रक्षाबन्धन का दिन था। विमला ने पूर्णिमा का व्रत रखा था। गाँव में लोग व्रत रखते हैं तो दूध - दही या लौकी, आलू आदि खाकर बने रहते हैं। गाँव वालों के पास न अधिक पैसा होता है और न व्यवस्था कि वे महंगे फल या सूखे मेवे आदि खा सकें। पर काफी दिनों से विमला के घर में दूध भी नहीं होता था। उसके पास एक भैंस थी किन्तु आर्थिक तंगी के कारण उसने अपनी भैंस बेच डाली थी। अत: वह गाँव में बनी डेरी से दूध लेने गई। पर दुर्भाग्यवश उसे डेरी में भी दूध न मिला क्यों कि त्योहार के कारण आज लोगों ने डेरी में दूध कम मात्रा में दिया था, और जो थोड़ा - बहुत दूध आया था जल्दी ही बिक गया। निराश मन विमला घर लौट आई। उसने चाय बनाने के लिए चूल्हे पर पानी चढ़ाया, पानी खौलने पर चायपत्ती और चीनी डाली दूध तो था नहीं। उसने चाय छानी और घर में बने पूजा घर में प्रभु की झांकी के आगे रुआंसी होकर बोली - प्रभु आपके होते हुए मैं यह काली चाय पिऊं ? विमला एक अहीर स्त्री थी। उसने कहा- हमारी नानी दादियों ने आपको भर - भर कर मटकी दूध - दही खिलाया और आप हमें एक - एक बूँद को तरसा रहे हो ?
विमला के पास और कुछ तो था नहीं, अत: उसने वही काली चाय कुछ पिया और कुछ छोड़कर चुपचाप लेट गयी। विमला के पति किसान थे। बेटियों का विवाह हो चुका था। बेटे भी विवाहित थे पर रोजगार के कारण बाहर रहते थे। विमला और उसके पति अपनी खेती की देखभाल करते थे और घर में एक 2 वर्ष की पड़िया थी, जिसकी सेवा करते थे।
दिन में 2 बजे के लगभग विमला अपनी पड़िया को पानी पिलाने के लिए घर से बाहर निकली तो क्या देखती है कि पड़िया की नांद में पड़े हुए बचे चारे को एक गाय खा रही है। विमला बड़ी ही धार्मिक प्रवृत्ति की स्त्री थी। उसने सोचा, आज पूर्णिमा है और गोमाता स्वयं चलकर उसके घर आई हैं तो वछ अन्दर से थोड़ा सा सूखा चारा ले आई और उस बचे हुए चारे में लगा दिया जिसमें गाय खा रही थी। चारा खा लेने पर गाय और पड़िया को पानी पिलाया। गाय के साथ एक बछिया भी थी, उसे एक रोटी खिलाया। पानी पीकर गाय वहीं बैठ गई। तभी पड़ोस का एक 11 वर्ष का बालक बोला - 'चाची इसके साथ एक बछिया भी हैं, दूध दुह कर देखो'।
विमला को जरूरत ही थी, उसने जब दूध दुहा तो आधा लीटर दूध निकल आया। फिर लड़के ने कहा - 'चाची इसे बाँध लो, शायद ज्यादा दूध देती हो।' विमला ने कहा - 'नहीं' बेटा आज जब मैं डेरी से बिना दूध के लौटी तो भगवान के आगे रो पड़ी थी तो तुम्हारे चाचा घर से चले गये। कह रहे थे किसी रिस्तेदार से गाय या भैंस लेकर ही लौटेंगे और दूध बेचकर उनका पैसा वापस कर देंगे। लड़के ने कहा "अभी बाँध लो जब चाचा ले आयें तो छोड़ देना"। विमला ने कहा "ठीक है"। विमला कुछ सोच विचार कर गाय को बाँधने के लिए तैयार हो गई। गाय बाँधकर विमला उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगी। गाय की पीठ पर हंसिया और डण्डों के अनेक निशान थे। जो शायद खेतों में चरते हुए, आवारा गोवंश पर रखवाली कर रहे किसानों द्वारा मारने से हो गये थे। विमला द्रवित हो गई। उसने हाथ फेरते हुए गाय से कहा - "माँ तुम अकेले आती तो शायद मेरे पति और बच्चे तुम्हें बंधा रहने देते पर तुम परिवार (बछिया) सहित आई तो तुम्हे कहाँ रखने देंगे। शाम को विमला ने अपनी पड़िया के साथ गाय को भी थोड़ा सा चारा दे दिया। रात में गाय वहीं बंधी रही, उसने सोचा सुबह खोल देंगे। जहाँ जाना होगा चली जाएगी।
विमला सुबह सोकर उठी तो घर से बाहर निकलने पर उसने देखा कि गाय तो बंधी है पर बछिया का पता नहीं। उसने गाय को बाँध लिया था, और बछिया को खुला छोड़ दिया था कि यह माँ को छोड़कर कहाँ जाएगी। विमला को घोर आश्चर्य हुआ कि कहीं उसके परिवार सहित आने की बात कहने के कारण तो बछिया नहीं चली गयी। उसने बछिया को गाँव भर में ढूँढा पर वह उसे कहीं नहीं मिली। अब गाँव वाले उसके घर गाय देखने आने लगे।
विमला ने गाय को दुहा तो उसने 2 लीटर दूध दिया। अब गाँव वालों के मुँह में पानी आने लगा। कई लोग कहने लगे अरे यह गाय तो हमारे दरवाजे गई थी पर हमने मार कर भगा दिया था। हमें क्या पता कि दूध देती होगी। कुछ पश्चाताप भी करने लगे कि हम ही बाँध लेते तो ठीक था। गाय ने शाम को कुछ अधिक मात्रा में दूध दिया। इस प्रकार बढ़ाते - बढ़ाते वह दोनों समय में 8 लीटर दूध देने लगी। विमला ने उसका नाम कल्याणी रख लिया।
विमला के पति 4-5 दिनों पश्चात रिस्तेदारी से एक बछिया लेकर आये जो तीन माह की गर्भवती थी। पर घर में दूधवाली गाय देखकर वह भी बड़े प्रसन्न हुए। एक सप्ताह पश्चात बड़ा बेटा आया तो, वह भी बहुत खुश हुआ। विमला 6 लीटर दूध बेच लेती जिससे उसका घरेलु खर्च चलता और 2 लीटर दूध बचा लेती जिसे पति - पत्नी खाते - पीते और थोड़ा सा घी भी बनता जो मंदिर में बाती जलाने के काम आता है। विमला के दिन प्रसन्नता भरे हो गये। कल्याणी ने कल्याण कर दिया।
यह उ. प्र. के फतेहपुर जिले के देवमई ब्लॉक के डारी खुर्द ग्राम की ही अक्षरशः सत्यकथा है। कल्याणी विमला के घर ही क्यों आई यह तो प्रभु ही जाने।