शर्त

शालिनी त्रिपाठी मुंबई

शुभम धीरे से उठा, देखा पापा तो खर्राटे लेकर सो रहे हैं, दबे पांव उनका फोन लेकर बालकनी में आ गया।

नंबर डायल करके फोन कान में लगा लिया,”अरे उठा जल्दी, मम्मी उठ जाएगी तब …..” तब तक फोन उठ गया था।

“हेलो, शिवम्”

“हां बोल”,इतनी रात को क्यों फोन किया, मम्मी को पता चलेगा तो देख फिर…..”

“अरे तेरे को एक बात बतानी थी, तू स्कूल में मिला ही नहीं”

“मैं आज स्कूल आया ही नहीं,सर्दी थी मुझे, तो मम्मी ने नहीं भेजा”

“तो मम्मी ने तेरे लिए सूप बनाया होगा, है न”

शुभम की उदास आवाज़ सुनकर चाह कर भी शिवम् उसे चिढ़ा न सका और झूठ बोल दिया, “नहीं कोई सूप नहीं बनाया, सिर्फ गरम पानी देती रही पीने को”

“मैं इस बार मम्मी से मिलने आऊंगा तो उनसे सूप बनाने को बोलूंगा, पहले कितना मज़ा आता था न जब मम्मी सूप बनाती थी”

“हां और पापा जब हमारे साथ क्रिकेट खेलते थे तब भी तो बहुत मज़ा आता था न “शिवम् दुःखी सी आवाज़ में बोला। थोड़ी देर फोन के दोनों तरफ़ शांति छा गई फिर शुभम ही बोला, “अरे मैं तो तेरे को बताना ही भूल गया कि वो जो अपने क्लास में अंकिता थी न उसने कल मेरा झूठा नाम लगा कर टीचर से शिकायत कर दी और टीचर ने बोला पेरेंट्स को लेकर आना।

पापा को बोलूंगा तो वो मारेंगे, तू मम्मी को बोल न, प्लीज”

“क्या किया तूने, उसका तो पता है न एक नंबर की झगड़ालू है वो अंकिता”

“हां न, और टीचर भी सिर्फ गर्ल्स की बात मानती है, जैसे सारी लड़कियां बड़ी सत्यवादी हरिश्चंद्र हैं, अब तू ही मदद कर सकता है भाई मेरे,”

“ओहो,’भाई मेरे’ याद है पिछले साल मैंने भी तुझसे कुछ मांगा था”

“क्या”

“याद कर याद कर”

“अच्छा मेरी बैट, मैं इस बार लेकर आऊंगा, अब ठीक”

“ठीक है, देखता हूं मैं, अपना बर्थडे भी तो आने वाला है, इस बार क्या हम अलग अलग बर्थ डे मनाएंगे” “नहीं” अलग अलग कभी नहीं मनाया तो इस बार क्यों अलग अलग”

“क्योंकि कि अब मम्मी पापा अलग हो गए और हम भी”

“हम भी तो कितना झगड़ा करते थे पर हमने तो अपने झगड़े में मम्मी पापा को अलग नहीं किया तो इन लोगों ने अपने झगड़े में हमें अलग क्यों कर दिया”

“सही कहा तूने, झगड़ा इन दोनों का और सजा हमारी, मुझे तेरी और पापा की बहुत

याद आती है” इतना कहते कहते शिवम् रोने लगा। शिवम् को रोता सुनकर शुभम की आँखें भी भर आई, “सुन, कल हम दोनों स्कूल में मिलते हैं और कहीं भाग जाते हैं”

“पागल हो गया है तू, मम्मी पापा कितने परेशान होंगे”

“हम भी परेशान हैं, पर उनको अपना गुस्सा ही दिखता है, तू मेरी बात मान, कल बैग में दो जोड़ी कपड़े डाल कर ला, बाकी मैं देखता हूं,”

” कहां जाएंगे”, शिवम् ने पूछा तो शुभम ने उसे पूरा प्लान समझा दिया और अगले दिन वो दोनों स्कूल से गायब हो गए।

सुधीर और निशा दोनों को ढूंढ ढूंढ कर परेशान हो गए, सब रिश्तेदारों से पूछ लिया पर पता ही न चला। निशा का रो रो कर बुरा हाल था और सुधीर सब भूल कर उसे समझा और संभाल रहा था। दोनो अपनी पूरी कड़वाहट भूल चुके थे, बस एक ही धुन थी कि हमारे बच्चे मिल जाएं।

दो दिन बाद शिवम् का फोन सुधीर को आया, “पापा आप दोनो के झगड़े ने हमें अलग कर दिया अब हम इसी शर्त पर आप के पास आएंगे जब दोनों साथ रहोगे”

सुधीर ने वादा किया कि अब हम साथ रहेंगे तो एक घंटे में दोनों उनकी दूर की मौसी के साथ वापस आ गए।

निशा को उनकी मौसी यानी शुभा ने बताया कि ये पूरा प्लान उन दोनों को एक करने के लिए शुभम ने बनाया था तो निशा ने शुभम को घूर कर देखा तो शुभम ने कहा कि क्या करता मैं आप दोनों तो समझने को तैयार ही नहीं थे।

दो दिन बाद दोनों भाइयों ने साथ में बर्थडे मनाया, आखिर दोनों जुड़वा जो थे।