रंगत

शालिनी त्रिपाठी

नजमा की आंख अंधेरे में ही खुल गई। बगल के इमरान भाई का मुर्गा चिल्ला रहा था “अरे सुबह हो गई” बोलते हुए उसे अजीब सी खुशी हुई। नींद तो उसे रात में ठीक से आई ही नहीं। जब से शाम को पंडित जी के लड़के ने आकर बताया था कि नसीर का कल फोन आएगा और सब के साथ उसने अपनी दुल्हन को भी बुलाया है तब से नजमा हवा में उड़ रही है। एक साल हो गया था नसीर को गए हुए और इतने दिन में उसने नजमा को मुश्किल से दो बार ही कह के बुलाया था। हमेशा उसके अम्मी अब्बा ही जाते थे और नजमा को भूले से भी न कहते थे कि चलो। नजमा बड़ा कुढ़ती थी इससे…पर क्या करे !

उसके गांव में तो फोन था नहीं पास के कस्बे में गांव के डॉक्टर साहब के घर पर ही गांव के सारे लोगो के अपनों का फोन आता था और खबर पंडित जी का लड़का देता था जिसकी कस्बे में दुकान थी और रोज गांव से आता जाता था।

साल भर में नजमा कितनी चिड़चिड़ी हो गई थी। सास जेठानी की एक एक बात का जवाब दो दो से देती थी। पर कल शाम से जब से सुना था तब से जेठानी ने कितने ताने मारे पर उसका मन ही न हुआ कि जवाब दे वो तो बस अपने में ही मगन थी। सारा काम कर के भी थकावट दूर दूर तक न थी। कितना दूर था नसीर पर उसे लग रहा था कि आसपास ही कहीं है। उसके ख्यालों में ही उसे रात भर नीद न आई। सुबह बकरियों को घास देने से लेकरसाफ सफाई सब काम जल्दी से कर के खूब सज धज के तैयार हुई मानो फोन पर नसीर उसे देखने वाला था। डॉक्टर साहब के घर पहुंचने के बाद बहुत देर तक नसीर का फोन नहीं आया तो वो बेचैन होने लग “क्या हुआ” ! “क्यों नहीं आया फोन” मन ही मन नसीर की खैर की हज़ारों दुआयें मांग डाली।

खैर फोन भी आया ….पहले अब्बा से बात हुई फिर अम्मी से….. बाद में उसका नंबर आया फोन हाथ में लेते ही उसका दिल धड़क उठा। “कैसे हो” पहला सवाल यही किया उसने “अच्छा ही हूं ” “तुम कैसी हो” मारे खुशी के नजमा के आंसू ही छलक पड़े। “अच्छी हूं” कह के चुप रही। “हूं” कह के अचानक नसीर का स्वर कठोर हो गया। “सुना है आजकल बहुत लड़ने लगी हो अम्मी और भाभी से । तुमसे कह कर आया था कि तुमने लड़ाई की तो ठीक नहीं होगा “

“पर वो भी तो…..उसने अपनी सफाई देनी चाही पर नसीर पहले ही चिल्ला पड़ा “पर क्या” ? मुझे भाई जान ने सब बता दिया है और आऊंगा तब तुमको बताऊंगा “

“कब तक आ रहे हैं। ईद पर आ जाइए” नजमा बोली “ईद पर छुट्टी नहीं मिलेगी बकरीद तक आऊंगा जब फुर्सत मिलेगी तब”

तब तक नजमा की सिसकियां तेज हो चुकी थी। नसीर फिर बोला “रोने धोने से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, ठीक से रहोगी तो ही मेरे साथ रह सकती हो नहीं तो….!”

नजमा बोली “भाई जान भाभी की कितनी कद्र करते हैं और आप हमेशा मुझे ही”

अपनी गोरी चिट्टी भाभी का पक्ष लेते हुए नसीर बोला “उनकी रंगत देखी है उनको देख कर कोई भी उनकी बात माने बगैर नहीं रह सकता और खुद को देखो” और नजमा को उसकी गहरी रंगत का अहसास करा गया।

एकदम से आग सी लगी नजमा के तन बदन में और अब तक जो कसमें खा रही थी कि अब न लडूंगी वो बदल गई। बस इतना बोली “अच्छा खुदा हाफ़िज़ अब्बूको बुलाती हूं”।

अब्बूको फोन देकर मन ही मन बुदबुदाई

“अभी जाकर भाभी की रंगत देखती हूं, बड़े आए भाभी की रंगत देखने वाले “

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