पं. शशिशेखर महाराज
मऊरानीपुर, झाँसी
आज का दौर विज्ञान का दौर है, यह सर्वविदित है। पर आज के समय में व्यक्ति का विज्ञान पर प्रबल विश्वास है और होना भी चाहिए। हमारे ग्रंथों में कहा गया है – ‘विज्ञानन विज्ञायते’ विज्ञान से ही सब जाना जाता है लेकिन जानने की विधा भी दो प्रकार की होती है। एक जानना तो वह है जिसमें हम भौतिकी चीजों को जान सकते हैं और दूसरा वह जिसमें हम आध्यात्मिक ज्ञान को जान पाते हैं। विज्ञान से हम भौतिक चीजों को तो जान सकते हैं, पर आध्यात्मिक चीजों को नहीं जान सकते और यही बात है जो अध्यात्म को विज्ञान से विभक्त करती है तथा विशिष्ट बनाती है। हम देखते हैं कि विज्ञान की पूरी पढ़ाई ही भौतिकवाद को लेकर है तथा जिसके कारण आज भले ही विज्ञान का जमाना है, सभी लोग भले ही विज्ञान पर अटूट विश्वास रखते हैं पर अशांत भी बहुत हैं। सभी के जीवन में परेशानियां भी बहुत हैं। किसी के जीवन में भी शांति नहीं है, जिसका कारण शायद यही है कि हम सभी लोग भौतिक सुख सुविधाओं में इतना लिप्त हो गए हैं और सब कुछ जान लेने का भ्रम पाल लिया है। विज्ञान से हम भौतिक चीजों को तो जान सकते हैं लेकिन ‘जीवन क्यों है, जीवन का उद्देश्य क्या है’ ऐसे जटिल सवालों के जवाब जानने में असमर्थ हैं। श्री रामचरित मानस में तुलसी दास जी कहते हैं कि – ‘धर्म राजनय ब्रह्म विचारु, यहाँ यथामति मोर प्रचारू’। धर्म क्या है ?
धर्म से यहाँ अर्थ है, मोरल और इम्मोरल का। मोरालिटी का क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए। धर्म, राजनय, राजनीति, ब्रह्मविचार इन सब विषयों को विज्ञान नहीं जान सकता है और आज के समय में कोई इन विषयों को जानने का प्रयास भी नहीं कर रहा है, इसीलिए शायद दुखी भी है। भौतिक चीजों का अध्ययन अच्छा तो है पर यदि भौतिक चीजों के अध्ययन के साथ हमारा अध्ययन आध्यात्मिक चीजों का भी हो जाए तो हमारा ज्ञान समृद्ध हो जायेगा, और समृद्ध के साथ शांत भी बहुत हो जाएंगे। विज्ञान समृद्धि तो दिला सकता है परन्तु विज्ञान शांति नहीं दिला सकता। शांति दिलाने का सामर्थ्य केवल अध्यात्म में ही है तथा यह वही अध्यात्म है जिसमें अनेक दार्शनिक हुए। अध्यात्म की ही एक शाखा है ‘दर्शन शास्त्र’ जो अध्यात्म के महत्व को प्रसारित करता है। तात्पर्य यह है भौतिक चीजों में लिप्त रहते हम भले ही सुख प्राप्त कर सकते हों लेकिन शांति प्राप्त नहीं कर सकते और जब तक शांति नहीं मिलती है, जीवन में अस्थिरता बरकरार रहेगी और उससे मुक्ति केवल अध्यात्म ही दिला सकता है। इसलिए हम विज्ञान की ओर तो बढ़ें, विज्ञान की ओर अपने कदम बढ़ाएं परन्तु साथ साथ अध्यात्म की ओर भी अग्रसर हों ऐसा प्रयास होना चाहिए। हमारी पढ़ाई नई होनी चाहिए और आस्था पुरानी होनी चाहिए। जब हमारा ज्ञान नया होगा, ज्ञान नवीन होगा और हमारी आस्था पुरानी होगी तो हम समृद्ध भी बनेंगे, हम शांत भी बनेंगे और ऐसे ही हम भारत को विश्व गुरु बना सकते हैं।
अध्यात्म का महत्व हम एक कथा से समझ सकते हैं। एक बार की बात है एक पिता अपने बेटे को एक संत के पास लिवा लाए और संत से कहा कि ये मेरा पुत्र है और मुझे बहुत सुनाता है कि अध्यात्म से इतना क्यों जुड़ते हो, क्या होता है सत्संग, इतना समय क्यों ख़राब करते हो, इसकी जगह और कुछ करो। पूरी बात सुनने के बाद संत के पूछने पर बेटे ने कहा – मैंने कुछ गलत कहा क्या, इतना समय यदि और किसी कार्य में लगाया होता तो देश का कितना विकास हो सकता था। इस पर संत ने पूछा – तुम क्या करते हो तो उसने कहा मैं इंजीनियर हूँ देश का विकास करता हूँ। संत ने पूछा – तो क्या तुम अपने समय का ख्याल रखते हो ? बेटे ने जवाब दिया – बिलकुल ! एक एक मिनट का ख्याल रखता हूँ। तब संत ने कहा – सोते हो कि नहीं ! बेटे ने जवाब दिया – बिल्कुल सोता हूँ ‘8 घंटे की अच्छी नींद लेता हूँ’। संत ने कहा क्या ये समय बर्बाद नहीं है ? यह भी तो समय बर्बाद ही है।
सोचो इतनी देर में यदि तुम कार्य करते तो कितना देश का विकास कर सकते थे, बहुत कुछ कर सकते थे तब उसने उत्तर दिया – यदि मैं सोऊंगा नहीं तो मुझे कार्य करने की शक्ति कैसे आएगी, सोना कोई समय बर्बाद थोड़ी है। सोने से तो कार्य करने की शक्ति आती है और ऊर्जा क्रियान्वित होती है। संत ने कहा कि जिस प्रकार से जब तुम सोते हो तो वह सोना समय बर्बाद नहीं है अपितु कार्य करने की शक्ति को ग्रहण करना है इसी प्रकार से जब ये सत्संगी भगवान की पूजा करते हैं, आराधना करते हैं तब वह समय बर्बाद नहीं होता अपितु धर्म, कर्म, कार्य करने की शक्ति, ऊर्जा क्रियान्वित होती है। जब हम अध्यात्म में लगे होते हैं तो वह समय बर्बाद नहीं होता है, हम उस समय अपने मन को शांत कर रहे होते हैं। इन धार्मिक कार्यों से क्या होता है यदि हम किसी से पूछें तो ज्यादातर लोगों के पास जवाब नहीं होते, लेकिन धार्मिक कार्यों का महत्त्व यह है कि इन्हें करने से हमारे मन को शांति मिलती है तथा वह शांति मिलती है जो हमें कहीं और नहीं मिल सकती। हम कुछ भी कर लें सुख तो हमें मिल जाएगा परन्तु वह विषय सुख होगा और उस सुख से यदि हम ऊपर उठ जाएँ तो उसी को शांति कहते हैं जो हमें अध्यात्म ही दिला सकता है।