राखी नेह दो धागों का

"येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: ।
तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल: ।।"

रेशम या कच्चे धागे का रक्षा सूत्र हांथ में बांधते समय पंडित जी इस श्लोक का उच्चारण अवश्य करते हैं। कभी मन में प्रश्न जरूर आता होगा कि इस श्लोक का उच्चारण क्यों और इसके पीछे की कहानी क्या है ?

बसंत के पश्चात श्रावण मास में ही प्रकृति मां का सच्चा श्रृंगार करता है, किसी कुशल चित्रकार की भांति अपनी कूची से हरित रंग हर तरफ बिखेर देता है। मन को मोहने वाला, रिमझिम फुहारों के संग ये मास अपने संग लाता है कई पर्व - त्योहार, व्रत और पूजा। भोलेनाथ का प्रिय मास श्रावण है। लोग भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए उनका व्रत-पूजन करते हैं। नागपंचमी, सुजिया, हरियाली तीज, पुत्रदा एकादशी, हरियाली अमावस्या के साथ भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक रक्षा बंधन इस महीने का प्रमुख त्यौहार है। भाई-बहन के पवित्र स्नेह का प्रतीक, ये पर्व कब शुरू हुआ इसके पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं।

पुराणों के अनुसार सतयुग में महादानी राजा बली से वामन भगवान ने तीन पग भूमि दान में मांगा। प्रभु ने तीन पग में उनका सर्वस्व ले लिया। वामन भगवान उनकी सत्यनिष्ठा व दानवीरता देखकर प्रसन्न हो गए और वर मांगने को कहा, फ़लस्वरूप, उन्होंने वर के रूप में भगवान को अपना द्वारपाल बनने का वर मांग लिया। भक्तों के वस में रहने वाले भगवान उनके द्वारपाल बन गए। इधर स्वर्गलोक में विष्णु जी को ना पाकर माता लक्ष्मी चिंतित हो गयीं। मां लक्ष्मी जी उन्हें खोजने निकली, तो पता चला कि विष्णु जी पाताल लोक में हैं, वर के अनुसार अब उनका स्वर्गलोक में रहना मुश्किल है। तब लक्ष्मी जी एक कन्या का रूप लेकर राजा बली के पास पहुंची और उसकी कलाई में कच्चा सूत या रक्षा सूत्र बांध दिया। बली प्रसन्न होकर बोला कि इस रक्षासूत्र को बांधने से तुम मेरी बहन बन गई हो, बोलो तुमको क्या चाहिए। तब लक्ष्मी जी अपने स्वरूप में आकर अपने पति भगवान विष्णु को मांग लिया। बली ने उनका व राखी का सम्मान करते हुए भगवान विष्णु को उन्हे सौंप दिया। उस दिन सावन मास की पूर्णिमा थी।

चित्तौड़ को गुजरात के मुस्लिम शासक बहादुर शाह से बचाने और प्रजा की सुरक्षा के लिए मेवाड़ की विधवा रानी कर्मावती ने हुमायूं के पास राखी भेज कर मदद मांगी। हुमायूं ने भी राखी का मान रखा और मेवाड़ की मदद की। इसी प्रकार सिकंदर की पत्नी ने राजा पुरू को राखी भेजकर उन्हें अपना भाई माना, तब पुरु ने भी उन्हें बहन मानकर युद्ध में सिकंदर को जीवन दान दिया था। बाद में सिकंदर ने भी उसी रक्षा सूत्र को ध्यान में रख कर पुरु के साथ भी वही व्यवहार किया। इसी प्रकार कई पौराणिक और ऐतिहासिक कथाएं राखी प्रेम, विश्वास व शक्ति को दर्शाती हैं।

रक्षा सूत्र, राखी या मौली बांधते समय पुरोहित जी उपरोक्त श्लोक का उच्चारण करते हैं उसका अर्थ ही है "जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानबीर राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षासूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, जो तुम्हारी रक्षा करेगा, जो अचल और स्थिर रहेगा।

हर भाई को रक्षा बंधन में अपनी बहन की रक्षा के साथ एक प्रतिज्ञा और लेनी चाहिए कि बहन चाहे किसी की भी हो उसे पूरे सम्मान व आदर की दृष्टि से देखेंगे। साथ ही जरूरत पड़ने पर, सड़कों पर निर्वस्त्र होती इज्जत और किसी भी लड़की के मान - सम्मान के लिए खड़े होंगे, उसकी रक्षा करेंगे। तभी सही मायने आपकी अपनी बहन के साथ दूसरों की बहनें भी सुरक्षित रहेंगी।

प्रियंका शुक्ला, पुरी