लघु कथा पर मंडराता खतरा

लघुकथा साहित्य की सबसे प्राचीन और सुन्दर विधा है। हिंदी साहित्य में कथा साहित्य बहुत पहले से ही चला आ रहा है। पौराणिक कहानियों में इसका अस्तित्व मिलता है - पंचतंत्र की कहानियाँ, हितोपदेश तथा सभी धर्मों में कुछ ऐसे संवाद मिलते हैं, जो लघु कथा के अंतर्गत आते हैं। साहित्यकारों के अनुसार इनमें लघु कथा के सृजन के बीज अवश्य हैं। लघु कथा के प्रादुर्भाव के लिए भूत काल में जाना अत्यंत आवश्यक है, तभी जाना जा सकता है कि लघु कथा क्या है और इसका जन्म कहाँ से हुआ और यह कैसे पली - बढ़ी।
लघु कथा है क्या ? लघु कथा स्थूल से सूक्ष्म की यात्रा है, मन के भीतर - बाहर जो घटनाएं घटती हैं, वे ही लघु कथा का मूल बनती हैं। इस मूल अंतर्वस्तु को सुंदर शब्दों और विचारों से समृद्ध किया जाता है, तब लघुकथा का जन्म होता है। जब इसमें शिल्प को शामिल कर लिया जाता है तो यही श्रेष्ठ लघु कथा बन जाती है, भाव, विचार, शब्द और शिल्प के मिलन से इसका जन्म होता है। इसमें मुख्यतः दो ही तत्वों का प्रयोग होता है --विषय वस्तु / विचार और शिल्प। विषय वस्तु अर्थात कथानक और शिल्प यानी रचना। लघु कथा सृजन में इकहरे कथानक की आवश्यकता होती है, जो अपनी क्षण भर की अभिव्यक्ति का उचित शब्दों के माध्यम से तीखा प्रहार करती है।
लघु - कथा साहित्य की अन्य विधाओं में सबसे कठिन है, यहाँ रचनाकार कम शब्दों में विस्तृत पटल तैयार करते हैं। कहानी और लघु कथा में कोई तात्विक अन्तर नहीं है, परन्तु सैद्धान्तिक अन्तर अवश्य है। लघु कथा लेखन में लेखक को समाज का सत्य दिखाना होता है, यह सब एक सीमित सीमा में बंध कर करना पड़ता है, जिसमें सृजनात्मकता, कल्पनानिष्ठता, नाटकीयता तथा प्रत्यक्ष अहसास हो, तभी वह एक सुंदर, सुदृढ़, सुघड़ रचना बनती है, यह श्रेष्ठ " लघुकथा " ही लघुकथा की कसौटी पर खरी उतरती है ।
लघुकारिय विधा होने के कारण
इसमें सांकेतिक भाषा का प्रयोग
सुगम रूप से किया जाता है।
