विश्वास का चमत्कार

उपासना में अपार शक्ति होती है। यदि सच्चे हृदय से पूरी निष्ठा और विश्वास के साथ अपने इष्ट की उपासना की जाए तो असंभव भी संभव हो जाता है। इस विश्वास की प्रमाणिकता तब सिद्ध हुई जब एक स्त्री की उपासना ने उसके पति की शराब छुड़वा दी।

बात सन 2000 की है। दीक्षा पूर्ण होने के उपरांत पूज्य गुरु जी की आज्ञा से ज्योतिषीय परामर्श सेवा अभी आरंभ ही की थी कि एक दिन पड़ोस की भाभी जी एक स्त्री को लेकर मेरे यहां आईं। उसकी आयु यही कोई तीस बत्तीस की रही होगी। सुंदर आकर्षक व्यक्तित्व, गौर वर्ण, बड़ी-बड़ी आंखें पर विषाद से बुझी हुई।

पं राकेश राज मिश्र जिज्ञासु कानपुर

भाभी जी ने उसका परिचय कराते हुए बताया कि ये उनकी मित्र सुष्मिता है, इस समय बहुत परेशान है। परेशानी का आलम यह है कि जीवन से निराश हो चुकी है। इन्हें लगता है कि इन परेशानियों से मुक्ति का एक ही मार्ग बचा है और वह है आत्महत्या। पूछ रही थी कि सल्फास की कितनी खुराक पर्याप्त होगी इनके और इनकी दोनों बेटियों के लिए। इनके जुड़वा बेटियां हैं लगभग 5 वर्ष की। मेरी समझ में नहीं आया कि क्या करूं तो आपके पास लेकर आ गई।

इतनी देर में सुष्मिता की आंखें डबडबा चुकी थीं। मैंने सुष्मिता से कहा कि अपनी परेशानी एक बार मुझे आरंभ से बताओ। चूंकि भाभी जी आई थीं, उनकी आवाज सुनकर हमारी श्रीमती जी भी आ गईं। सुष्मिता ने बताया कि उसने अपने सगे मामा से प्रेम विवाह किया है। वह बचपन से ही उन्हें पसंद करती थी, साथ ही खेले और बड़े हुए। जब शादी का समय आया तो स्पष्ट कह दिया कि शादी करूंगी तो मामा से, अन्यथा कुंवारी रहूंगी। उसकी जिद के सामने घर वालों को झुकना पड़ा।

उसके पति खराद के बहुत अच्छे कारीगर हैं। आईटीआई किया हुआ है। पिछले वर्ष तक फरीदाबाद में नौकरी करते थे। जीवन खुशहाल चल रहा था। उसके सास ससुर कानपुर में रहते हैं। सासू मां पीछे पड़ी थी कि कानपुर आ जाओ तुम लोगों के बिना घर अच्छा नहीं लगता है। सो वे कानपुर आ गए। यहां एक तो उतना वेतन नहीं मिलता है उस पर भी कभी कभार काम के अभाव में घर भी बैठना पड़ता है। पतिदेव की पीने की आदत तो फरीदाबाद में ही पड़ गई थी किंतु कभी सीमा से बाहर नहीं हुए जिससे उसे परेशानी होती।

यहां उनके पीने की आदत बढ़ गई। अब तो डेली की कहानी है। हालत ये हो गई है कि उनका वेतन भी कम पड़ने लगा है। जब पैसे खत्म हो जाते हैं तो उससे मांगते हैं। उसकी सारी जमा पूंजी उनकी शराब की भेंट चढ़ चुकी है। अब नहीं बचे हैं तो मानते नहीं, गाली गलौज करते हैं कहते हैं कैसे भी व्यवस्था करके उन्हें दे। अब
तो हाथ भी उठाने लगे हैं।

सासू मां उनकी इस हालात का सारा दोष उसके ऊपर मढ़कर हर समय ताने मारती रहती हैं। होशियार इतनी हैं कि वह सुनाती तब ही हैं जब उसके पति घर पर नहीं होते हैं। वो आ जाते हैं तो इतना प्यार, इतना दुलार जताती हैं कि जैसे उनकी आत्मा ही बदल गई हो। कभी खीर बना लाती हैं कभी हलुवा। चाय तो बनाने ही नहीं देतीं। बोलती हैं कि तू मेरी वही प्यारी सुष्मिता है बहू बन गई तो क्या प्यार बदल गया।

उनका ये दोहरा व्यवहार बहुत टेंशन देता है। हर समय कोसना और उनके सामने प्यार जताना। पति से उनके दोहरे व्यवहार की शिकायत की तो वे मानने को तैयार ही नहीं। कहते हैं कि इतना तो प्यार करती हैं तुम्हें। तुम्हारा व्यवहार बेशक उनके साथ रूखा रूखा सा रहता है। ऐसा कहकर वे सारा दोष उसके ऊपर ही मढ़ देते हैं। नशे की स्थिति में मां के प्रति उनका प्यार और उमड़ने लगता है।

उसने उन्हें समझाने का प्रयास किया कि कभी दिन में अचानक आकर देखें तो सच्चाई पता चल जाएगी। किंतु ऐसा हो न सका। एक दिन वो आए तो, लेकिन सासू मां को उनकी आहट मिल गई और वह सावधान हो गईं। उस दिन तो उन्होंने उसे बहुत सुनाया और कहा कि फिर कभी मां के विषय में कुछ गलत बोलने का प्रयास किया तो उसका मुंह तोड़ देंगे। उसके बाद से उनका व्यवहार और बदल गया। अब तो हर बात में उन्हें उसका ही दोष दिखता है। सासू मां और उकसाती रहती हैं।

मैंने कहा कि ये बताओ कि तुम्हारी सासू मां तो बदलने से रहीं। इसके अलावा कुछ ऐसा हो सकता है कि तुम्हारे दुख दूर हो सकें। तो वह तुरंत बोली यदि इनकी शराब छूट जाय तो सब ठीक हो जाय। शराब के नशे में ये कोई और हो जाते हैं, वे रहते ही नहीं जो मुझे प्यार करता है, मेरा ख्याल रखता है। जब नहीं पिए होते हैं तो इनका व्यवहार सामान्य रहता है। लेकिन शराब की लत इन्हें सामान्य रहने ही नहीं देती। पीते ही मेरे प्रति शत्रुवत हो जाते हैं।

भाभी जी इस बीच उठ कर जा चुकी थीं। सुष्मिता ने हाथ जोड़कर कहा भाई साहब प्लीज ! इनकी शराब छुड़वा दीजिए, कैसे भी। उसके आग्रह में मुझे ऐसा लगा कि जैसे उसे पूरा विश्वास है कि मैं ऐसा कर सकता हूं। मैंने कहा कि ठीक है देखता हूं कि मैं क्या कर सकता हूं। मन ही मन मैंने अपने इष्ट को याद किया और उनसे प्रार्थना की कि इस स्त्री के विश्वास की रक्षा करना अब उनके ऊपर है। मैंने उससे कहा कि मुझे थोड़ा समय दो। ऐसा करो कि कल सुबह आना नहा धोकर, साथ में कुछ फल और फूल लेते आना।

वो चली गई तो श्रीमती जी ने कहा कि कुछ कीजिए, मुझे इस पर बड़ी दया आ रही है। मैंने कहा कि तुमसे तो कुछ छुपा नहीं है क्या तुम्हें लगता है कि मैं कुछ कर सकता हूं ? तो वो बोलीं कि हां ! आप कर सकते हैं। उनके इस उत्तर ने मुझे बड़ा बल दिया। मैंने सोचा कि क्या किया जाय जो उसका पति शराब छोड़ दे। शाम को जब नियमित पूजा पर बैठा तो यही प्रश्न मस्तिष्क में चलता रहा और पूजा संपन्न होने तक इसका उत्तर मिल गया।

सुबह सुष्मिता आई ढेर सारे फल और फूल लेकर ! उससे कुछ दक्षिणा रखने को कहा तो उसने बड़ी श्रद्धा के साथ वह भी रख दी। मैंने श्रीमती जी से थाली मंगवाई, उसमें सब रख कर उनसे कहा कि यह भीतर मंदिर में जाकर चढ़ा दें। मैंने ज्योतिष के साथ ही उपासना तत्व की भी दीक्षा ली है और उपासना द्वारा अभीष्ट प्राप्ति के प्रयास का यह पहला अवसर था। और इस प्रकार सुष्मिता मेरी पहली यजमान थी।

मैंने उससे पूछा की कुछ पूजा पाठ करती हो तो उसने बताया कि विधिवत तो नहीं किंतु स्नान के उपरांत ठाकुर जी के समक्ष अगरबत्ती अवश्य जलाती हूं और आरती कर लेती हूं। मैंने पूछा कि तुम्हारे मंदिर में कौन-कौन से स्वरूप विद्यमान हैं ? तो उसने बताया कि मां दुर्गा की पूजा मेरे संस्कारों में है इसलिए उनका चित्र है और श्री कृष्ण मेरे इष्ट हैं, उनका चित्र है ! बस यही दो स्वरूप हैं। फिर मैंने पूछा कि घर की दिनचर्या क्या है ? सुबह किस समय होती है ?

उसने बताया कि सबसे पहले वह उठती है लगभग पांच बजे, पूरे घर का झाड़ू पोछा करके स्नानादि से निवृत होकर छः सवा छः बजे तक रसोई में पहुंच जाती है। फिर चाय बनाकर एक-एक करके सभी को देती है तब वे उठते हैं। मैंने कहा कि कल सुबह तीन बजे उठना है! उठ सकोगी उसने तुरंत हां कर दी मैंने कहा ठीक है फिर सफलता निश्चित है।

मैंने उसे मां दुर्गा का एक मंत्र और श्री कृष्ण की स्तुति बताई और उपासना की बारीकियां समझाईं और कहा कि यह सब करते समय तुम्हारे मन में यह पूर्ण विश्वास होना चाहिए कि तुम्हारे ऐसा करने से तुम जो चाह रही हो वह अवश्य होगा। ऐसा तभी संभव है जब तुम्हें इस बात का पूरा विश्वास हो कि मैं जो बता रहा हूं उसका मैं अधिकारी हूं ! तुम्हें अपने करने पर विश्वास हो और साथ ही अपने इष्ट पर विश्वास हो। जितनी श्रद्धा और विश्वास के साथ यह करोगी उतना ही लाभ होगा।

इस बात का विशेष ध्यान रखना है कि तुम्हें इस पूजा के विषय में किसी से कोई चर्चा नहीं करनी है। प्रयास करना है कि तुम्हें पूजा करते हुए कोई देखने ना पाए।
तुम्हें इस बात का भी पूरा ध्यान रखना है कि तुम्हारी पूजा से किसी को कोई असुविधा न हो। सभी को चाय उनके निर्धारित समय पर मिले।

कुछ देर वह यूं ही मौन बैठी रही जैसे मन ही मन रूपरेखा बना रही थी कि कैसे करना है यह सब ! उसके भीतर का द्वंद उसके चेहरे से दिख रहा था। फिर मैंने देखा कि दृढ़ निश्चय के भाव उसके चेहरे पर प्रकट हुए और पूरी दृढ़ता के साथ उसने कहा कि ठीक है भाई साहब ? मैं कल से ही आरंभ करती हूं। जाने से पहले उसने पूरी श्रद्धा के साथ मेरे चरण स्पर्श किए और मेरे भी अंतःकरण से निकला कि जाओ मां भगवती तुम्हारा कल्याण अवश्य करेंगी।

अगले दिन वह आई तो उसके चेहरे पर संतोष युक्त थकान के लक्षण स्पष्ट दिख रहे थे। आते ही बोली कि भाई साहब जैसा आपने बताया था वैसा ही किया और संपन्न हो गया। सुबह जल्दी उठने के चक्कर में रात में सो ही नहीं पाई। ढाई बजे उठ गई यह सोच के कि पता नहीं कितना समय लगे। पूजादि से निवृत होकर फिर घर की सफाई की फिर चाय बनाकर सबको नित्य की भांति दी। कोई जान नहीं पाया।

हां पतिदेव ने अवश्य पूछा कि क्या बात है रात सोई नहीं तो मैंने कोई उत्तर नहीं दिया। उन्होंने भी दोबारा नहीं पूछा। लेकिन कल वे फिर पूछेंगे, उन्हें तो कुछ बताना ही पड़ेगा। मैंने कहा कि पूछने पर झूठ नहीं बताना है सच बता देना कि उनकी शराब छुड़ाने के लिए तुम ठाकुर जी की पूजा कर रही हो। यह बताने की आवश्यकता नहीं कि किसी के कहने पर ऐसा कर रही हो। कह देना कि कोई रास्ता नहीं सूझा तो यह रास्ता अपनाया। ठीक है भाई साहब, ऐसा कहकर वह चली गई।


इसके बाद वह दो-तीन दिन बाद आई। बताया कि बच्चों को स्कूल छोड़ने और लाने के लिए एक रिक्शा लगा रखा है, वह भी साथ ही आती जाती है। आज उसने रिक्शा आधे घंटे पहले बुला लिया था क्योंकि उसे मुझसे मिलना था। उसने बताया कि अगले दिन पतिदेव ने फिर पूछा यह सब क्या चल रहा है तो मैंने कहा कि ठाकुर जी की पूजा कर रही हूं दिन में व्यवधान रहते हैं कंसंट्रेशन नहीं बन पाती है इसलिए सुबह करती हूं शांति के साथ।
मेरे उत्तर से वे संतुष्ट होते तो नहीं दिखे किंतु कुछ और बोले नहीं। उसी दिन शाम को उन्हें खाना देने के बाद बैठे-बैठे मुझे नींद आने लगी तो उन्होंने कहा कि तुम्हें बहुत कस के नींद लगी है जाओ जाकर सो जाओ। मैं तुरंत जाकर सो गई। अगले दिन सुबह उन्होंने पूछा कि आजकल कितने बजे उठना हो रहा है तो बता दिया कि सुबह ढाई तीन बजे ! तो वो बोले कि इतनी सुबह ? रात में सोते सोते ग्यारह तो बज ही जाते हैं। दिन में कुछ समय मिल पाता है आराम करने का ? तो मैंने अपनी पूरी दिनचर्या बता दी जिसमें सोना तो दूर, कमर सीधी करने की भी कोई गुंजाइश नहीं रहती है।
हूं! बोल कर वह चुप तो हो गए लेकिन साफ दिख रहा था कि मेरी ओर से वह चिंतित हैं। कल सुबह तो वह उठे और बड़ी आत्मीयता के साथ पूछे कि हो गई पूजा ! मैंने कहा कि हां जी हो गई। फिर उन्होंने उसी आत्मीयता से पूछा कि इतनी तपस्या का प्रयोजन ? मैंने बिना देर किए बता दिया कि आपकी शराब छुड़वानी है।
इस पर उन्होंने उपहास की मुद्रा में कहा कि तुम्हें लगता है कि तुम्हारे ऐसा करने से मेरी शराब छूट जाएगी ? तो मैं कह दिया कि ठाकुर जी की कृपा से ही मैंने आपको पाया है। उनकी कृपा होगी तो आपकी शराब भी छूट जाएगी।

सुष्मिता के मुंह से यह सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा। मैंने कहा बहुत अच्छी बात है ! बहुत सटीक उत्तर दिया तुमने ! तुम्हारा विश्वास अवश्य रंग लायेगा, लगी रहो। अगली बार जब वो आई तो उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव दिखे। उसने बताया कि पिछले दो-तीन दिन से इन्होंने नहीं पी।

उसने बताया कि मेरी ओर से यह बहुत चिंतित हैं। एक दिन कहने लगे कि मैं इतना बुरा इंसान हूं कि मेरे कारण तुम इतना कष्ट उठा रही हो, घर का सारा काम करती हो, बच्चों का होमवर्क करवाती हो, मेरी सेवा भी करती हो, ढंग से सो भी नहीं पाती हो। मुझे तुम्हारी बड़ी चिंता रहती है।

इतना बताते बताते उसकी आंखें डबडबा आईं, कहने लगी कि अरसे बाद उनके व्यवहार में मेरे प्रति प्रेम दिखा तो बहुत अच्छा लगा। मुझे उस इंसान के दर्शन हो गए जो मुझे प्यार करता है। मुझे लग रहा है कि मेरा पति मुझे वापस मिल गया। आपकी कृपा रही तो यह शराब भी छोड़ देंगे।



मैंने कहा की कृपा ठाकुर जी की है और फल तुम्हारी तपस्या का। इस तपस्या को जारी रखना जब तक कि आश्वस्त न हो जाओ कि अब वे नहीं पियेंगे। वो बोली कि अब तो इसका अभ्यास हो गया है और इसे छोड़ने का मन भी नहीं करेगा। मैंने कहा ये तो और भी अच्छी बात है।

इसके दो-तीन दिन बाद वह आई, हाथ में मिठाई का एक डब्बा लेकर ! बड़ी श्रद्धा के साथ उसने मेरे पैर छुए और बोली कि भाई साहब इन्होंने शराब छोड़ दी। मैंने बधाई देते हुए कहा कि देख लो ! शराबी का कोई भरोसा नहीं होता। तो वो बोली कि इनका भरोसा है, इन्होंने बच्चियों के सर पर हाथ रखकर कसम खाई है कि अब नहीं पियेंगे। बच्चियों को ये बहुत प्यार करते हैं, ऐसे झूठी कसम नहीं खा सकते हैं।

मैंने कहा कि बहुत अच्छी बात है ईश्वर तुम्हारा विश्वास कायम रखें। उसने कहा कि भाई साहब ये आपसे मिलना चाहते हैं। मैंने कहा कि जब चाहे मिला दो। कैसे मिलेंगे ये बता दो। तो कहने लगी कि साथ ही आए हैं और बाहर खड़े हैं। मैंने कहा कि बाहर क्यों खड़े हैं, अंदर क्यों नहीं लाई ? तुरंत बुलाओ। बोली कि मैं तो कह रही थी साथ आने को, वो ही नहीं आए, कहने लगे कि पहले पूछ लो।

उसके पति आए तो नमस्कार तो किया लेकिन लगा कि जैसे की मन ही मन मुझे तौल रहे हैं। बड़े गौर से मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और सामने बैठ गए। मैंने ही बात आरंभ करते हुए कहा कि आप बहुत भाग्यशाली हो जो ऐसी सुंदर सुशील और संस्कारी पत्नी मिली। पूर्व जन्मों में बहुत पुण्य किए होंगे आपने, जिसके प्रसाद स्वरूप ये आपको मिली है। ईश्वर के इस प्रसाद का कभी निरादर न करना और इस बात का ध्यान रखना कि आपके द्वारा ऐसा कुछ ना हो जो इसके दुख का कारण बने। वो बोले कुछ नहीं बस दोनों हाथ जोड़ लिए।

कुछ देर मौन रहने के बाद वे बोले कि सुष्मिता आपकी बहुत तारीफ करती है इस कारण आपसे मिलने की बड़ी इच्छा थी। सामने आने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी इस वजह से इससे कहा कि पहले पूछ लो, यदि मना कर देंगे तो नहीं मिलूंगा। मैंने पूछा कि अब तो कोई संशय नहीं है तो बोले - नहीं ! आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा आप बिल्कुल वैसे ही हैं जैसे सुष्मिता ने बताया था। यह हमारा सौभाग्य है कि इतने कठिन समय में आप मिल गए और आपके मार्गदर्शन से मेरे जैसा भटका हुआ इंसान सही मार्ग पर वापस आ गया।

मैंने उन्हें समझाया कि जो भाग्य के बुलंद होते हैं उनके कर्म भी अच्छे होते हैं और जिनके कर्म अच्छे होते हैं उन्हें भटकने की स्थिति में कोई न कोई सही राह दिखाने वाला मिल ही जाता है। आपको भटकाव से बाहर निकलना था तो आप निकले। मैं न मिलता तो कोई और मिल जाता सही राह दिखाने वाला।

वो दोनों चले गए ! जाते समय दोनों पति-पत्नी ने कृतज्ञतापूर्वक मेरे पैर छुए और प्रत्युत्तर में मैंने भी उनके सुखद भविष्य के लिए शुभकामना दी। इस घटना के लगभग दो महीने बाद एक दिन सुष्मिता फिर आई और कहने लगी कि भाई साहब एक कृपा और कर दीजिए ! मैंने पूछा कैसी कृपा ? तो बोली कि फरीदाबाद में हम बहुत सुखी थे, कुछ ऐसा कीजिए कि हम फिर से वहीं चले जाएं।

मैंने कहा अब तो ठाकुर जी से तुम्हारा सीधा संबंध स्थापित हो चुका है उन्हीं से कहो ! अब मेरे जैसे मध्यस्थ की कहां आवश्यकता है ! उसने पूछा, सच में भाई साहब ? मैंने कहा कर के देख लो। वो खुशी खुशी चली गई।

दस पंद्रह दिन बाद वो फिर आई ये बताने कि फरीदाबाद में जहां ये काम करते थे वहीं से बुलावा आया है और परसों हम लोग जा रहे हैं। मैंने पुनः बधाई दी उसे। उसने मेरा फोन नंबर लिया और कहने लगी कि वहां पहुंचकर मुझसे बात करेगी और जब भी कानपुर आना होगा मुझे अवश्य मिलेगी। ऐसा कहकर वह चली गई। किंतु न तो उसका फोन आया और न ही उसके बाद वो कभी मिली।