चिडू

इस कंक्रीट के जंगल जैसे शहर मुंबई में एक फ्लैट लेना किसी सपने के सच होने जैसा ही होता है, मेरा सपना भी सच हुआ जब मैंने अपना फ्लैट लिया। मैं बहुत खुश थी, पंडित जी ने कहा कि तुलसी का पौधा लेकर घर में प्रवेश करने से अच्छा होता है सो मैंने भी एक छोटे से गमले में तुलसी का पौधा लेकर घर में प्रवेश किया। गृह प्रवेश के एक डेढ़ महीने बाद जब मेरी तुलसी में मंजरी (बीज) आए तब मैंने उसे अपनी तुलसी की मंजरी को खाते हुए देखा तो भगा दिया। उस समय मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। फिर मैने मनी प्लांट लगाया, कुछ दिनों बाद मैंने देखा कि मनी प्लांट की नई नाजुक कोपलों को कोई खा जाता है, मुझे लगा कोई चूहा होगा जो बालकनी में आसानी से आ जा सकता है।
एक दिन मुंबई की उमस भरी गर्मी की दोपहर में मैं सोने की कोशिश करते हुए अलसाई सी लेटी थी तो मुझे बहुत सी चिड़ियों की चहचहाहट से कोफ़्त होने लगी और मैं बालकनी में उनको भागने जा पहुंची। मैंने देखा सात आठ गौरैया चिड़ियों का झुंड मेरी तुलसी की मंजरी और मनी प्लांट की पत्तियों को खा रहा था। मुझे बहुत गुस्सा आया कि इनकी वज़ह से ही मेरा मनी प्लांट नहीं बढ़ पाया। मैं एक छोटा सा डंडा लेकर उन्हें भगाने लगी, सब तो भाग गई पर वो बालकनी की रेलिंग पर बैठ कर मुझे टुकुर टुकुर देखने लगी मानों पूछ रही हो कि हमनें क्या गलत किया। शायद वो पहले से ही आती रही होगी पर मैंने उस दिन देखा था। अगले दो तीन दिन मेरा और उनकी गैंग का आंख मिचौली का खेल चालू रहा। परेशान होकर मैंने मम्मी को फोन करके बताया तो वो हंसने लगी बोली जब बेचारी चिड़ियों को दाना नहीं मिलेगा तो यही सब खाएंगी, हमारे गांव में तो नहीं खाती क्योंकि उन्हें खेतों में दाना, तालाब में पानी मिल जाता है, तुम उनके लिए दाना पानी रख दिया करो फिर वो तुम्हारे पौधों को नहीं खाएंगी।
अगले दिन मैंने एक कटोरे में पानी और एक प्लेट में गेहूं रख कर बालकनी में रख दिया। अब मेरा मनी प्लांट बढ़ने लगा और तुलसी के बीज भी बचने लगे। कुछ दिन के बाद मैंने देखा कि मेरे मनी प्लांट की कोपलें फिर से खाई गई थीं। जब, मैंने दोपहर में फिर से निगरानी करना शुरू किया तो देखा कि उनकी गैंग तो अब सात आठ से चौदह पंद्रह की हो गई थी। उसी की किसी बदमाश चिड़िया ने मेरा मनी प्लांट खाया था। अब मैं दो प्लेट में गेहूं रखने लगी। धीरे धीरे मेरी दोपहर उनको देखने में ही कटने लगी। पूरा दिन मेरा ध्यान भी बालकनी की तरफ़ रहने लगा। जब वो गेहूं खाती तो कुछ नहीं लेकिन जैसे ही वो मनी प्लांट की तरफ़ आती मैं उनको भगाने पहुंच जाती। एक दिन मैंने गौर किया कि मेरे साथ साथ कोई और भी है जो मेरे मनी प्लांट की तरफ़ आने वाली गौरैया को चोंच मारकर भगाती है और वो थी एक छोटी सी गौरैया। जब मैंने इस बारे में अपने पति और बेटे को बताया तो बेटे को उसमें बड़ी दिलचस्पी हो गई और स्कूल से आने के बाद उसका ध्यान भी उस गैंग की तरफ रहने लगा। बाद में मेरे बेटे ने ही उस समझदार चिड़िया का नामकरण कर दिया ‘चिड़ू’।
सच कहूं तो कभी कभी मेरा मन भी करता था कि मनी प्लांट की कोपलों को खा कर देखूं क्योंकि इस गैंग को सिर्फ तुलसी और मनी प्लांट में ही रुचि थी बाकी दूसरे पौधे जैसे गुल्हड़ और गुलाब जो कि मेरी बालकनी में थे उनकी पत्तियों से उनको कोई मतलब नहीं था। वो दिन भर आती जाती रहती थीं लेकिन कहां रहती थी ये हमको पता नहीं था। बाकी मुंबई में बहुतायत में पाए जाने वाले कबूतर तो हर जगह बैठे दिख जाते हैं।
फिर हमारे इलाके में मेट्रो रेल का काम शुरू हो गया और इसके लिए बहुत से पेड़ काटे गए। उसके बाद से मैंने गौर किया कि उनकी गैंग छोटी हो रही है। अगले दो तीन महीनों में उनकी संख्या अठारह बीस से घटकर चार पांच ही रह गई। किसी त्योहार की तैयारी में मेरा भी ध्यान उस तरफ से हट गया। त्योहार के एक दिन बाद मेरा बेटा रुआंसी सी शक्ल लेकर मेरे पास आकर बोला,’मम्मी अब चिड़ू नहीं आती, उनका दाना कबूतर खा रहे हैं ‘।
दूसरे दिन से मैंने भी पूरा दिन चिड़ियों का इंतजार किया पर वो उसके बाद कभी नहीं आई। मेरी बालकनी तो क्या अब कहीं भी चिड़ू और उसकी गैंग नहीं दिखती है फिर भी मैं रोज़ थोड़ा दाना पानी रख देती हूं कि शायद इस शहर में मेरी चिड़ू के लिए भी जगह बन जाए।