पुत्र का रक्षा कवच होता है पिता

सिर पर जब तक पिता का साया रहता है तब तक तो बेटों के लिए सबकुछ सहज-सरल रहता है, लेकिन साया हटते ही कुछ भी आसान नहीं रह जाता। पिता का महत्व और भूमिका समझने के लिए इतना ही काफी है। पिता का स्थान बच्चों के जीवन में अद्वितीय है। पिता की भूमिका एक खुली किताब की तरह है, जिसका हर पन्ना खुला हुआ रहता है। वह दिनभर घर से बाहर रहकर परिवार के भरण-पोषण के लिए न जाने कितने समझौते करता है। जिन बच्चों के जीवन में पिता नहीं होते, वह अनाथों की भांति अपना जीवन जीते हैं। मां, प्यार तो दे पाती है किन्तु सुरक्षा, मार्ग दर्शन नहीं दे पाती। बच्चों को अपने पिता से यह सब कुछ मिलता है। परिवार की आर्थिक स्थिति चाहे कितनी बेहतर क्यों न हो, किन्तु वह पिता के स्थान की भरपाई नहीं कर पाती, क्योंकि एक बेटे में परिवार के अच्छे संस्कार, अच्छा व्यक्तित्व, अच्छे विचार, अच्छी आदतें और स्वभाव पिता से ही आते हैं।

पिता का प्यार माँ की तरह दिखाई नहीं देता है लेकिन पिता ही बच्चों को अन्दर से मजबूत और दुनिया में अच्छे-बुरे की परख करना सिखाता है। अक्सर घर में गलतियों पर टोका-टोकी करने वाला पिता ही होता है। यह बात दीगर है कि पिता की छवि बचपन में हमें कठोर लगती है । जीवन में आगे बढ़ने के लिए अनुशासन का सहारा लेना ही पड़ता है। जब हम बड़े होने लगते हैं तो समझ आने लगती है कि हमारे पिता के कठोर व्यवहार के पीछे उनका स्नेह होता है। पिता खुद को कठोर बनाकर बच्चों को कठिनाइयों से लड़ना सिखाता है और उसे कर्मठ तथा मजबूत बनाता है। अपने बच्चों को खुशी देने के लिए वह अपनी खुशियों की परवाह नहीं करता है। पिता कभी माँ का प्यार देता है, कभी शिक्षक के रूप में हमारी गलतियों को ठीक करता है तो कभी दोस्त बनकर कहता है कि किसी बात की चिंता मत करना मैं तुम्हारे साथ हूँ। पिता अपने बच्चों के लिए एक रक्षा कवच है, जिसकी सुरक्षा में रहकर बच्चे अपने जीवन को एक दिशा दे सकते हैं। कई बार तो बच्चों को यह भी महसूस नहीं होता कि पिता बच्चों की सुख-सुविधाओं की व्यवस्था कैसे और कहाँ से करता है। यह बात उन बच्चों को तब समझ में आती है जब वे खुद पिता बनते हैं। शायद इसीलिए पिता को ईश्वर का रूप कहते हैं। कोई व्यक्ति चाहे कितना भी बुरा क्यों न हो लेकिन अपनी संतान को वह अच्छी बातें और अच्छे संस्कार ही देता है। अक्सर देखा जाता है कि लोग बाप बनते ही अपनी ‘विसंगतियों’ को महज इसलिए छोड़ देते हैं या छोड़ना चाहते हैं, ताकि उसकी संतानें प्रभावित न हों। पिता ही दुनिया का एक मात्र ऐसा शख्स है जो चाहता है कि उसका बच्चा उससे भी ज्यादा तरक्की करे।

माँ विश्व में अद्भुत और अनोखी होती है, क्योंकि वह बच्चे को नौ महीनें अपनी कोख में पालती-पोषती है। उसे इस नयी दुनिया से परिचित कराती है यानी उसे जन्म देती है। अपना दूध पिलाकर उस बालक रूपी पौधे को सींचती और संवारती है। ठीक उसी प्रकार पिता भी अपने बच्चे को ऊंचाई पर पहुँचाने के लिए अपनी ताकत लगा देता है। जिस प्रकार सूर्य प्रतिदिन उदित होकर अपनी प्रकाश और उर्जा से समस्त संसार को जीवन प्रदान करता है। समस्त प्राणियों के जीवन को सुचारू रूप से चलाने की व्यवस्था करता है ठीक उसी प्रकार पिता का भी परिवार में स्थान होता है। पिता की दिनचर्या अपने परिवार को सुचारू रूप से चलाने के लिए ही होती है। वह सिर्फ बीज प्रदान कर संतान निर्माण ही नहीं करता है बल्कि उसे हर रोज अपनी आजीविका से सींच कर एक विशाल वृक्ष तैयार करने में अपनी पूरी शक्ति लगा देता है। पिता एक असीमित विषय है जिस पर जितना भी लिखा जाये उतना ही कम है। पिता की अनेक संतानें हो सकती हैं लेकिन अपनी सभी संतानों के लिए पिता का भाव एक सामान होता है। पिता की हृदय की यही विशालता है। पिता चाहे - अमीर-गरीब, सफल-असफल, शिक्षित या अशिक्षित कैसा भी हो लेकिन उसकी इच्छा हमेशा पुत्र को हर क्षेत्र में अपने से अधिक सफल और ऊँचा देखने की ही होती है। पिता की भूमिका और महत्व को दौलत से नहीं तौला जा सकता। पिता अपने बच्चों की आवश्यकताओं, अरमानों और सपनों को पूरा करने के लिए अपने अरमानों का गला घोट देता है और अपने बच्चों में ही अपनी पहचान बनाने की इच्छा रखता है।

'माँ' शब्द सुनते ही हम सभी के अन्दर प्रेम की भावना जागृत होने लगती है। कहते हैं बच्चा पहले ‘माँ’ शब्द ही बोलना सीखता है और माँ की छाया में ही बड़ा होता है लेकिन यह पूरी सच्चाई नहीं है। कई बच्चे पैदा होते ही कुछ दूसरी तरह की ध्वनि या शब्दों का उच्चारण करते हैं। पिता अपने प्यार को दर्शाता नहीं है पर वह माँ से भी ज्यादा अपने बच्चों को प्यार करता है। पिता अपनी खुशियों का त्याग कर अपने बच्चों के लिए दिन रात मेहनत करता है। पिता के दिल में परिवार के लिए त्याग और समर्पण भरा होता है लेकिन वह कभी इन बातों को प्रत्यक्ष रूप में प्रकट नहीं कर पाता है। "पिता एक उम्मीद, एक आस, एक हिम्मत और विश्वास है, पिता संघर्ष की आँधियों में हौसलों की दीवार है", जो परेशानियों से लड़ने के लिए हौसला देता है। हाल ही में मैंने भी अपने पिता को हमेशा-हमेशा के लिए खोया है, जिसकी कमी ताजिंदगी महसूस होती रहेगी।

प्रदीप शुक्ल, कार्यकारी संपादक