आधुनिक पोषण काविरोधाभास

कोलकाता
हम ऐसे युग में जी रहे हैं जहाँ खाने की कोई कमी नहीं है, फिर भी शरीर पोषण को सही ढंग से अवशोषित नहीं कर पाता। पोषण की कमी बढ़ती जा रही है। आज की शहरी जीवनशैली में विटामिन D, B12 और आयरन की कमी के साथ-साथ थकान, पाचन की समस्या और रोग प्रतिरोधक क्षमता में गिरावट आम हो गई है। इसका मुख्य कारण भोजन की कमी नहीं, बल्कि पारंपरिक भारतीय भोजन पद्धतियों से दूरी बनाना है, जो कभी शरीर और मन दोनों को संतुलित रूप से पोषण देती थीं।
पारंपरिक भोजन की बुद्धिमत्ता
भारतीय भोजन परंपराएँ सदियों के अनुभव और प्रकृति के साथ तालमेल से विकसित हुई थीं। हमारा भोजन हमेशा मौसमी, स्थानीय और संतुलित होता था, जो शरीर की प्राकृतिक आवश्यकताओं के अनुरूप होता था।
हर सामग्री का एक विशिष्ट उद्देश्य होता था।
• हल्दी – सूजन को कम करने के लिए
• तिल और जीरा – पाचन को बेहतर बनाने के लिए
• आँवला – विटामिन C का प्रमुख स्रोत
• बाजरा और दालें – लंबे समय तक ऊर्जा देने के लिए
• शुद्ध घी और मेवे – अच्छे वसा और मस्तिष्क के पोषण के लिए
पारंपरिक भारतीय थाली संतुलन का प्रतीक थी—जिसमें अनाज, दालें, सब्जियाँ, घी और अचार सब कुछ संतुलित मात्रा में होता था। इससे शरीर को सभी पोषक तत्व प्राकृतिक रूप में प्राप्त होते थे और किसी सप्लीमेंट की आवश्यकता नहीं पड़ती थी।
भूली हुई परंपराएँ, बढ़ती समस्याएँ
हमारे पूर्वजों के भोजन में भिगोना, अंकुरित करना, फर्मेंटेशन और धीमी आँच पर पकाना जैसे तरीके अपनाए जाते थे, जो पोषक तत्वों की उपलब्धता और पाचन क्षमता को बढ़ाते थे।
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में ये सभी प्रक्रियाएँ “तत्काल” भोजन और प्रोसेस्ड फूड्स ने ले ली हैं। लोग मोबाइल या टीवी देखते हुए खाना खाते हैं, जिससे भूख का संकेत और पाचन दोनों ही प्रभावित होते हैं। परिणामस्वरूप, पर्याप्त भोजन खाने के बावजूद शरीर उसे सही ढंग से अवशोषित नहीं कर पाता और पोषण की कमी बढ़ती जाती है ।
जड़ों से जुड़ना
पारंपरिक आहार पद्धतियों की ओर लौटना अतीत की याद नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक समझ है। मौसमी, स्थानीय और ताज़े खाद्य पदार्थ शरीर में संतुलन लाते हैं, आंतों को मज़बूत करते हैं और ऊर्जा स्तर को बढ़ाते हैं।
छोटे-छोटे बदलाव जैसे दही या कांजी जैसे फर्मेंटेड फूड्स शामिल करना, कोल्ड-प्रेस्ड तेलों का उपयोग, मिलेट्स का सेवन और सही समय पर भोजन करना – ये सभी स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक हो सकते हैं।
आगे का मार्ग
आधुनिक पोषण को भारतीय पारंपरिक सिद्धांतों से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है — जागरूकता, कृतज्ञता और संतुलन के साथ भोजन करना ही वास्तविक स्वास्थ्य का मार्ग है।
यदि हम इन पुरानी, परंतु समय-परीक्षित परंपराओं को पुनः अपनाएँ, तो हम आधुनिक जीवन की असंतुलनता को दूर कर सकते हैं और अपने भोजन को वास्तव में पोषक और टिकाऊ बना सकते हैं।
अंततः, हमारे पूर्वजों की यह बात आज भी सत्य है — स्वास्थ्य का रहस्य किसी नए प्रयोग में नहीं, बल्कि भोजन के साथ पुनः जुड़ने में है।
