जब बीमार पड़ गए भगवान जगन्नाथ

डॉ. सीमा  गुप्ता
कोलकाता

माधवदास नामक भगवान जगन्नाथ के एक अनन्य भक्त थे। माधवदास हर समय भगवान जगन्नाथ की भक्ति में तल्लीन रहते थे। उनका मात्र एक ही काम था भगवान जगन्नाथ की सेवा करना और उनका नाम जपना। एक बार की बात है माधवदास अत्यंत बीमार पड़‌ गए। उनके घर में कोई अन्य सदस्य न‌ होने के‌ कारण माधवदास की देखरेख नहीं हो रही थी। देखभाल के अभाव में माधवदास दिन-प्रतिदिन कमजोर होते जा रहे थे। अस्वस्थता के कारण भगवान जगन्नाथ की सेवा भी नहीं कर पा रहे थे। कहते हैं माधवदास अपनी बीमारी की वजह से कम और भगवान जगन्नाथ की सेवा न कर‌ पाने से अधिक चिंतित और दुःखी थे। माधवदास की शारीरिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वे‌ भगवान जगन्नाथ की सेवा कर‌ सकें। पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि भगवान जगन्नाथ अपने‌ बीमार पड़े भक्त माधवदास की खुद सेवा करते थे और उनकी देखभाल करते थे। जिस तरह से माधवदास की सेवा हो रही थी उससे माधवदास समझ गए थे सेवा करने वाला कोई साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि स्वयं त्रिलोकी नाथ यानि भगवान जगन्नाथ ही हैं।

एक दिन माधवदास ने भगवान जगन्नाथ चरण पकड़ लिए और‌ कहा- भगवन आप मेरी सेवा करो यह बिल्कुल अच्छी बात नहीं। माधवदास ने कहा अपने आराध्य के हाथों से‌वा पाने‌ से‌‌ बेहतर है मुझे मौत आ जाए। भगवान जगन्नाथ ने भक्त माधवदास की मनोस्थिति को समझते हुए उन्हें गले से लगाया और कहा हर व्यक्ति की मृत्यु का समय पहले से तय है। भगवान ने कहा- माधवदास यह जान लो समय से पहले न जन्म संभव है और न अंत।

इस पर माधवदास ने कहा आप मेरी सेवा करे ये सही नहीं। आपकी बात मैंने मान ली कि समय से पहले मौत नहीं आ सकती, लेकिन आप तो साक्षात परमात्मा हैंं मुझे जल्दी ठीक क्यों नहीं कर देते ?

भगवान जगन्नाथ ने कहा माधवदास अभी तुम्हारी बीमारी के 15 दिन बाकी हैं। तुम 15 दिन में स्वत: ठीक हो जाओगे, लेकिन माधवदास हठ करने लगे और बोले प्रभु जल्दी स्वस्थ कीजिए। भगवान जगन्नाथ ने माधवदास को बहुत समझाया, लेकिन माधवदास नहीं माने। तो भगवान जगन्नाथ ने भक्त का मान रखते हुए माधवदास की बीमारी खुद के शरीर पर ले ली और माधवदास को पूरी तरह रोग मुक्त कर दिया।

ऐसा माना जाता है कि तभी से हर साल रथ यात्रा से पहले भगवान जगन्नाथ 15 दिनों के लिए बीमार होकर एकांतवास में चले जाते है। इसे ज्वर लीला कहा जाता है। इस दौरान पुरी के जगन्नाथ मंदिर के पट बंद रहते हैं और केवल सेवकगण (दायित्वगण) ही प्रभु की सेवा कर सकते है।

ऐसा कहा जाता है कि इस अवधि में प्रभु अलारनाथ मंदिर में भक्तों को दर्शन देते हैं। इसके बाद रथ यात्रा से पहले भगवान जगन्नाथ स्वस्थ होकर अपने भाई-बहन (बलभद्र व सुभद्रा) के भक्तों को दर्शन के देने निकलते हैं।

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