा कर सको करो, और यही मार्ग अपनाओ। जैसे शिवाजी, महाराणा प्रताप ने वीरता से जीवन बिताया वैसे ही तुम भी करो । किसी का विश्वास न करना। इस समय मेरा इतना ही कहना है। आजाद ने मेरे चरण पकड़ लिये। मैंने आशीर्वाद दिया कि जाओ तुम्हारा बाल बांका न होगा। इस समय फांसी से बचो। मैंने आजाद की जेब टटोली, सिर्फ ढाई आना पैसा उसकी जेब में था। मैंने उन्हें घर में खाना खिलाया और साढ़े तीन आना जो मेरी जेब में थे चलते समय 'आजाद' को दिये। 'आजाद' को मैंने अपने घर के पिछले दरवाजे से चुपके से निकाल दिया। उस समय 'आजाद' के हाथ का लिखा एक पत्र मेरे पास अब भी सुरक्षित है, जिसे मैंने "भारत की स्वतन्त्रता का इतिहास" में जो अभी छपी नहीं है, प्रकाशनार्थ दे दिया है।

सैण्डर्स केस के बाद काशी में ही मुझसे दुबारा भेंट

जब श्री भगत सिंह के द्वारा सैण्डर्स केस हुआ, उसके बाद आजाद घूमते फिरते बनारस भी आये थे। कुछ लोगों से मिले लेकिन मुझे इसका पता नहीं था। एक दिन काकोरी केस के बहुत दिन बाद, रात को मैं बेनियापार्क होकर अपने बड़ी पियरी स्थित मकान जा रहा था तभी पीछे से आकर किसी ने मेरी आँखो में प्रेम से हाथ लगा दिया और मेरी आँखें बन्द कर दी मुझे पता नहीं चला कि कौन है। हाथ छोड़कर हँसने लगा और बोला, भूल गये। शकल से तो मैंने नहीं पहचाना लेकिन आवाज से ताड़ गया कि 'आजाद' है।

मैंने कहा कि चलो घर। बोला नहीं आप भी फांसी पर चढ़ोगे और बच्चों को भी मैं फांसी दूँ यह नहीं होगा, बस जाता हूँ। अधिक से अधिक दो-ढाई मिनट मुझसे बात हुई। मैंने कहा कि भोजन किये हो ? पैसा है या नही ? बोला, जेब भरी है और पिस्तौल भी भरी है सिर्फ आपका और घर का हाल जानना चाहता था। अब जाता हूँ। मेरी आँख से आजाद बिजली की तरह ओझल हो गया। हड़हा की सराय की तरफ गायब हो गया। मैं अवाक रह गया। थोड़ी देर बाद घर गया, पत्नी से बात किया। उनको आँसू आ गये। फिर आजाद कभी जिन्दा नहीं मिला। मेरा उसके क्रांति-दल से कोई सीधा सम्पर्क न था।

स्व. श्री शिवविनायक मिश्र 'बैद्य'