अनावश्यक सीजेरियन प्रसव सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का विषय

भारत में हर पांच में से एक शिशु का जन्म ऑपरेशन के जरिए होता है और इनमें से अधिकतर सर्जरी सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों की तुलना में निजी स्वास्थ्य केन्द्रों में की जाती हैं। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। ‘द लैंसेट रीजनल हेल्थ-साउथ ईस्ट एशिया जर्नल’ में प्रकाशित इस अध्ययन में नयी दिल्ली स्थित ‘जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ’ के शोधकर्ताओं ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के पांचवें दौर में एकत्र किए गए 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों की 15-49 वर्ष की 7.2 लाख से अधिक महिलाओं के आंकड़ों का विश्लेषण किया।
विभिन्न राज्यों में ‘सिजेरियन’ या ‘सी-सेक्शन’ प्रसव की दर में काफी भिन्नता पाई गई। नागालैंड में यह 5.2 फीसद है वहीं तेलंगाना में 60.7 फीसद तक है। अनुसंधान कर्ताओं के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला है कि “भारत में उच्च आय और निम्न आय वर्ग में सरकारी केन्द्रों की तुलना में निजी प्रतिष्ठानों पर सीजेरियन प्रसव कराने की अधिक संभावना है। “सीजेरियन प्रसव (सीजेरियन सेक्शन या सी सेक्शन) एक महत्वपूर्ण चिकित्सा प्रक्रिया है, जो तब आवश्यक होती है जब सामान्य प्रसव से मां और बच्चे के स्वास्थ्य को खतरा हो। लेकिन पिछले कुछ दशकों में, सीजेरियन प्रसव की दर में अत्यधिक वृद्धि देखने को मिली है। भारत सहित कई देशों में, यह वृद्धि अनावश्यक रूप से की जा रही सीजेरियन प्रक्रियाओं के कारण हुई है। यह न केवल महिलाओं के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है, बल्कि यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भी एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बन चुका है।
वर्तमान समय में, भारत में अनावश्यक सीजेरियन प्रसव सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का विषय है। सर्जरी से प्रसव, जिसे सिजेरियन सेक्शन (सी-सेक्शन) भी कहा जाता है, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें गर्भवती महिला के पेट और गर्भाशय में चीरा लगाकर शिशु को बाहर निकाला जाता है। सामान्य प्रसव और सर्जरी से प्रसव (सिजेरियन सेक्शन) दोनों ही प्रसव के तरीके हैं, लेकिन दोनों में कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं। एक ओर जहां सामान्य प्रसव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसमें शिशु गर्भाशय से योनि के माध्यम से बाहर निकलता है। सामान्य प्रसव में सर्जरी की तुलना में कम जोखिम होते हैं। सामान्य प्रसव के बाद महिलाएं तेजी से स्वस्थ / ठीक होती हैं। सामान्य प्रसव शिशु के लिए फायदेमंद होता है, क्योंकि इससे शिशु को गर्भाशय से योनि के माध्यम से बाहर निकलने में मदद मिलती है।
सामान्य प्रसव के बाद स्तनपान में आसानी होती है। वहीं सर्जरी से प्रसव (सिजेरियन सेक्शन) में सर्जरी की आवश्यकता होती है। सिजेरियन सेक्शन में सर्जरी के जोखिम अधिक होते हैं। सिजेरियन सेक्शन के बाद ठीक होने में लंबा समय लगता है। सिजेरियन सेक्शन शिशु के लिए जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि इससे शिशु को गर्भाशय से योनि के माध्यम से बाहर निकलने में मदद नहीं मिलती है। सिजेरियन सेक्शन के बाद स्तनपान में कठिनाई हो सकती है।
अनावश्यक सीजेरियन प्रसव के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं, जैसे; कई निजी अस्पताल सीजेरियन प्रसव को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि यह सामान्य प्रसव की तुलना में महंगा होता है और इसमें कम समय लगता है। कई महिलाओं को सामान्य प्रसव की प्रक्रिया के लाभों और सीजेरियन के जोखिमों के बारे में जानकारी नहीं होती। देर से विवाह, बढ़ती उम्र में गर्भधारण और शारीरिक गतिविधियों में कमी जैसे कारण भी सीजेरियन प्रसव की मांग बढ़ा रहे हैं। कुछ परिवार बच्चे के जन्म की तारीख और समय को लेकर ज्योतिषीय या धार्मिक कारणों से सीजेरियन करवाने का निर्णय लेते हैं। कुछ महिलाएं प्रसव पीड़ा से बचने के लिए स्वेच्छा से सीजेरियन प्रसव का चयन करती हैं।
अनावश्यक सीजेरियन प्रसव के कारण कई अनचाहे प्रभाव पड़ते हैं। महिलाओं के स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ता है। अनावश्यक सीजेरियन प्रसव के दौरान संक्रमण, अत्यधिक रक्तस्राव और एनेस्थीसिया से जुड़ी जटिलताएं हो सकती हैं। सामान्य प्रसव के मुकाबले सीजेरियन प्रसव के बाद शारीरिक रूप से उबरने में अधिक समय लगता है। सीजेरियन प्रसव के बाद महिलाओं को भविष्य में जटिलताओं, जैसे गर्भाशय के फटने या प्लेसेंटा प्रिविया का जोखिम अधिक होता है। बच्चे के स्वास्थ्य पर भी कई प्रभाव पड़ते हैं, जैसे; प्राकृतिक प्रतिरक्षा में कमी चूंकि सामान्य प्रसव के दौरान बच्चा मां के जन्म नलिका से गुजरता है, जिससे उसे प्राकृतिक जीवाणु (बैक्टीरिया) से प्रतिरक्षा मिलती है। सीजेरियन के माध्यम से पैदा हुए बच्चों में यह लाभ कम होता है।
सीजेरियन प्रसव से जन्मे बच्चों में श्वसन समस्याओं का खतरा अधिक होता है। अनावश्यक सीजेरियन प्रक्रियाएं सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली पर आर्थिक बोझ डालती हैं। यह प्रक्रिया सामान्य प्रसव से अधिक महंगी होती है और गरीब तबके के लिए इसे वहन करना मुश्किल होता है। सिजेरियन सेक्शन के कई कारण हो सकते हैं, जैसे; यदि प्रसव के दौरान जटिलताएं आती हैं, जैसे कि शिशु की स्थिति में समस्या या गर्भवती महिला के स्वास्थ्य में समस्या। यदि गर्भवती महिला को गर्भावस्था के दौरान समस्याएं आती हैं, जैसे कि उच्च रक्तचाप या मधुमेह। यदि गर्भवती महिला को पहले सिजेरियन सेक्शन हुआ है, तो अगले प्रसव के लिए भी सिजेरियन सेक्शन की आवश्यकता हो सकती है।
इस लिहाज से सिजेरियन सेक्शन के कई फायदे भी हैं, जैसे; सिजेरियन सेक्शन जटिल प्रसव में मदद कर सकता है। सिजेरियन सेक्शन शिशु की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है। सिजेरियन सेक्शन गर्भवती महिला की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है। इस समस्या के अनेक तरीके से समाधान संभव हैं, जैसे; महिलाओं और उनके परिवारों को सामान्य प्रसव के लाभ और सीजेरियन प्रसव के जोखिमों के बारे में शिक्षित करना आवश्यक है। सरकार को निजी अस्पतालों और डॉक्टरों पर सीजेरियन प्रक्रियाओं की निगरानी के लिए सख्त नियम लागू करने चाहिए।
गर्भावस्था के दौरान योग, व्यायाम और सही आहार की सलाह देकर महिलाओं को सामान्य प्रसव के लिए तैयार किया जा सकता है।
प्रशिक्षित दाइयों (मिडवाइव्स) की सहायता से सामान्य प्रसव को बढ़ावा दिया जा सकता है। यह न केवल सुरक्षित है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में यह अधिक सुलभ और किफायती भी है।
भारत में उच्च सी-सेक्शन दरों के संभावित कारकों को समझने के लिए इस विषय पर गहन अध्ययन की आवश्यकता है। भारत, एक विविध देश होने के नाते, भौगोलिक, धर्म, जाति और अन्य सामाजिक-आर्थिक विशेषताओं में काफी व्यापक अंतर रहे हैं जो अंततः महिलाओं की शिक्षा, साक्षरता, आजीविका और स्वास्थ्य से संबंधित हैं। शिक्षा, सीजेरियन प्रसव के बारे में जागरूकता और संस्थागत प्रसव का महत्व और स्वास्थ्य सेवा तक बढ़ी हुई पहुँच उच्च सी-सेक्शन प्रसव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कुछ वैश्विक अध्ययनों ने सी-सेक्शन दरों में वृद्धि में योगदान देने वाले चिकित्सक कारक का उल्लेख किया है, जो सी-सेक्शन को प्राथमिकता देने के मामले में है क्योंकि चिकित्सकों की अपनी सुविधानुसार सी-सेक्शन शेड्यूल करने की क्षमता, योनि प्रसव की तुलना में सी-सेक्शन द्वारा प्रसव की कम अवधि, योनि प्रसव में चिकित्सकों का अपर्याप्त प्रशिक्षण और वित्तीय प्रोत्साहन अध्ययन बताते हैं कि स्वास्थ्य सुविधाओं में सीजेरियन प्रसव (डिलीवरी) में वृद्धि को विभिन्न कारक प्रभावित करते हैं और विभिन्न कारकों के मध्य सह-संबंध है। भारत के राज्यों में सीजेरियन डिलीवरी के भौगोलिक प्रसार भिन्न भिन्न हैं। भारत में सी-सेक्शन डिलीवरी के राज्यवार प्रसार में परिवर्तन का समग्र अध्ययन आवश्यक है। साथ ही सीजेरियन (सी-सेक्शन) डिलीवरी (प्रसव) के सामाजिक-आर्थिक और बायोमेडिकल पूर्वानुमानों को समझना भी जरूरी है।
उच्च सी-सेक्शन प्रसव दिखाने वाले शीर्ष पांच राज्य क्रमशः केरल (42.4 फीसद), आंध्र प्रदेश (42.4 फीसद), लक्षद्वीप (31.3 फीसद), जम्मू और कश्मीर (41.7 फीसद) और गोवा (39.5 फीसद) थे। कम सी-सेक्शन प्रसव दिखाने वाले निचले पांच राज्य क्रमशः मेघालय (8.2 फीसद), बिहार (9.7 फीसद), मिजोरम (10.8 फीसद), असम (18.1 फीसद) और हिमाचल प्रदेश (21.0 फीसद) हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच ओ) के अनुसार, किसी भी देश में कुल प्रसवों में सीजेरियन प्रसव का आदर्श प्रतिशत 10-15 फीसद होना चाहिए। लेकिन भारत में यह आंकड़ा कई राज्यों में 25-35 फीसद तक पहुंच गया है। निजी अस्पतालों में यह दर और भी अधिक है। कई मामलों में, चिकित्सा कारणों के बजाय वित्तीय लाभ, चिकित्सकों की सुविधा और महिलाओं के बीच सामान्य प्रसव का डर इस प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं।
सरकार को स्वस्थ गर्भवती माताओं के लिए सामान्य प्रसव के महत्व पर जागरूकता बढ़ाने की प्राथमिक पहल करनी चाहिए, जिससे महिलाओं में मातृ स्वास्थ्य साक्षरता बढ़ेगी। यह सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और प्राथमिक देखभाल चिकित्सकों जैसे फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं की मदद से किया जा सकता है, जो गर्भवती माताओं के प्रसव-पूर्व देखभाल, जाँच या किसी भी स्वास्थ्य समस्या के लिए संपर्क का पहला बिंदु हैं। इन जाँच सत्रों के दौरान, प्राथमिक देखभाल प्रदाता प्रसव और उनके चिकित्सा निहितार्थों के बारे में जागरूकता बढ़ा सकते हैं ताकि माताएँ प्रसव से पहले खुद निर्णय ले सकें और भविष्य में अनावश्यक सी-सेक्शन प्रसव के अचानक निर्णय की घटनाओं को कम किया जा सके। महिलाओं में कोई चिकित्सा जटिलता न दिखने पर सामान्य प्रसव के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए विभिन्न संचार माध्यमों के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाए जाने की भी आवश्यकता है। इसलिए, एक ऐसा शासनादेश तैयार करना महत्वपूर्ण है, जिसमें यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सी-सेक्शन प्रसव केवल तभी किया जाना चाहिए जब चिकित्सकीय रूप से आवश्यक हो और उन राज्यों में निर्देशों को लागू किया जाए जहाँ सी-सेक्शन बहुत अधिक है। यह भी देखने की आवश्यकता है कि निजी अस्पताल अपनी राजस्व संभावनाओं के लिए रोगियों को सी-सेक्शन प्रसव के लिए मजबूर न करें। उत्तर भारतीय राज्यों की तुलना में दक्षिण भारतीय राज्यों में सी-सेक्शन डिलीवरी ज़्यादा प्रचलित है। इसके अलावा, इस तरह की डिलीवरी ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में ज़्यादा की जाती है।
महिलाओं की साक्षरता और जन्म के समय उनकी बढ़ती उम्र सी-सेक्शन प्रसव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, अर्थात ये सी-सेक्शन प्रसव की बढ़ती दर के सीधे आनुपातिक हैं। निजी संस्थान सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों की तुलना में अधिक सी-सेक्शन प्रसव करवा रहे हैं। और यह उच्च-मध्यम वर्ग और धनी परिवारों की महिलाओं से जुड़ा है, जो बेहतर सेवा प्रावधान और देखभाल की बेहतर गुणवत्ता की धारणा के कारण ज़्यादातर निजी संस्थानों में प्रसव करवाना पसंद करती हैं।
महिलाओं में कोई चिकित्सा जटिलता न दिखने पर सामान्य प्रसव के महत्व पर जागरूकता फैलाना महत्वपूर्ण है और यह प्राथमिक देखभाल प्रदाताओं और अग्रिम पंक्ति कार्यकर्ताओं के माध्यम से किया जा सकता है, जो एएनसी देखभाल, नियमित जांच और गर्भावस्था में किसी भी जटिलता से संबंधित जांच के लिए गर्भवती महिलाओं के संपर्क का पहला बिंदु हैं।
सरकार को एक आदेश तैयार करना चाहिए और उन राज्यों में निर्देशों को लागू करना चाहिए जहां सी-सेक्शन के मामले बहुत अधिक हैं।अनावश्यक सीजेरियन प्रसव न केवल एक महिला और उसके बच्चे के स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव डालता है, बल्कि यह एक बड़े स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को भी प्रभावित करता है। इस समस्या का समाधान महिलाओं और समाज की मानसिकता बदलने, चिकित्सकों और अस्पतालों की जवाबदेही सुनिश्चित करने और सरकारी नीतियों को सुदृढ़ करने में निहित है। यदि समय रहते इस मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया गया, तो यह जन स्वास्थ्य के लिए एक और गंभीर चुनौती बन सकता है।
