अनायास मुख से एक ही बात स्फुटित हो रही थी . …”हमें लग रहा है कि यह राजस्थान नहीं केरल है” वाक़ई में बाँसवाड़ा का सौंदर्य अद्भुत, अप्रतिम और अविस्मरणीय है, इसमें कोई शक नहीं है।
जिन लोगों ने अभी तक राजस्थान को नहीं देखा है या केवल जयपुर, जोधपुर और जैसलमेर का भ्रमण किया है, उनके मन में शायद राजस्थान की एक ही छवि होगी, दूर तक फैला हुआ रेगिस्तान और धूल भरी ऑंधियां या किलों, महलों एवं हवेलियों वाला राजस्थान। आपको बताना चाहूँगा कि राजस्थान को रंगीला – राजस्थान यूँ ही नहीं कहा जाता है, अगर आप अभी तक बाँसवाड़ा नहीं गये हैं तो एक बार जाकर अवश्य देखिये। मुझे पूरा विश्वास है कि आपकी सोच अवश्य बदल जायेगी। जो हरे भरे पहाड़ और झीलें यहाँ देखने को मिलेंगी वो बरबस ही आपका मन मोह लेंगी।
अरविन्द त्रिपाठी पर्यटन प्रेमी, कानपुर
बाँसवाड़ा दक्षिण राजस्थान का गुजरात और मध्य प्रदेश का सीमावर्ती ज़िला है, जहाँ पर प्रकृति ने अपने दोनों हाथों से सौंदर्य को लुटाया है। यहाँ के हरे भरे पहाड़, कल कल बहती नदियाँ, 100 से अधिक टापू, आदिवासी संस्कृति सदाबहार पेड़ पौधे, घने जंगल, पवित्र धार्मिक स्थल और विशाल माही बाँध आदि सब कुछ अपने आप में अनूठा है। बाँसवाड़ा को 100 द्वीपों का शहर या राजस्थान का चेरापूंजी भी कहा जाता है। पूर्व में इस क्षेत्र केजंगलों में बांस के पेड़ों की बहुतायत मात्रा में होने से इस स्थान का नाम बाँसवाड़ा पड़ गया। इन सबके अतिरिक्त यहाँ की जो विशेष बात है वो यह है कि बाँसवाड़ा के मध्य से कर्क रेखा गुजरती है और राजस्थान में मानसून के प्रवेश करने के दो द्वारों में से एक द्वार बाँसवाड़ा भी है।
बाँसवाड़ा का गठन सन् 1530 में रजवाड़े के रूप में किया गया और इसे डूंगरपुर राज्य की राजधानी के रूप में विकसित किया गया। आज़ादी के बाद सन् 1948 में राजस्थान राज्य में विलय किया गया। पुराने समय में इसे “वागड़” के नाम से भी जाना जाता था। यह ज़िला झरनों के द्वारा सिंचाई करने के मामले में प्रदेश का सबसे अग्रणी ज़िला है।
चलिए अब बाँसवाड़ा के प्रमुख पर्यटन स्थलों के बारे में जानते हैं –
1) माँ त्रिपुरा सुंदरी मंदिर – प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ साथ धार्मिक स्थलों की श्रेणी में भी बाँसवाड़ा में कुछ प्रसिद्ध और दिव्य धार्मिक स्थल हैं, जिनमें से एक माँ त्रिपुरा सुंदरी मंदिर है। यह मंदिर बाँसवाड़ा से लगभग 16 किमी दूर स्थित है। बाँसवाड़ा का यह क्षेत्र अति प्राचीन काल से ही धार्मिकता से ओतप्रोत रहा है। भारत में त्रिपुर सुंदरी के अन्य भी मंदिर हैं, लेकिन बाँसवाड़ा का मंदिर अपनी निर्माण कला, शिल्प कला, भव्यता एवं दिव्यता के लिए मरुधरा ही नहीं बल्कि देश भर में प्रसिद्ध है। सिंहवाहिनी माँ त्रिपुरा सुंदरी की पांच फुट ऊंची मूर्ति में माता दुर्गा के नौ रूपों की प्रतिकृतियाँ अंकित हैं। माता के सिंह, मयूर और कमलासिनी होने के कारण यह दिन में तीन रूपों को धारण करती हुई प्रतीत होती है। इसमें प्रातः बेला में कुमारिका, मध्याह्न बेला में यौवना और सायंकाल में प्रौढ़ रूप में माँ के दर्शन होते हैं। माँ त्रिपुरा सुंदरी माँ काली के कई रूपों में से एक हैं। माँ त्रिपुरा मंदिर के साथ एक अन्य चीज भी जुड़ गई है। वह है इसे राजनीतिज्ञों के संकटमोचनी के रूप में भी प्रसिद्धि प्राप्त है।
2) जयसमन्द झील – जयसमन्द झील राजस्थान के अरावली पर्वत श्रृंखला के दक्षिण पूर्व स्थित एक विशाल जलाशय है। इस झील को एशिया की दूसरी सबसे बड़ी कृत्रिम ताजे मीठे पानी की झील होने का गौरव प्राप्त है। जयसमन्द झील का सौंदर्य और आकार अद्भुत है। यह झील लगभग 15 किमी लंबी और 9 किमी चौड़ी एवं 30 मील परिधि में 102 फुट गहरी है। इस झील में संगमरमर की सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। झील की ख़ूबसूरती और प्राकृतिक सौन्दर्य की कल्पना इसी बात से की जा सकती है कि अनेक फ़िल्मकारों ने अपनी फ़िल्मों में यहाँ के दृश्यों का फ़िल्मांकन किया है।
3) बेणेश्वर धाम – बेणेश्वर धाम उदयपुर-बाँसवाड़ा मार्ग पर साबला क़स्बे के पास स्थित है। यहाँ का प्रमुख आकर्षण त्रिवेणी संगम है, जो कि सोम, जाखम और माही नदी के मिलने से बनता है। बेणेश्वर धाम में भगवान शिव का मंदिर है, यहाँ आने वाले श्रद्धालु पहले त्रिवेणी संगम में स्नान करके फिर भगवान शंकर के दर्शन और पूजा अर्चना करते हैं। बेणेश्वर धाम सदियों से यहाँ रहने वाले आदिवासियों की श्रद्धा एवं आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहाँ समीप में “श्री हरि बेणेश्वर मंदिर” नाम का भव्य मंदिर बना हुआ है जो कि “राधा कृष्ण जी” को समर्पित है। बेणेश्वर धाम और यहाँ लगने वाला मेला सारी दुनिया में आदिवासी क़बीलाई संस्कृति का सबसे बड़ा स्थान है। यहाँ मेले के समय लाखों आदिवासी एकत्रित होते हैं, इसलिये इसे “आदिवासियों का कुम्भ” कहा जाता है।
4) दत्त मंदारेश्वर महादेव मंदिर – यह मंदिर शहर से लगभग 5 किमी दूर पर स्थित है। यह एक अति प्राचीन मंदिर है, जहाँ प्राकृतिक परिवेश में ऊँची पहाड़ी पर एक विशाल गुफा में भगवान शिव का बहुत सुंदर मन्दिर है। यहाँ पर वर्ष पर्यन्त श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है।
5) जगमेर हिल्स – बाँसवाड़ा शहर से लगभग 14 किमी दूर जगमेर हिल्स तक पहुँचने से पहले ही यहाँ के नैसर्गिक सौंदर्य के मुरीद हो जायेंगे। हरी भरी वादियाँ, रास्ते में पड़ते छोटे छोटे गॉंव, स्कूल जाते बच्चे। जगमेर हिल्स बाँसवाड़ा का नया पर्यटन स्थल और हिल स्टेशन है, जो कि छोटी बड़ी कई पहाड़ियों की एक पूरी श्रृंखला है। इनमें सबसे ऊँची पहाड़ी को जगमेर नाम दिया गया है। पहाड़ियों के बीच से गुजरते हुए घुमावदार सड़कों के दाएं और बाएं खेत, छोटी छोटी तलैया और हरे भरे पेड़ों के कारण रास्ता “मंजिल से अधिक खूबसूरत सफर” वाली कहावत को चरितार्थ करता है। यहाँ पहुँचते ही आप अवाक रह जायेंगे और राजस्थान के इस अनछुए स्वर्ग और हरे भरे हिल को देखकर अनायास ही मुख से यही निकलता है कि यह तो “राजस्थान का केरल है”। यहाँ पर आस-पास में कोई रेस्टोरेन्ट या होटल आदि नहीं है, इसलिये यहाँ जाने पर अपने साथ पर्याप्त मात्रा में खाने पीने की सामग्री लेकर जायें। यहाँ पर पूर्ण आनन्दमय वातावरण में एक-दो घण्टे से लेकर पूरा दिन व्यतीत कर सकते हैं। यह आपके लिए कभी न भूलने वाला अनुभव रहेगा।
6) समाई माता मंदिर – बाँसवाड़ा में एक स्थान तेज़ी से पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा है, वह है “समाई माता मंदिर” जो कि एक आकर्षक पर्यटन स्थल के साथ-साथ अध्यात्म और प्रकृति का अनूठा स्थल है। समाई माता मंदिर एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। लगभग 500 वर्ष पूर्व तत्कालीन राजा बांसिया भील ने इसी पहाड़ी पर महल का निर्माण किया था, जो अब जर्जर हो चुका है। समाई माता मंदिर उन्हीं बांसिया भील की पत्नी समाई देवी के नाम पर रखा गया है। मंदिर में सकारात्मक ऊर्जा की शक्ति को आसानी से अनुभव कर सकते हैं। मंदिर के ठीक सामने वॉच टावरों से बाँसवाड़ा शहर के विस्तार का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।
7) अरथूना – अरथूना, बाँसवाड़ा जिले का एक प्राचीन क़स्बा है। यहाँ पुरातत्व विभाग ने खुदाई करवाई तो यहाँ सैकड़ों की संख्या में शैव, जैन और वैष्णव मंदिरों की मूर्तियाँ प्राप्त हुईं। इन मूर्तियों की स्थापत्य कला अनूठी है जो कि आबू के मंदिरों की कला से मिलती जुलती है
8) जुआ वॉटर फॉल – बाँसवाड़ा से लगभग 32 किमी दूर रतलाम मार्ग पर स्थित यह झरना बहुत सुंदर है। मानसून में इसकी ख़ूबसूरती और भी अधिक बढ़ जाती है। यह वॉटर फॉल बाँसवाड़ा की असली सुंदरता का वर्णन करने में अहम् भूमिका अदा करता है। ऐसे ही न जाने कितने सुंदर झरनों से भरा पड़ा है “100 द्वीपों का शहर बाँसवाड़ा”। यहाँ के झरनों के बारे में लोगों में अभी तक कम जानकारी है। जिसके कारण सुंदर झरनों को देखने से लोग वंचित रह जाते हैं। जब कि यहाँ पर प्राकृतिक ख़ूबसूरती और नैसर्गिक सौंदर्य को समेटे हुए अनेक झरनें हैं।
9) डायलाब झील – डायलाब झील अपने शानदार शांतिमय वातावरण के लिए प्रसिद्ध है। यह एक ऐसा स्थान है जहाँ आपको झील, कई सुंदर पक्षियों के कलरव के साथ शांति का अनुभव होगा।
10) उपाध्याय पार्क – शहर के मध्य में स्थित यह पार्क बाँसवाड़ा का सबसे सुंदर पार्क कहा जाता है। यह एक बहुत पुराना पार्क जिसे हाल ही में पुनर्निर्मित किया गया है और अब यह बेहद खूबसूरत पार्क बन गया है।
11) आनन्द सागर झील – आनन्द सागर झील बाँसवाड़ा के पूर्वी ओर स्थित एक कृत्रिम झील है। इस झील का निर्माण महरावल जगमाल सिंह की पत्नी लच्छी बाई ने करवाया था। यहाँ पर राज्य के भूतपूर्व शासकों की छतरियाँ / स्मारक बने हुए हैं। यहाँ पर कल्प वृक्ष भी है जिसके बारे में मान्यता है कि यह पेड़ श्रद्धा से माँगने पर हर इच्छा पूरी करता है।
12) हाटकेश्वर महादेव – हाटकेश्वर महादेव मंदिर बाँसवाड़ा का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यह मंदिर साग रोड पर स्थित है। यहाँ भगवान शिव का बहुत सुंदर प्राचीन मंदिर है। यहाँ उन लोगों को भी आना चाहिए जिनको मंदिरों में रुचि नहीं है, क्योंकि यहाँ पर आपको सरवानिया डैम भी देखने को मिलता है। यहाँ चारों ओर हरियाली फैली हुई है।
13) भीम कुण्ड – भीम कुण्ड एक खूबसूरत स्थल है जो कि जिला मुख्यालय से लगभग 20 किमी दूरी पर स्थित है। जनश्रुति के अनुसार अपने वनवास काल में पांडव इस स्थान पर रहते थे। यहाँपर द्रौपदी कुण्ड है, जिसमें से गर्म पानी निकलता है।
14) आनन्देश्वर जैन मंदिर – आनन्देश्वर पार्श्व नाथ जैन मंदिर बाँसवाड़ा से 40 किमी की दूरी पर स्थित है। मंदिर का मुख्य आकर्षण जैन तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति है, जो कि काले पत्थर से निर्मित सात फनों वाले शेषनाग के साथ बनी हुई है।
15) घोटिया अम्बा – घोटिया अम्बा, बाँसवाड़ा से लगभग 35 किमी दूर खूबसूरत पहाड़ियों की गोद में स्थित है। इस स्थल को महाभारत काल के दौरान पांडवों के छुपने का स्थान माना जाता है। यहाँ के स्थानीय लोगों को विश्वास है कि आम का पेड़ पांडवों द्वारा लगाया था, जिसे घोटिया अम्बा का नाम दिया गया।
16) छींच ब्रह्मा मंदिर – छींच बाँसवाड़ा जिले में बागीदौरा के पास स्थित एक गाँव है। गाँव में ब्रह्मा जी का मंदिर बना हुआ है जो कि 12 वीं शताब्दी का बताया जाता है।
17) कागदी पिकअप – बाँसवाड़ा के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक कागदी पिकअप को अनदेखा करना सम्भव नहीं है। यह स्थान बड़ा ही मनोरम और शांत है। यहाँ प्रातः क़ालीन सैर करें या पार्क में ध्यान योग आदि करें, चाहें तो नौकायन करें या हरियाली से आच्छादित पहाड़ों और सुंदर झील की फ़ोटोग्राफ़ी करें। यह जगह अपने आप में सम्पूर्ण पर्यटन स्थल है।
18) साईं मंदिर – साईं मंदिर कागदी पिकअप के सामने की ओर स्थित है। यह मंदिर बाँसवाड़ा शहर का एक प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है।
19) काडेलिया वॉटर फॉल – काडेलिया वॉटर फॉल बाँसवाड़ा शहर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। यह एक बहुत सुंदर बरसाती झरना है।
20) महाराणा प्रताप सेतु – बाँसवाड़ा शहर से मध्य प्रदेश के रतलाम को जोड़ने वाले मार्ग पर 15 किमी दूर माही नदी पर 1.27 किमी लंबा महाराणा प्रताप सेतु बना हुआ है। वर्तमान में इसे एशिया का पॉंचवा सबसे बड़ा पुल माना जाता है। इस पुल का निर्माण गेमन इंडिया लिमिटेड द्वारा किया गया था इसीलिए इसे गेमन पुल भी कहा जाने लगा।
21) कर्क रेखा– कर्क रेखा महाराणा प्रताप सेतु के बाँसवाड़ा छोर पर स्थित है। विशेष बात यह है कि कर्क रेखा माही नदी को दो बार क्रॉस करती है। यह एक मात्र नदी है जिसे यह गौरव प्राप्त है। यहाँ आकर कर्क रेखा पर खड़े होने की अनुभूति करना भी बहुत गर्व की बात है।
22) माही बांध – माही बांध राजस्थान का सबसे लंबा और दूसरा सबसे बड़ा बांध है। इसका निर्माण पन बिजली उत्पादन, सिंचाई व पेयजल आपूर्ति के उद्देश्य से माही नदी पर किया गया था। यह बांध प्रकृति से प्रेम करने वालों के लिए एक शानदार पर्यटन स्थल के रूप में उभर कर सामने आया है, जहाँ हरियाली से भरे पूरे माहौल में घण्टों अथाह जलराशि को निहार सकते हैं।
23) चाचा कोटा – चाचा कोटा की अद्भुत ख़ूबसूरती का बखान करने के लिए हमारे पास शब्द नहीं है। यहाँ तो जाकर ही जाना जा सकता है। इसलिए जैसे हमने यात्रा की वैसा ही उद्धृत करने का प्रयास किया है।
100 द्वीपों के शहर बाँसवाड़ा ज़िले की इस अद्भुत जगह “चाचा कोटा” की हमारी यात्रा के बारे में –
“चाचा कोटा” बाँसवाड़ा शहर से लगभग 15 किमी दूर है। कुछ किलोमीटर के बाद हमें रास्ते में कुछ अद्भुत प्राकृतिक दृश्य दिखाई देने लगे। हम सोच रहे थे कि राजस्थान के रेगिस्तानी राज्य में इस तरह की हरी-भरी प्राकृतिक सुंदरता कैसे हो सकती है, और अगर ऐसा है तो अब तक यह सभी यात्रा प्रेमियों से कैसे छिपा है ! मानसून का समय था इसलिए चारों ओर हम हरे भरे पहाड़ों को देख रहे थे और कुछ खूबसूरत रंग बिरंगे फूल खिले थे। साथ ही एक ओर माही नदी और उसी नदी के कुछ खूबसूरत द्वीपों को देख पा रहे थे और तब तक हमें विश्वास हो गया था कि मंज़िल ज़बरदस्त होगी। अंत उस मुक़ाम पर पहुँचे जहाँ “चाचा कोटा” 0 Km लिखा हुआ था। हम वास्तव में यह देखकर चकित हो रहे थे कि रिसॉर्ट्स, होटल और यहाँ तक कि सामान्य घरों जैसा भी यहाँ कुछ नहीं है। हम केवल कच्ची झोपड़ियों और कुछ किसानों को खेती करते और बच्चों को खेलते हुए देख रहे थे। यह हमारे लिए चौंकाने वाला था कि इस तरह की छुपी हुई सुंदरता जहाँ न जाने कितने सारे पर्यटक लाइन में लग सकते हैं। यहाँ कोई विकास नहीं हुआ और जब हम चाचा कोटा पहुँचे तो वहाँ दो चार पर्यटक ही थे वो भी स्थानीय लोग ! यह वास्तव में दुखद है और हम आशा करते हैं कि शीघ्र ही अधिक से अधिक लोगों को इसके बारे में पता चलेगा और विकास के साथ स्थानीय लोगों की वित्तीय स्थिति में भी सुधार होगा।
फिर हम थोड़ा ऊपर चले गये और 20-30 कदमों के बाद हम इस पहाड़ी की चोटी पर पहुँचे जहाँ से हमें इस अद्भुत जगह की नैसर्गिक सौंदर्यता का सम्पूर्ण नजारा देखने को मिला और फिर मानो या न मानो हम चारों ओर देखने के बाद आश्चर्य चकित रह गये। ऐसे कोई शब्द नहीं हैं जिनसे हम इस जगह की सुंदरता की व्याख्या कर सकें। नदी के किनारे तेज और ताजी हवा, गोल गोल आकार की हरी-भरी पहाड़ियाँ, छोटे छोटे द्वीप, नदी में तैरती खूबसूरत नावें, मनमोहक शांति भरा वातावरण और सुकून देने वाली पक्षियों की आवाज़ें – ये सब आंतरिक वास्तविक ख़ुशी दे रहे थे, जिसकी हर कोई तलाश करता है। हम सभी को यही सुझाव देंगे कि यदि आप पर्यटकों की भीड़ के बिना अनछुए प्राकृतिक सौन्दर्य की खोज में हैं तो एक बार बाँसवाड़ा अवश्य जाइये। खासकर मानसून के मौसम में जब इस जगह की सुंदरता कई गुना बढ़ जाती है।
बाँसवाड़ा कब जायें – बाँसवाड़ा एक ऐसी जगह है जहाँ वर्ष भर में कभी भी जाया जा सकता है, लेकिन अगर आप चारों ओर हरी-भरी हरियाली और कई बेहद खूबसूरत मनोरम दृश्यों को देखना चाहते हैं तो आपको मानसून में या मानसून के बाद सर्दियों के मौसम में जाना चाहिये।
बाँसवाड़ा कैसे पहुँचें –
वायुमार्ग द्वारा : बाँसवाड़ा से निकटतम हवाई अड्डा महाराणा प्रताप, उदयपुर में 156 किमी दूर है।
सड़क मार्ग द्वारा : बाँसवाड़ा राष्ट्रीय राजमार्गों और राज्य राजमार्गों द्वारा जयपुर, उदयपुर, रतलाम, इंदौर और अहमदाबाद आदि शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। रतलाम और उदयपुर से बाँसवाड़ा के लिए नियमित बसें चलती हैं।
रेल मार्ग द्वारा : मध्य प्रदेश का रतलाम जंक्शन और राजस्थान का उदयपुर सिटी, निकटतम रेलवे स्टेशन है। दिल्ली, जयपुर, इंदौर, अहमदाबाद और कोलकाता आदि प्रमुख शहरों से रतलाम और उदयपुर के लिए अच्छी रेल कनेक्टिविटी है।