महफूज

प्रकृति ने मानव को जन्म दिया है और साथ ही सिखाती है स्वयं को जड़ से मजबूत रखना। जब एक बच्चा जन्म लेता है तो मां उसे अपने प्रेम से सींचती है और पिता परछाईं बन उसका पोषण एवं संरक्षण करता है। प्रेम और पोषण का बीज उस बच्चे में बचपन से ही बोया जाता है। यदि परिवार संयुक्त है तो सभी उस पर प्रेम न्योछावर करते हैं। वही बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है अपने माता-पिता और गुरु की देख रेख में शिक्षा एवं प्राप्त संस्कारों से आगे चलकर स्वावलंबी बनता है और वही गुण वह दूसरों को भी देने का प्रयास करता है। परन्तु समय के साथ जब परिस्थितियां विपरीत रूप धारण करती हैं तब उसकी मुश्किलें भी बढ़ती हैं। वह अपने आस-पास के माहौल को अपने प्रेम और सकारात्मकता से अनुकूल बनाने की चेष्टा तो करता है पर कुछ लोग उसके ऐसा करने में कठिनाइयां उत्पन्न करते हैं क्यों कि जो सकारात्मकता उसके वजूद में है वो उनमें नहीं है। अक्सर देखा गया है कि लोग परिस्थिति के अनुसार अपने को ढालने का प्रयास करने लगते हैं, जिसकी वजह से वे अपने व्यक्तित्व को खोने लगते हैं। पर, जिनकी जड़ें मजबूत होती हैं और मूल स्वभाव से हमेशा सकारात्मक होते हैं वे अपने आपको संभाल लेते हैं। जैसे एक पेड़ जब तक खुली हवा में है, फलता-फूलता है पर उस पेड़ को जड़ से उखाड़ कर यदि घर के अन्दर लगाया जाय तो वह मर जाता है। ठीक उसी तरह यदि बच्चों के अंदर प्रेम और संरक्षण का बीज सकारात्मक भाव से बोया जाता है तो भविष्य में वे अच्छे परिणाम ही देंगे और अपने अच्छे संस्कारों की बदौलत अपने जीवन को सफल और प्रेरणादायक बनाएंगे।

परन्तु, यह सब तभी संभव है जब मनुष्य अपने माता-पिता और गुरुजन के द्वारा दी गई शिक्षा को अपने व्यक्तित्व में महफूज़ रख सकेगा। शिक्षा हमें नैतिक मूल्यों के साथ यह भी सिखाती है कि यदि कोई मनुष्य हर परिस्थिति में विनम्र और शीलवान रहकर अपनी भूमिका निभाता है तो वह औरों पर भी प्रभावी होता है और एक प्रेरणास्त्रोत के रूप में निखर कर आता है।

लेकिन जैसा कि हमेशा से देखा गया है कि हर अच्छी चीज को कड़ी से कड़ी परीक्षाओं से गुजरना पड़ा है, तो प्रेम, ममत्व और सकारात्मकता के साथ जीवन जीने वाला इससे अछूता कैसे रह सकता है। फिर भी प्रेम में इतनी शक्ति होती है कि उसके बलबूते विपरीत परिस्थितियों को भी समयोचित अनुकूल बनाया जा सकता है। दरअसल, दुनियां में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो मेहनत से दूर, बिना किसी उद्देश्य के बस आराम से समय काटना चाहते हैं। जिन्हें आराम से सब कुछ मिल रहा है वही दूसरों की राह में पत्थर बिछाने का काम करते हैं। परन्तु, दूसरी तरफ अच्छी शिक्षा और संस्कारों से सिंचित व्यक्ति, जो अपनी मंज़िल को पाने और सपनों को पूरा करने में लगा हुआ है, सकारात्मक लोगों के साथ ही सदैव खड़ा पाया जाता है। दुनियां में दोनों ही तरह के लोग मिलते हैं, एक जो अपने गुणों और गुरुजन द्वारा सिखाए गए नैतिक मूल्यों पर चलते हैं और दूसरे वो जो किसी भी परिस्थिति के हिसाब से ढल कर अपना उल्लू सीधा करते हैं, गिरते-फिसलते हैं, और फिर दूसरों को भी गिराने की कोशिश करते हैं।

अब यह हमें सोंचना है कि हमारे जीवन के लिए किस तरह के व्यक्तित्व को अपनाना ठीक रहेगा, जो द्वेष और ईर्ष्या भाव से ग्रसित दिशाहीन रह जीवन बिताते हैं, या फिर उनकी तरह जो अपनी मेहनत और सकारात्मक सोंच के बलबूते उच्च शिखर को प्राप्त कर लेते हैं और एक दिन अपने परिवार को ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ी को भी गौरवान्वित करते हैं। मजबूत किरदार के लोग निश्चित तौर पर ग्रहण की हुई शिक्षा, सामाजिक मूल्यों, अपने व्यक्तित्व, दूसरों की भावनाओं और कीमती रिश्तों, जिससे उनके जीवन का निर्माण हुआ है, इन सबको महफूज रखने में सक्षम होते हैं।

मोनिका शुक्ला, हावड़