मार्ग दर्शन में सतर्कता

काफी समय से मन में एक दुविधा लेकर चल रहा था। दृष्टिकोण मात्र, सामाजिक संरचना में युवाओं के बदलते तेवर का असर और उसके अनुरूप दीर्घकाल में देश पर प्रभाव ही है। तभी अवसर मिला "जनमैत्री" पत्रिका से जुड़ने का जिसके माध्यम से मैं एक ऐसे विषय को स्पर्श करना चाहता हूँ जिसका हमारे भविष्य से सीधा सम्बन्ध है।

हम सभी को अपनी संतानों में संस्कार एवं सभ्यता रूपी बीज अवश्य रोपित करना चाहिए, जिससे हम सभी के द्वारा एक सभ्य एवं सुशील समाज का निर्माण किया जा सके। वर्तमान परिवेश में संस्कारों का अभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। माता-पिता अपने पाल्य के प्रेमवश उसको मनसा, वाचा, कर्मणा सभी प्रकार की छूट प्रदान कर देते हैं जिससे उनमें निरंकुशता का जन्म होता है। युवाओं का रुष्ट एवं रूखा व्यवहार, बड़ों के प्रति अनादर, कुतर्क, मनमानी आदि यह दर्शाते हैं कि युवाओं में नैतिक मूल्यों का स्तर किस हद तक दिन पर दिन गिरता जा रहा है।

मोबाइल फ़ोन में युवा इतने ध्यानमग्न हैं कि किसी से मिलने-जुलने के लिए उनके पास वक्त नहीं है। यही नहीं, सम्बन्ध तो आजकल फेसबुक और व्हाट्सअप पर बनने बिगड़ने लगे हैं। संवेदनहीनता तो इतनी बढ़ गई है कि सड़क पर तड़पते घायल व्यक्ति की जान बचाने के बजाय हमारे युवा उनकी दर्दनाक तस्वीरें अपने स्मार्ट फ़ोन के कैमरों में कैद करने को ज्यादा प्राथमिकता देते हैं, ताकि उन्हें विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर अपलोड कर सकें और बाकी के युवा संवेदनशीलता का स्वांग रचाते हुए उन तस्वीरों पर लाइक व कमेंट्स करते हैं।

हम सभी अपने बच्चों में अच्छे संस्कार देने के बजाय उनके हाथों में लैपटॉप, इंटरनेट, थमा देते हैं। जरा बड़े हुए महंगे मोबाइल और गाड़ियां दिला देते हैं और समझते हैं हमनें अपना फ़र्ज़ पूरा कर दिया। बड़ी विडम्बना है जिस भूमि पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम और अर्जुन जैसे महान शिष्य का जन्म हुआ, उसी धरा पर आज हर दूसरे क्षण मर्यादा लांघी जाती है एवं आये दिन गुरुओं को अपमानित किया जाता है।

युवाओं को उचित मार्ग दर्शन व देश के सांस्कृतिक गौरव से अवगत कराने की आवश्यकता है। हमें स्वयं को पाश्चात्य रंगों में रंगने के बजाय स्वयं की पहचान स्थापित करने की आवश्यकता है।

विजय शंकर शुक्ल, बकुलिहा