श्री रामचरित मानस

एक अनमोल ग्रंथ

“हम करते तो हैं बात ब्रह्म को देखने की,
भगवान को देखने की,
पर नहीं देखा है कभी ब्रह्म मुहूर्त।’’

पं. शशिशेखर महाराज
मऊरानीपूर, झांसी

भगवान श्री सीताराम जी के चरित्र जिस ग्रंथ में लिखे गए हैं, ऐसी श्री रामचरित मानस देखिये। श्री रामचरित मानस तुलसीदास जी की एक अद्भुत कृति है जो भारतवर्ष में सनातन पद्धति को पालन करने वाले हर घर में वह मिलेगी। यदि यह ग्रन्थ इतना महान है जो देश में लोगों के घर-घर में और हर दिलों में वास करता है तो उस ग्रंथ में कुछ तो विशेषता अवश्य होगी। कुछ लोग कहते हैं -- "क्या है ये ! रामचरित मानस में कुछ भी तो नहीं"। पर, जब इतने लोग पढ़ रहे हैं, याद कर रहे हैं और गा रहे हैं, तब कुछ तो विशेषता होगी इस ग्रन्थ की।

सुबह देर तक सोना आजकल की दिनचर्या हो गयी है। लोग सुबह 9 बजे तक सोते हैं, रात 1 बजे तक जागते हैं और मोबाइल में लगे रहते हैं। यह कोई दिनचर्या है ? यहीं पर ग्रथों के पठन-पाठन की आवश्यकता होती है। न सिर्फ श्रीरामचरित मानस ही अपितु जितने भी धर्म-ग्रंथ हैं, सभी प्रातः काल उठने की शिक्षा देते हैं। वेदों और उपनिषदों में भी कहा गया है -- "उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत"। 'उठो, जागो और योग्य, श्रेष्ठ जनों के पास जाकर ज्ञान प्राप्त करो ! पर, हम हैं कि सोते रहते हैं। ब्रह्म मुहूर्त का समय प्रातः 4 बजे से 6 बजे का है। एक संत कहते थे कि "जिसने कभी ब्रह्म मुहूर्त नहीं देखा, वो ब्रह्म को क्या देखेगा"। हम करते तो हैं बात ब्रह्म को देखने की, भगवान को देखने की, पर नहीं देखा है कभी ब्रह्म मुहूर्त। जिस तरह हमारे संतों महापुरुषों ने कहा कि हम अपने जीवन के तीन पन - बालपन, यौवन और किशोरावस्था में भले ही सोते रहें, पर कम से कम जीवन के चौथेपन "वृद्धावस्था" में तो जाग जाएं। पर, एक बात तो अवश्य है - जो दिन के चौथे पहर में जाग जाते हैं अर्थात सबेरे का समय वो जीवन के चौथेपन में भी जाग जाते हैं। पूरा जीवन चाहे सो लो लेकिन चौथापन जागने के लिए है। उसमें हरिनाम स्मरण करो, उसमें सारे धार्मिक कार्य करो। इसी प्रकार से जिस तरह से पूरा जीवन मत सो, कम से कम चौथेपन में जाग जाओ, उसी तरह पूरी रात मत सो, कम से कम चौथे पहर में तो जाग ही जाओ। हमें सबेरे-सबेरे अवश्य जागना चाहिए और उसके लिए जल्दी सोना पड़ेगा।

मुहूर्त का समय प्रातः 4 बजे से 6 बजे का है। एक संत कहते थे कि जिसने कभी ब्रह्म मुहूर्त नहीं देखा, वो ब्रह्म को क्या देखेगा। हम करते तो हैं बात ब्रह्म को देखने की, भगवान को देखने की, पर नहीं देखा है कभी ब्रह्म मुहूर्त। जिस तरह हमारे संतों महापुरुषों ने कहा कि हम अपने जीवन के तीन पन- बालपन, यौवन और किशोरावस्था में भले ही सोते रहें, पर कम से कम जीवन के चौथेपन वृद्धावस्था में तो जाग जाएं। पर, एक बात तो अवश्य है - जो दिन के चौथे पहर में जाग जाते हैं अर्थात सबेरे का समय वो जीवन के चौथेपन में भी जाग जाते हैं। पूरा जीवन चाहे सो लो लेकिन चौथापन जागने के लिए है। उसमें हरिनाम स्मरण करो, उसमें सारे धार्मिक कार्य करो। इसी प्रकार से जिस तरह से पूरा जीवन मत सो, कम से कम चौथेपन में जाग जाओ, उसी तरह पूरी रात मत सो, कम से कम चौथे पहर में तो जाग ही जाओ। हमें सबेरे-सबेरे अवश्य जागना चाहिए और उसके लिए जल्दी सोना पड़ेगा।

श्री रामजी की दिनचर्या क्या है ? जैसे ही गुरुदेव सोते हैं तो राम जी गुरुदेव के चरण दबाते हैं और जब गुरुदेव ने कहा "बार बार कह सोवउ ताता" तब राम जी सोते हैं। और सो कर जगे कितने बजे -- "गुरु तें पहिले जगतपति, जागे राम सुजान" अर्थात श्री रामजी गुरुदेव के बाद सोते हैं और गुरुदेव के जागने से पहले जाग जाते हैं। ये है रामजी की नित्यक्रिया और रामजी की दिनचर्या। ये सच है कि यदि ऐसी दिनचर्चा हमारे जीवन में भी आ जाए तो हमें भगवान से, मिलने से कोई नहीं रोक सकता। प्रातः जागना जितना महत्वपूर्ण है, उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है कि जाग कर करें क्या ? पर सबेरे उठते ही चाय की याद आती है। अरे कहीं तो ये कहना पड़ता है कि - "उठो चाय बन गई है"। मानो चाय के लिये ही उठ रहे हों। श्री रामजी प्रातः जागकर अखबार पढ़ते हैं या चाय पीते हैं। सबसे पहले वे माता-पिता गुरुदेव को प्रणाम करते हैं, स्नान करते हैं, वंदन करते हैं। ऐसी दिनचर्या अपनाएं और ये बातें हमें तब तक पता नहीं चलेगी जब तक हम श्री रामचरित मानस का पठन-पाठन नहीं करेंगे। इसलिए रामचरित मानस को पढ़ना आवश्यक ही नहीं, अत्यावश्यक है।

श्री रामचरित मानस की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि यह हमें जीना सिखाती है। दो ही ग्रंथ हैं- पहला श्री रामचरित मानस और दूसरा श्रीमद्भगवद्गीता जो सनातनियों के दिलों में वास करते हैं। जहां श्री राम चरित मानस हमें जीना सिखाती है वहीं श्रीमद्भगवद्गीता हमें मरना सिखाती है। राजा परीक्षित जब मृत्यु सैया पर थे तब उनके लिए भागवत कही गयी थी। श्री रामचरित मानस के अनुसार हम जैसा जीवन जी रहे हैं, क्या सचमुच उसे जीवन कहेंगे ? आज हम सभी लोग भोग वासनाओं में लिप्त हैं- तो क्या यही जीवन है ?

श्री मैथिली शरण गुप्त जी की प्रसिद्ध पंक्तियाँ --"कुछ काम करो, कुछ काम करो / जग में रह कर कुछ नाम करो। / यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो / समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो। / कुछ तो उपयुक्त करो तन को / नर हो, न निराश करो मन को।।" बड़ी ही दार्शनिक हैं। हमें कर्म करते रहना चाहिए। श्रीमद्भगवद्गीता भी यही सिखाती है -- "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन / मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोस्त्वकर्मणि॥" यही शिक्षा श्री रामचरित मानस हमें बड़ी ही सरल भाषा में देता है और यह भी सिखाता है कि जीवन कैसे जीना चाहिए, साथ ही धर्म का भी ज्ञान देता है। जैसे श्री राम जी- "प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा" सुबह उठकर सर्वप्रथम माता-पिता व गुरुदेव के चरणों में प्रणाम करते हैं, आप लोगों में से कितने लोग सबेरे उठ कर माता-पिता, गुरुदेव के चरणों में प्रणाम करते हैं ? शायद ही कुछ लोग होंगे। तुलसीदास जी यह नहीं कहते कि तुम भी माता-पिता के गुरुदेव के चरणों में प्रणाम करो अपितु वे लिखकर यह संदेश देते हैं। हमें माता पिता गुरुदेव के चरणों में प्रणाम करना चाहिए। तुलसी दास जी लिखते हैं- "प्रात नहाइ चले रघुराई” तो क्या ? उन्होंने कहा कि सबेरे से तुम नहाओ, वरन वो यह लिखकर संदेश देते हैं कि हमें सबेरे उठकर सर्वप्रथम नहाना चाहिए। तुलसीदास जी ने यह बिलकुल भी नहीं कहा कि -- प्रात खाई चले रघुराई। अर्थात यह ग्रंथ बड़ा ही अनुपम है, दिव्यतम है, बस आवश्यकता यही है कि इसका पठन-पाठन और सुचारू रूप से हो।

मैं आप सभी से यह विनम्र निवेदन करता हूँ कि हम सभी लोग ज्यादा नहीं तो दिन में सुबह या शाम किसी भी समय अपनी सुविधानुसार कम से कम एक दोहा श्री रामचरित मानस का अवश्य पाठ करें। उससे हमारी मानसिक वृद्धि तो होगी ही साथ ही साथ हमारी आध्यात्मिक उन्नति भी होगी।