ईश्वरीय कृपा

जीवन में ईश्वरीय कृपा की आकांक्षा रखना मानवीय स्वभाव है। सभी व्यक्ति चाहते हैं कि उन पर ईश्वर की कृपा अनवरत बनी रहे। वे जिस काम में हाथ डालें उसकी सफलता के लिए उन्हें ईश्वरीय अनुकंपा मिलती रहे। यहां बात हो रही है उन लोगों की जो अपने किसी भी कार्य की सफलता के लिए मेहनत और ईश्वरीय आशीर्वाद दोनों को महत्वपूर्ण मानते हैं। यह अलग बात है कि इन लोगों में भी इस बात को लेकर मतभिन्नता दिखाई देती है कि सफलता के लिए मेहनत और ईश्वरीय कृपा में से पहले स्थान पर कौन आता है तथा किसकी भूमिका दूसरे के मुकाबले ज्यादा महत्वपूर्ण है। दोनों की बराबर भूमिका और समकक्षता की बात करने वाले लोग संभवत: इस विषय को तूल देने से बचने के लिए ऐसा करते हैं और मध्यमार्गीय दृष्टिकोण को ज्यादा ठीक मानते हैं।

जहां तक मेहनत की बात है - उसको लेकर प्रबुद्ध लोगों की राय मिलती-जुलती है। तकरीबन वे सब यही कहते हैं कि सही दिशा में और सुनियोजित रणनीति के तहत ईमानदारी से की गई मेहनत से सफलता की संभावना बढ़ जाती है। इधर, ईश्वरीय अनुकंपा पाने के लिए लोगों की अलग - अलग राय सामने आती है। कुछ लोग तंत्र - मंत्र की सलाह देते हैं, तो कुछ साधना की और कुछ अन्य तरह - तरह के अनुष्ठानों की। लेकिन सभी विद्वतजन ईश्वर के प्रति समर्पण भाव को प्रमुख शर्त मानते हैं। वे कहते हैं कि समर्पण भाव के लिए भक्त के हृदय में ईश्वर के प्रति विनम्रता का भाव होना बेहद जरूरी है। इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि - भक्त जितना विनम्र होता है, उसके प्रति ईश्वरीय अनुकंपा की संभावना भी उतनी ही बढ़ जाती है।

वैसे भी सच्ची भक्ति के लिए अपने आराध्य के प्रति विनम्रता से समर्पित होना सबसे जरूरी है, क्योंकि इसी से साध्य और साधक के बीच अंतरंग रिश्ता बन पाता है। साथ ही इस रिश्ते की गहराई यहां तक होनी चाहिए कि साधना के बावजूद अगर किसी भक्त को अपनी अपेक्षानुसार ईश्वरीय प्रसाद नहीं मिले तो उसे विचलित बिलकुल नहीं होना चाहिए और अपनी भक्ति को उसी भाव से जारी रखना चाहिए। यहां जरूरत है धैर्य और विश्वास की। इसे निष्काम भक्ति के अर्थ में भी समझा जा सकता है।

ईश्वरीय भक्ति के दौरान प्रयुक्त इस विनम्रता का व्यावहारिक जीवन में भी बड़ा महत्व है। जो लोग जीवन में विनम्र रहना सीख जाते हैं उन्हें जीवन भर के लिए अद्भुत आनंद की भी प्राप्ति हो जाती है। यह मान कर चलिए कि ईश्वर के प्रति व्यक्त समर्पण और विनम्रता को जिस अनुपात में सांसारिक जीवन में प्रयोग किया जाएगा, व्यक्ति का जीवन उतना ही सुगम और तनावरहित बनता चला जाएगा। रही बात सफलता की तो वह विनम्र व्यक्ति को मिल ही जानी है, हां कभी - कभार उसमें देर अवश्य हो सकती है। यहां भी धैर्य की उतनी ही जरूरत है। जिन लोगों को इस बात पर यकीन करने में कठिनाई हो, उन्हें अपने इर्द - गिर्द विनम्र प्रवृत्ति के व्यक्तियों पर नजर डालकर देख लेना चाहिए।

ऋषि कुमार शुक्ल, कोलकाता