शालिनी त्रिपाठी
मुंबई
अरविंद ने जया से जल्दी तैयार होने को कहा और ड्राइवर को फोन लगा दिया। जया ने एक साड़ी दिखाते हुए कहा कि ये पहन लूँ तो अरविंद खीझते हुए बोला — “अरे यार तुम पर सब अच्छा लगता है, पर प्लीज़ अब जल्दी करो”।
अगले दस मिनट में अरविंद अपने गांव की तरफ चल पड़ा था। थोड़ी देर में देखा जया सो गई थी पर उसे नींद कहां थी, उसने अपना सिर पीछे सीट पर टिका कर आंखे बंद की तो मानो पुरानी यादों की एक पूरी फिल्म ही चल पड़ी और वो आज से पंद्रह साल पीछे चला गया।
पंद्रह साल का ही तो था वो जब काका यानि कि उसके पिता ने आत्महत्या की थी। “काका” इसलिए कहता था क्योंकि तब संयुक्त परिवार था और उसके पिता के बड़े भाई के बच्चे उन्हे “काका” ही कहते थे इसलिए वो अपने बच्चों के भी काका हो गए। तब बड़े परिवारों में यही होता था, मां कभी “चाची” हो जाती थी तो ताई “मां”।
काका ने बैंक और साहूकारों का पैसा न लौटा पाने के दबाव में आत्महत्या कर ली थी पर वो उनके इस फैसले को कभी स्वीकार न कर पाया। उसे हमेशा लगा कि आत्महत्या कभी भी किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। जुझारूपन उसे उसके बाबा यानि कि दादाजी ने दिया था। वो हमेशा कहते थे कि जिंदगी कुश्ती की तरह है कभी वो तुम्हें पटकती है तो कभी तुम उसे। बाबा की इन्हीं बातों ने काका की मौत के बाद उसे संभलने में मदद की और उसने ठान लिया कि वो प्रशासनिक अधिकारी बनेगा और किसानों की समस्यायों को दूर करने की पूरी कोशिश करेगा।
किसान यानि कि हमारा अन्नदाता कितनी समस्यायों से जूझ रहा है ये उसने अपनी आंखो से देखा था। खेतों में जुताई के बाद बीज बोकर वो उन बीजों को चिड़ियों से बचाने के लिए पहरेदारी करता
है, फिर बीजों से अंकुर आने से लेकर आनाज बनने तक वो फसल उसके बच्चे जैसी हो जाती है। बारिश नहीं होने से जब वो फसल सूखने लगती है तो वो अपने घर के खर्च में कटौती कर के भी उसके लिए पानी खरीदता है चाहे वो पानी के टैंकर ही क्यों न हो जो माफिया की चांदी करा देता है वही किसान की कमर भी तोड़ देता है। इसीलिए किसान हमेशा आसमान की तरफ टकटकी लगाकर देखता है। कुदरत भी कभी कभी किसी खलनायिका से कम भूमिका नहीं निभाती, कहीं कहीं एक बूंद भी नहीं बरसेगी तो कहीं बाढ़ से सब डूबा देगी। इन सब के लिए भी हम इंसान ही जिम्मेदार हैं। जब हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने की कोशिश करते हैं तब हम अपना सब कुछ बर्बाद करने के रास्ते में एक कदम और बढ़ा लेते हैं। पानी, खाद इन सब पर खर्च करने के बाद जब फसल तैयार होती है तो वही किसान के जीवन में पैसे की तंगी को दूर करने का साधन होती है और सच बोलें तो शहर वालों के जीने का भी। पर, किसान को कभी भी इंसान की सबसे बड़ी जरूरत को पूरा करने का पारितोषिक नहीं मिलता। अनाज मंडी में बिचौलिए उससे औने पौने दामों पर वो अनाज़ खरीद लेते हैं और मनमाने दाम पर शहरों में बेच देते हैं और किसान की इतने दिनों की मेहनत की मलाई ये बिचौलिए खाते हैं।
गाड़ी में एक झटका लगा तो अरविंद ख्यालों की दुनिया से बाहर आ गया, जया अभी भी सो रही थी। उसने पानी की बोतल से एक घूंट पानी पिया और बाहर देखने लगा। गाड़ी शहर से बाहर निकल कर गांव की उबड़ खाबड़ रास्तों से गुजर रही थी। इन झटकों ने जया को भी जगा दिया था।
“कौन सा एरिया है ये, कितनी खराब रोड है” वो चिढ़ते हुए बोली।
“मौरांवा रोड है” — उसने कहा
“ये तो अभी दो साल पहले ही बनी है इतनी जल्दी ये हालत। जब नेताओं के पसंद के कांट्रेक्टर से रोड बनवाई जाएगी तो और क्या होगा”? उसे ये बात तीर की तरह लगी आखिर वो अब उस इलाके का जिलाधिकारी बन कर आया था। पिछले तीन महीने से वो नेता जी की मदद से अपने एरिया में सरकारी आनाज़ खरीदी केंद्र बनाने की कोशिश में लगा हुआ था और आज उसका ही उद्घाटन समारोह था, जिसमें जाने के लिए वो सुबह जल्दी निकला था ताकि अपने घर भी जा सके क्योंकि समारोह तो नेताजी की सुविधा के अनुसार शाम पांच बजे का था।
थोड़ी देर में अरविंद की गाड़ी उसके गांव के रास्ते पर थी दोनों तरफ लहलहाती फसलें देख कर उसका मन प्रफुल्लित हो गया। उसने एक तरफ उंगली दिखाते हुए जया से कहा वो देखो अपने खेत और वो बाग भी अपनी है। पूरे रास्ते जया को वहां के भौगोलिक नक्शे से अवगत कराते हुए अपने बचपन की शैतानियों को भी बताता रहा। जया उसे एकटक देखते हुए बोली “कितने खुश लग रहे हो तुम, जैसे मुरझाए हुए पौधे को पानी मिल गया हो”।
“सही कहा, ऐसा लग रहा है इस सब को अपने अंदर समां लूँ “-
कहते हुए वो लम्बी लम्बी सांसे लेने लगा। घर पहुंचने पर उसकी ताई यानि “बड़ी अम्मा” ने उसे सीने से लगा कर उसका माथा चूम
लिया पर ताऊ जी यानि कि “बप्पा” हमेशा की तरह कड़क बने रहे। उसके कहे अनुसार गांव के हर घर से एक एक आदमी बुला लिया गया था, यूं तो उसके आने पर सब आते ही थे पर इस बार एक भी घर न छूटने पाए ये ध्यान रखा गया था।
वो सबके सामने खड़ा होकर बोलने लगा “आज मैं यहां जिलाधिकारी के तौर पर खड़ा नहीं हूं बल्कि आपके ही बेटा, भाई की हैसियत से खड़ा हूं जो शहर में रहता है और वो जानता है कि हर शहरी का जीवन बस आप किसानों के ऊपर ही निर्भर है। आप लोगो के फल, सब्जी, अन्न से भरे हुए ट्रक जब किसी भी कारण से शहर नहीं पहुंचते और फिर शहरों में जो अफरा तफरी मच जाती है वो सबूत है इस बात का कि आप ही हमारे अन्नदाता हो। प्रणाम करता हूं आप सब को कि इतना कष्ट सह कर भी आप ने अपनी धरती मां का साथ नहीं छोड़ा और अपने देश को खाद्यान्न के लिए आत्मनिर्भर बनाने में भरपूर योगदान दिया। मैं आज यहां आप सब को सम्मानित करने आया हूं।”
इसके बाद उसने सब को एक एक शाल ओढ़ाकर प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। गांव के नवयुवकों को एक एक लैपटॉप भी दिया। गांव का हर किसान आज गौरवान्वित महसूस कर रहा था। सब एक साथ बोले “जय जवान, जय किसान”