इसे चोरी कहे या ठगी

व्यवसाय कोई भी हो, हर व्यवसाय के कुछ स्थापित नियम व सिद्धान्त होते हैं। उनके नियोजन और क्रियान्वयन में जितनी दक्षता होती है सफलता की संभावना उतनी ही प्रबल होती है।

चोरी अथवा ठगी भी एक व्यवसाय है ! भले ही यह सामाजिक अपराध की श्रेणी में आता हो। इसमें सफलता पाने के लिए बौद्धिक नियोजन और दक्ष क्रियान्वयन की आवश्यकता कुछ अधिक पड़ती है क्योंकि जरा सी भी चूक हुई कि गई भैंस पानी में।

ऐसी ही एक नियोजित चोरी का शिकार होने का संयोग बना सन् 2005 में, जब व्यापार के सिलसिले में तिरुपुर जाना हुआ। तिरुपुर तमिलनाडु में कोयम्बटूर और इरोड के ठीक मध्य में, दोनों से चौवन किलोमीटर के फासले पर स्थित एक छोटा सा कस्बा था उस समय। हमारे देश से उस समय रेडीमेड गार्मेन्ट की टोटल एक्सपोर्ट में चौबीस प्रतिशत हिस्सेदारी अकेले तिरुपुर की होती थी। मेरा व्यवसायिक कार्यक्षेत्र टेक्सटाइल प्रोसेसिंग केमिकल का रहा है। तिरुपुर में इनकी सप्लाई आरम्भ करने के उद्देश्य से मेरा वहां जाना हुआ था।

संयोग से वहां पहले ही सप्ताह में एक डी. शिवकुमार जी से भेंट हो गई जोकि हमारी कंपनी की आवश्यकताओं के सर्वथा अनुरूप थे। उनका डाई केमिकल का व्यापार था और मार्केट में अच्छी पकड़ थी। अनुकूल बात ये कि वे हमारी जैसी किसी कंपनी की प्रतीक्षा में थे जिसकी डिस्ट्रीब्यूटरशिप लेकर वह अपने व्यापार का और विस्तार कर सकें। उन्होंने एम. एस. सी. कानपुर में डी. बी. एस. कॉलेज से किया था इस कारण थोड़ी बहुत हिन्दी भी आती थी। शिवकुमार जी ने मुझे हाथों हाथ लिया और भरपूर सहयोग किया। कंपनी के प्रोडक्ट्स अच्छे थे और रेट्स भी कॉम्पिटीटिव थे। शिवकुमार जी के संपर्क से बीस प्रोडक्ट्स का ट्रायल वहां की रेप्यूटेड कंपनियों में हुआ जिसमें से अठारह पहली ही बार में ऍप्रूव हो गए। दो आइटम के काउंटर सैंपल कानपुर से मंगा कर दोबारा ट्रायल में वे भी ऍप्रूव हो गए।

प्रोडक्ट्स ऍप्रूव हो जाने के बाद भी विधिवत व्यापार शुरू हो पाने में कम से कम चार से छः महीने का समय लगना था और इस बीच रेगुलर फॉलो अप की आवश्यकता थी। ऐसे उचित यही था कि होटल छोड़कर बाहर कहीं एक कमरा लेकर रहने कि व्यवस्था कर ली जाये और अपने लिए दो पहिया वाहन की व्यवस्था कर ली जाये। सो शिवकुमार जी के सहयोग से यह सब भी हो गया। एक हॉस्टल में मासिक किराए पर एक कमरा ले लिया और एक हीरो होन्डा स्प्लेंडर बाइक खरीद ली। आरटीओ नंबर मिलने में एक सप्ताह का समय लगना था, सो विशेष ध्यान देने और काम निकालने की सलाह दी गई। मैंने इसका पालन भी किया।

वहां की कार्यपद्धति कुछ ऐसी थी कि सभी व्यापारी, फैक्ट्री ओनर अथवा शॉप ओनर अपने कार्यस्थल पर सुबह नौ बजे तक पहुंच जाते थे और दोपहर दो बजे तक वहां रहते थे। उसके बाद लंच के लिए घर निकल जाते थे। वापस चार बजे के बाद आते थे। इस बीच वो मोबाइल पर भी उपलब्ध नहीं होते थे। मैं भी लंच के बाद कमरे में आ जाता था। दोपहर में आराम करने की आदत नहीं थी, सो अपनी लिखा पढ़ी के कार्य तथा घर परिवार से बात करके समय का सदुपयोग कर लेता था। फोन पर बात करने के लिए बाहर बालकनी तक जाना पड़ता था क्योंकि कमरे में सिग्नल प्रॉपर नहीं मिल पाते थे।

बाइक लिए आज दूसरा ही दिन था, घर से बात करते हुए मैं बालकोनी पर खड़ा था। बात खत्म होते ही पीछे से एक व्यक्ति ने 'मिश्रा सर ! गुड आफ्टरनून' कहा। व्यक्ति अपरिचित था, सो मुस्कुरा कर उत्तर दिया और पूछा 'डू यू नो मी ? आई डोंट रीकलेक्ट आई नो यू !' उसने बताया 'सर माई नेम इज़ कन्नन ! माय रूम इज़ जस्ट बिहाइंड यू ! आई हैव बीन वाचिंग यू फॉर द लास्ट टू डेज। योर पर्सनालिटी इज़ सो इम्प्रेसिव दैट आई फेल्ट कम्पेल्ड टू टॉक टू यू।'

बात करते करते हम लोग कमरे में आ गए। उसने बताया कि वह शिवाकाशी का रहनेवाला है और यहां पास में ही एक सिलाई मशीन की कंपनी है जहां वह मशीनों की रिपेयर और मेंटेनेंस का काम देखता है। उसने बताया कि वह दो तीन दिन से मुझे देख रहा है और मैं उसे बहुत अच्छा लगता हूँ। मुझसे मिल कर उसे और भी अच्छा लगा। मेरी बातचीत, मेरा व्यवहार देखकर वह मेरा फैन हो गया। उसने कहा कि उत्तर भारत के लोग बहुत अच्छे होते हैं और दक्षिण के लोग तो बहुत ही निकृष्ट। उसकी बातचीत में ऐसा कुछ भी नहीं था जो मेरे लिए अप्रत्याशित हो। इस प्रकार की प्रशंसा सुनने का अच्छा अभ्यास था। तथापि उसकी बातें मेरे अन्दर रुचि और जिज्ञासा बढ़ा रही थीं जोकि मेरे अबतक के अनुभवों से पूर्णतया भिन्न थीं। अब तक मेरी जो धारणा बनी थी उसके अनुसार वहां के लोग हम उत्तर वालों के प्रति अच्छे भाव नहीं रखते थे। उनका बैरभाव प्रायः उनके व्यवहार से प्रकट होता रहता था क्योंकि उनकी हर वस्तु व सेवा के मूल्य हम उत्तर भारतीयों के लिए दो से ढाई गुना होते थे।

शाम को जब मैं कमरे में लौटा तो बालकनी में ही कन्नन को अपने लिए प्रतीक्षारत पाया। वह मुझे अपने कमरे में ले गया और अपने रूम पार्टनर से मेरी मुलाकात कराई। मुझे रात के भोजन के लिए निकलना था। औपचारिकतावश उससे पूछा तो वह भी साथ हो लिया। रात में मैं पास के ही एक रेस्टोरेंट में जाकर मसाला डोसा लेता था। हम अपनी नई बाइक में ही निकले। रास्ते में उसने बताया कि उसे भी स्प्लेंडर लेनी है, ये बाइक उसे बहुत अच्छी लगती है और मेरी बाइक का रंग पर्पल उसका फेवरेट कलर है। कंपनी के शोरूम में इसका एक ही पीस बचा था जोकि मैं ले आया। अब अगला लॉट आने तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। उसने बताया कि कंपनी में उसका एक परिचित है जिससे मेरे बारे में पता चला।

जब हम हॉस्टल वापस लौटे तो उसने बाइक की चाभी मांगी ! बोला कि एक राउंड कंपनी का मार के आता हूँ। मुझे ध्यान आया कि उसने अपनी कंपनी का जो पता बताया था उसके पास ही कंप्यूटर द्वारा डुप्लीकेट चाभी बनाने का बोर्ड मैंने देखा था। ऐसा कोई चांस ना देने की मंशा से उससे कहा कि चलो 'मैं भी साथ चलता हूँ, इसी बहाने आपकी कंपनी भी देख लूंगा' तो उसने मना कर दिया, बोला 'लीव इट' ! आई विल सी इट टुमारो'। मेरी किशोर अवस्था से ही मॉर्निंग वॉक की आदत है। सुबह सूर्योदय से पूर्व ही निकल लेना और एक घंटे बाद वापस लौटना। मेरी बाइक नीचे गलियारे में खड़ी थी। जाते हुए उसपर एक स्वाभाविक दृष्टी डालना और लौटकर उसे पोंछ-पांछ कर फिर ऊपर जाना एक सुखद अनुभूति देता था।

वॉक से लौटकर मैं शेविंग के लिए बैठा ही था की कन्नन आ गया और बोला 'सर ! यू गो फॉर वॉक ! आई सॉ यू ! ऑन रिटर्न यू क्लीन योर बाइक ! आई एम वाचिंग योर रूटीन एंड योर लाइफ स्टाइल इज़ वेरी गुड सर' ! वह आकर बैठ गया और मुझे दाढ़ी बनाते हुए देखता रहा। शेविंग पूरी हुई तो बोला 'सर ! योर फेस हैज वेरी नाइस ग्लो ! योर ब्रॉड फोरहेड एंड ग्लो इज़ लाइक गॉड!' मैंने हंसकर उसे थैंक्स बोला और कमरा बंद कर नहाने चला गया। अगला दिन रविवार का था। सुबह से रात तक कन्नन मेरे साथ ही रहा। लंच, डिनर सब साथ ही लिया। बहुत सारी बातें हुई उसने मेरे घर परिवार के विषय में पूंछा, अपने विषय में बताया कि उसके परिवार का मेन बिज़नेस पटाखों का है, जिसे उसके पिताजी और छोटा भाई मिलकर देखते हैं। एक बहन है जिसकी शादी करनी है। अपनी बातचीत में वह उत्तर भारत के लोगों के प्रति विशेष आदर भाव और साथ ही दक्षिण के लोगों के प्रति निकृष्टता के भाव भी प्रकट करता रहा। अगले दिन सोमवार को सुबह मैं बाथरूम से लौटा तो उसे अपने कमरे में बैठा पाया। मेरे कुछ पूछने से पहले ही वह बोला 'सॉरी सर ! आई सॉ योर रूम ओपेन सो आई केम इन! आई थॉट यू माइट हैव गोन टू बाथरूम! सो वेटिंग !' मैंने देखा सामने आलमारी पर बाइक की चाभी, मोबाइल, शेविंग बॉक्स और मेरा ट्रांजिस्टर आदि यथावत थे। वॉलेट मैं पैंट की जेब में रखता था, वह भी सुरक्षित था। मन आश्वस्त हो गया किन्तु यह आशंका भी जगी कि यह आदमी  चोट दे सकता है, इससे बहुत सावधान रहने की आवश्यकता है। तय कर लिया कि अब कमरा खुला नहीं छोड़ना है। बाथरूम भी जाना है तो ताला लगाकर।

उस दिन लंच शिवकुमार जी के साथ हुआ क्योंकि उनकी पत्नी मायके गई हुई थी। शिवकुमार जी को कन्नन के बारे में बताया तो उन्होंने शाम को उससे मिलने की इच्छा व्यक्त की। शाम को जब वे आए तो कन्नन मेरे कमरे में ही बैठा हुआ था। शिवकुिमार जी ने अपनी मातृभाषा तमिल में ही उससे विस्तार से बातें की और जाते हुए कहा 'ही सेज, ही इज़ योर फैन ! ही लाइक्स यू एलॉट !' फिर हंसते हुए बोले कि 'यू आर सो स्वीट मिश्रा जी ! आई एम ऑलरेडी योर फैन ! एवरीबॉडी लाइक्स यू !' शिवकुमार जी तो चले गए किन्तु मेरा मन आश्वस्त नहीं हुआ। मुझे स्पष्ट अनुभव हो रहा था कि कुछ ना कुछ गड़बड़ है! ये कुछ ज्यादा ही गले पड़ रहा है ! इसके इरादे नेक नहीं हो सकते ! बहुत सोच विचार के बाद लगा कि हो ना हो ये बाइक पार करने के मूड में है। निश्चय किया कि कल ही बाइक को शिवकुमार जी के यहां खड़ी कर दूंगा और जब तक नंबर नहीं मिल जाता, वहीं पर रखूंगा।

अगले दिन सुबह वॉक पर जाते समय बाइक पर रूटीन दृष्टी डाली तो वह नहीं थी। मैंने भागकर पूरे गलियारे को छान मारा बाइक नदारद थी। जब मैं देखा तो बाइक की चाभी नहीं थी, भागकर कमरे में देखा तो वहां भी नहीं थी। कन्नन के कमरे में गया तो उसके रूम पार्टनर से उसके बारे में पूंछा तो उसने कहा 'व्हाट हैपेंड ! डिड ही नॉट रीच करुर (पास का ही एक क़स्बा) ? एस्टर्डे ही टोल्ड मी दैट ही विल गो टू करुर ऑन योर बाइक दिस मॉर्निंग!'

जब उनसे करूर का पता या कन्नन का कॉन्टैक्ट नंबर पूंछा तो उन्होंने अनभिज्ञता प्रकट की और कहा कि यह सब मुझे पता होना चाहिए ! वह मेरा रूम पार्टनर था। मेरे लिए यह और भी विस्मयकारी था कि कन्नन ने उन्हें अपना परिचय मेरे रूम पार्टनर के रूप में दिया था। इसी परिचय के आधार पर उसे अपने कमरे में आने देते थे। यहां तक कि एक रात वो बाहर गए थे तो अपने कमरे की चाभी देकर गए थे कि रात में वह वहीं सो लेगा। अब तो स्पष्ट हो चुका था कि चोट हो गई। कन्नन के वास्तविक प्रयोजन के प्रति मेरी जिज्ञासा शांत हो चुकी थी। परोक्ष में कहीं अपने संशय के सही साबित  होने  का  भी संतोष था। किन्तु पश्चाताप जबरदस्त था कि बाइक की चाभी की सुरक्षा में मुझसे चूक कैसे हो गई! इतनी देर में होटल से और काफी लोग आ गए और सवाल जवाब करने लगे। वहां और रुकना मुझे उचित नहीं लगा सो वॉक पर निकल लिया।

वॉक करते हुए कंपनी में सूचना दी तो सलाह मिली कि पुलिस में रिपोर्ट करूँ और उचित कार्यवाही सुनिश्चित करूँ। घर पर बताया तो सभी परेशान हो गए। शिवकुमार जी को फोन किया तो उठा नहीं। मेरा मन लगातार मुझसे पूछे जा रहा था कि कन्नन ने मेरी चाभी कब और कैसे उठाई। ध्यान आया कि रात में अपने घर से बात करते हुए मैं बालकनी में चला गया था। उसी बीच उसने उठा ली होगी। हॉस्टल वापस लौटकर फिर शिवकुमार जी को फोन मिलाया तो वह फिर नहीं उठा। बारबार मिलाया, हर बार पूरी घंटी बजती लेकिन उठता नहीं। दोपहर बाद शिवकुमार जी का फोन आया उन्होंने बताया कि उनकी मैरेज एनिवर्सरी थी और वे सपरिवार ऊटी गए थे। वहां मन्दिर के भीतर मोबाइल ले जाने की अनुमति नहीं थी इस कारण उसे कमरे में ही छोड़ गए थे। देर शाम को शिवकुमार जी जब आए तो उन्होंने बताया कि वे सब पता कर चुके हैं। चोरी की रिपोर्ट के लिए प्रमाण स्वरुप चाभी चाहिए जिसकी व्यवस्था उन्होंने कर ली है। कंपनी में एक डुप्लीकेट चाभी रहती है। इंश्योरेंस क्लेम करने के लिए आर टी ओ नंबर चाहिए उसके लिए गाड़ी चाहिए, जिसके इंजन और चेसिस नंबर का सत्यापन मौके पर किया जाता है। यह काम कठिन है लेकिन वो मैनेज कर लेंगे।

शिवकुमार जी ने बताया कि एक संगठित गिरोह इस समय सक्रिय है तिरुपुर में, कन्नन सरीखे लोग कंपनी से नए ग्राहकों की जानकारी निकालकर ऐसे ही घुसपैठ से चाभी पार करके रातों रात गाड़ी पार कर देते हैं। रात में ही उसे डीअसेम्बल करके स्पेयर पार्ट में कन्वर्ट कर दिया जाता है। बिना आर टी ओ नंबर की गाड़ी का मूल्य सबसे अधिक मिलता है। और इसमें कंपनी के उन बंदों की कमीशन बकायदा तय होती है जिनसे ये जानकारी लेते हैं। इस घटना को अठारह वर्ष बीत चुके हैं पर अपनी ओर से हुई अब तक की एकमात्र चूक के लिए मन में अभी तक पश्चाताप है। निसंदेह इस प्रकार की नियोजित चोरी का शिकार जीवन में पहली और कदाचित आखरी बार हुआ था। यह संशय अभी तक बरकरार है कि इसे चोरी  कहें  या  ठगी।

पं. राकेश राज मिश्र 'जिज्ञासु'