माँ शक्ति

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शक्ति रूपी माता यानि मां दुर्गा या फिर नवदुर्गा, जिनकी आराधना हम नवरात्रि के दिनों में या फिर रोज की पूजा में करते हैं। मां दुर्गा का विग्रह जब मस्तिष्क में आता है तो एक सर्व शक्तिमयी छवि मन में उभरती है, जिनकी आंखों में वो तेज़ है जो महिषासुर का संहार कर सके और होंठो की मुस्कान ऐसी जो अपने भक्तों की पीड़ा हर ले।

नवदुर्गा की शक्ति कहीं न कहीं कुछ मात्रा में हर स्त्री में मौजूद है, खासकर किसी स्त्री के बच्चे पर कोई संकट आ जाए तब तो वह दुर्गा रूप ही धर लेती है। स्त्री शक्ति की बात चली है तो अभी हाल में ही चंद्रयान 3 की सफलता में महिला वैज्ञानिकों के योगदान पर चर्चा की जानी चाहिए। प्रथम तो इसरो और उनके वैज्ञानिक दल विशेषतया इसरो चेयरमैन एस. सोमनाथ को कोटि-कोटि धन्यवाद कि उन्होंने भारतीयों को ये अविस्मरणीय पल प्रदान किए जब भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में उतरने वाला विश्व का पहला देश बना। इस मिशन में पचास से अधिक महिला वैज्ञानिकों और महिला इंजीनियर का योगदान रहा। जैसे वनीथा मुथैया और ऋतु कारिधाल, जिन्होंने चंद्रयान 2 की भी अगुयायी की थी और चंद्रयान 3 से उन्होंने अपना नाम इतिहास में प्रथम भारतीय महिला वैज्ञानिकों के तौर पर दर्ज़ करा लिया। वनीता मुथैया ने प्रोजेक्ट डायरेक्टर और ऋतु कारिधाल ने मिशन डायरेक्टर के रूप में अपना योगदान दिया।

वनीता मुथैया जो चेन्नई से आती हैं और उनका योगदान मंगलयान मिशन 2013 में भी रहा। ऋतु कारिधाल जो कि "रॉकेट वूमेन" के नाम से प्रसिद्ध हैं भी मंगलयान मिशन में डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर के रूप में जुड़ी हुई थी। मेरा ऋतु जी से खास जुड़ाव महसूस होने की वज़ह लखनऊ यूनिवर्सिटी भी है जहां से उन्होंने भी उच्चतर शिक्षा प्राप्त किया और मैंने भी। इन के अतिरिक्त डा.वी.आर. ललीतांबिका, मौमिता दत्ता, नंदिनी हरिनाथ, अनुराधा टी. के., मीनल रोहित, टेसि थॉमस आदि महिला वैज्ञानिकों ने चंद्रयान 3 की सफलता में पूरा योगदान दिया। इसरो साइंटिस्ट वलारमाथी का असमय निधन बहुत दुखद है, जो आवाज़ हमें काउंट डाउन में सुनाई दी थी, वो हमेशा के लिए बंद हो गई है। इन महिला वैज्ञानिकों ने अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित करवा लिया है और सब को अपना सम्मान करने के लिए विवश कर दिया है।

चंद्रयान 3 में महिला वैज्ञानिकों की भूमिका और उनकी सफलता स्त्री सशक्तिकरण का अच्छा उदाहरण है। आजकल मैं देख रही हूं कि महिला सशक्तिकरण के नाम पर अजीब सा चलन चल रहा है और वो है पुरुषों की अंधी नकल, खाने, पीने और जीवन जीने के तरीके, सब में "why should boys have all the fun" के नाम पर कुछ भी कर लो।

मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि पुरुषों की अंधी नकल आपको सशक्त नहीं बना सकती। विशेषतया पुरुषों की वो आदतें जो पुरुषों में भी अच्छी नहीं मानी जाती, उनका अनुसरण करना कहां तक उचित है। इसका मतलब तो यही निकलता है न कि आप पुरुषों को अपने से बेहतर मान चुकी हैं क्योंकि हम अनुकरण उनका ही करना चाहते हैं न जिनको हम अनुकरणीय मानते हैं। आर्थिक और वैचारिक रूप से स्वतंत्र बनिए और भावनात्मक और सामाजिक बंधन जो स्त्री और पुरुष दोनों को मज़बूत और सम्माननीय बनाते हैं तो उनमें बंधे रहिए। समाज और परिवार को बनाने में स्त्री शक्ति की भूमिका किसी से छुपी हुई नहीं है तो अपनी उस शक्ति का सम्मान कीजिए। आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनिए, वैचारिक रूप से मुक्त और अन्याय का मुखर विरोध कीजिए। कुरीतियों का विरोध करिए पर इतना ज़रूर याद रखिए कि शिव और शक्ति के सामंजस्य से ही यह ब्रह्मांड चल रहा है।

शालिनी त्रिपाठी

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