घुमक्कड़ी का भी अपना एक अलग ही आनन्द है। एक ऐसी लत जो लग जाय तो छूटनी मुश्किल। हाल ही में इसकी तलब फिर उठी, तो हम लोग निकल पड़े छत्तीसगढ़ की ओर। हमारे मित्र संदीप गुप्ता जी, अम्बिकापुर के साथ बातचीत में मैनपाट का नाम बताया। मेरे लिये यह नाम एकदम नया था। पता चला कि अभी तक लगभग पर्दे में रहे इस पर्वतीय स्थान में खूबसूरत वादियाँ, घने जंगल, झरने, जलप्रपात, मनोहारी दृश्य और कुछ नदियों के उद्गम स्थल भी हैं।
मैनपाट दो शब्दों से मिलकर बना है— मैन मतलब मिट्टी और पाट का अर्थ होता है प्रकार। यहाँ का मौसम वर्ष भर सर्द रहता है। ख़ासकर सर्दी के मौसम में यहाँ पाला पड़ता है, जो जमने पर बर्फ की चादर बिछी होने का अहसास कराती है। सर्दियों में मैनपाट की प्राकृतिक सुंदरता निखर उठती है। इसीलिये ठंड का मौसम यहाँ घूमने के लिए सबसे उपयुक्त है। इसी कारण इस छोटे क़स्बे को जो कि आदिवासी और तिब्बती संस्कृति का अद्वितीय केन्द्र है “मैनपाट” को छत्तीसगढ़ का शिमला के नाम से जाना जाता है। कश्मीर, शिमला और मनाली जैसे हिल स्टेशनों के बारे में तो सभी जानते हैं लेकिन मैनपाट के बारे में लोगों को खास जानकारी नहीं है।
मैकल पर्वत के बीच से होकर गुजरते टेढ़े मेढ़े रास्ते और पहाड़ियों से नीचे घाटी के भव्य नजारे देखते ही बनते हैं। छत्तीसगढ़ का हिल स्टेशन कहे जाने वाले मैनपाट में ऐसी कई जगहें हैं जो आपको रोमांच से भर देंगी।
रेणुका और माण्ड नदियों के उद्गम स्थल मैनपाट क्षेत्र में ही हैं। यह पोमेरेनियन नस्ल के कुत्तों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ कूट्टू की खेती बड़े पैमाने पर होती है, जिसके पौधों पर सफ़ेद फूल खिलने पर दूर तक सफ़ेद चादर बिछी होने का अहसास होता है। कूट्टू को फलाहारी भोजन माना जाता है और उपवास के दौरान इसके आटे से व्यंजन बनाये जाते हैं।
प्राकृतिक सौन्दर्य और खनिज सम्पदा से धनी मैनपाट इतना उपेक्षित रहा है कि इसकी बसावट को लेकर कोई अधिकृत दस्तावेज उपलब्ध नहीं है। सन 1962 तक यह किसी गॉंव की तरह ही था। तिब्बत में चीन के क़ब्ज़े के बाद सन 1962-63 में हज़ारों तिब्बती बौद्धों ने भारत में शरण ली। तब इनमें से लगभग एक हज़ार पांच सौ लोगों के लिये भारत सरकार ने यहाँ तीन हज़ार एकड़ ज़मीन आवंटित की थी। तभी से यह एक क़स्बे का आकार लेने लगा। यहाँ तिब्बतियों के सात कैम्प हैं। तिब्बतियों के मकान, घरों के सामने लहराते झण्डे और बौद्ध मठ-मन्दिर अनायास ही तिब्बत की याद दिला देते हैं। इस कारण “मैनपाट” को “छत्तीसगढ़ का तिब्बत” भी कहा जाता है।
महामाया मंदिर, अम्बिकापुर — सरगुजा वासियों की आराध्य देवी महामाया की महिमा अपरंपार है। इस मंदिर में माँ की दो मूर्तियां विराजमान हैं। यहाँ छिन्नमष्तिका माँ के दिव्य शक्ति के कारण लोग श्रद्धा भाव से खिंचे चले आते हैं। माँ महामाया का नाम अंबिका देवी है। इसी आधार पर सरगुजा जिला मुख्यालय का नामकरण अंबिकापुर रखा गया है। यहाँ माता का शरीर (धड़) विराजमान है जबकि बिलासपुर के रतनपुर स्थित मंदिर में माँ का शीश है। ऐसी मान्यता है कि इन दोनों स्थानों में से एक स्थान पर किया दर्शन अधूरा होता है। अतः दोनों स्थानों पर दर्शन करने से पूजा पूर्ण मानी जाती है। कुँवार के नवरात्र में माँ महामाया के सिर का निर्माण राजपरिवार के कुम्हार करते हैं। चैत्र और शारदीय नवरात्रि के अवसर पर यहाँ भक्तों का ताँता लगा रहता है। बताते हैं कि महामाया और समलाया दोनों ही मंदिरों में देवी को जोड़े में रखना था। इसलिए सरगुजा के तत्कालीन महाराज रामानुज शरण सिंह देव की माँ और महाराजा रघुनाथ शरण सिंह देव की पत्नी भगवती देवी ने अपने मायके मिर्जापुर से अपनी कुलदेवी माता विंध्यवासिनी जी की मूर्ति की स्थापना इन दोनों मंदिरों में करायी। तब से महामाया और समलाया के बगल में विंध्यवासिनी देवी जी को भी पूजा जाता है।
छोटा तिब्बत – मैनपाट में तिब्बतियों की बस्ती है, जिसके कारण मैनपाट को छोटा तिब्बत भी कहा जाता है। तिब्बत के वातावरण से मिलते जुलते मैनपाट में तिब्बती कैंप बसाया गया था। यहाँ पीढ़ियों से रह रहे तिब्बती अपनी संस्कृति और परंपरा के अनुसार
मैनपाट की पहचान बन गये हैं।
मेहता प्वाइंट – यह स्थल एक सुन्दर लैण्ड स्केप की तरह है। यहाँ से सूर्योदय एवं सूर्यास्त के दृश्य अत्यंत मनोहारी दिखाई देते हैं। यहाँ एक कैम्प साइट भी है, जहाँ पर अपने टेण्ट लगा सकते हैं। यहाँ किराये पर भी टेण्ट उपलब्ध हैं।
टाइगर प्वॉइंट – मैनपाट में टाइगर प्वॉइंट प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। यहाँ देखने के लिये हरे भरे जंगल और एक जलप्रपात है। आमतौर पर झरनों को नीचे से देखना अत्यंत दुर्लभ होता है, लेकिन इस झरने का नजारा पर्यटक सीढ़ियों से नीचे उतरकर देख सकते हैं। हरे भरे जंगल के बीच के शांत वातावरण में चिड़ियों की चहचहाहट और बंदरों की उछल कूद अत्यंत आनंदित करती है।
बौद्ध मठ - मैनपाट अपने बौद्ध मठों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ चार मठ हैं - इनमें से एक में गौतम बुद्ध की 20 फिट ऊँची आकर्षक प्रतिमा है। इस मूर्ति को नेपाल और भूटान के कारीगरों ने मैनपाट की बाक्साइट मिश्रित मिट्टी से बनाया था। बुद्ध पूर्णिमा पर यहाँ विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
जलजली प्वॉइंट - जलजली प्वॉइंट को दलदली प्वॉइंट भी कहते हैं। यह मैनपाट में हरे भरे जंगलों के बीच में स्थित है। यह देखने में भले ही साधारण सा लगे पर वास्तव में अद्वितीय स्थानों में से एक है। यह एक असामान्य भूमि की सतह है जिसमें ट्रैम्पोलिन की तरह उछाल है। इस कारण कूदने पर ज़मीन हिलती हुई दिखती है। इस कारण इसे उछलती हुई भूमि के रूप में भी जाना जाता है। यकीन मानिये यहाँ पहुँच कर आप इस अनुभव को लेने के लिये उछल कूद करने पर विवश हो जायेंगे।
उल्टा पानी - मैनपाट से कुछ दूर स्थित इस स्थान का असली नाम बिसर पानी है। यहाँ एक ऐसी जगह है जहाँ पानी ढलान की ओर नहीं बल्कि चढ़ाई की ओर बहता दिखाई देता है। इस स्थान पर कई अनुसंधान कर्ता और विशेषज्ञ आये लेकिन सभी का अलग-अलग मत है। कुछ का मत है कि यह केवल एक दृष्टि भ्रम, तो कुछ लोगों का कहना है कि गुरुत्वाकर्षण बल अधिक है। कुछ लोगों का कहना है कि यहाँ लगभग 185 मीटर के दायरे में चुम्बकीय क्षेत्र मौजूद है।
सरभंजा जलप्रपात - माण्ड नदी चट्टानों से गिरकर इस प्रपात की रचना करती है।
कैलाश गुफा - चारों ओर फैली हरियाली, पानी की नन्हीं बूँदों की बौछारों के बीच “गुफा" और उसके भीतर बाहर शिवलिंग…………ऐसे अद्भुत दर्शन से चूकियेगा नहीं….! हरे भरे जंगल एवं प्राकृतिक सुषमा के बीच पहाड़ी चट्टानों को तराशकर बनायी गयी "कैलाश गुफा" प्रकृति प्रेमियों और धार्मिक जनों के लिए एक अति मनोरम स्थल है। शिवभक्तों के लिए यह एक पूजनीय स्थल है। कैलाश गुफा को राट गुफा और छोटा बाबा धाम के नाम से भी जाना जाता है। कैलाश गुफा का सौंदर्य अनुपम है। गुफा के पास बाघों की मूर्ति, नंदी बैल, हाथी की मूर्ति फव्वारे और पौधे आदि हैं, जो गुफा की सुंदरता और आकर्षण को और अधिक बढ़ा देते हैं। गुफा में प्रवेश करने पर आप एक बड़े हाल में पहुँचेंगे - सामने शिवलिंग है जहां आप जलाभिषेक कर सकते हैं। यहाँ के वातावरण में आप सहज ही धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत हो जायेंगे। यहाँ पर दो शिवलिंग हैं, एक गुफा के ऊपर और दूसरा उसके ठीक नीचे गुफा में शिवलिंग है। इस स्थान पर गहिरा गुरू ने तपस्या की थी, इसलिए इसे संत गहिरा गुरू की तपोभूमि भी कहते हैं।
अलकनंदा जलप्रपात - कैलाश गुफा के समीप में अलकनंदा जलप्रपात है, जो कि पर्यटकों और शिवभक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस जलप्रपात की ऊँचाई लगभग 30 फ़ीट है।
मछली प्वॉइंट - मैनपाट में मछली नदी के किनारे यह एक अत्यंत सुंदर परिदृश्य वाला स्थान है। यहाँ पहाड़ियों के बीच बहती नदी झरना बनाती है, जब कि एक जलधारा सीधे ऊँची चट्टानों से नीचे गिरती है। मछली नदी और मछलियों की बहुतायत होने के कारण इस स्थान को “मछली प्वॉइंट" कहा जाता है। बरसात के मौसम में इस स्थान की ख़ूबसूरती देखते ही बनती है।
ठिनठिनी पत्थर - मैनपाट से अम्बिकापुर के रास्ते में छिन्दवालों गाँव में सैकड़ों पत्थरों का एक समूह है। इन पत्थरों के बीच लगभग 6 फ़ीट का एक रहस्यमयी पत्थर है। काले पत्थरों के बीच स्थित इस धुँधले सफेद रंग के पत्थर की स्थानीय लोग पूजा करते हैं। इस पत्थर को किसी ठोस चीज़ से ठोकने पर धातु को पीटने के जैसी आवाज़ आती है। खास बात यह है कि इसके चारों ओर से अलग-अलग धातु की आवाज़ सुनाई देती है। किसी स्थान पर पर ठोकने पर स्कूल की घण्टी की ध्वनि आती है तो कहीं पर पीतल के बर्तन को पीटने जैसी आवाज़ें भी आती हैं। इसको ठोकने पर अलग-अलग प्रकार की ध्वनि क्यों निकलती है ? यह आज भी रहस्य बना हुआ है।
परपटिया प्वॉइंट - यह मैनपाट के पश्चिमी छोर पर स्थित है। यहाँ से बन्दर कोट की ऊँची दुर्गम पहाड़ी, रक्समाड़ा की प्राकृतिक गुफा, जनजातीय आस्था का प्रतीक दूल्हा-दुल्हन पर्वत, बनरई बांध, श्याम घनघुट्टा बांध के साथ ही “मेघदूतम" की रचना स्थली रामगढ़ पर्वत दिखाई देते हैं। इस स्थान से सूर्यास्त देखना एक सुखद अनुभव है।
दरोग़ा झरना- मैनपाट से 6 किमी दूरी पर यह एक आकर्षक पर्यटन स्थल है।
एलीफ़ेंट प्वॉइंट - जमदरहा नामक पहाड़ी नदी इस झरने को बनाती है। घनघोर जंगल के बीचो बीच स्थित इस झरने में वर्ष भर पानी बहता रहता है।
तातापानी - यह छत्तीसगढ़ के साथ साथ भारत के लिये भी एक रहस्यमयी जगह से कम नहीं है। तातापानी के बारे में कहा जाता है कि यहाँ प्राकृतिक रूप से गर्म पानी निकलता रहता है। यहाँ कुंड का पानी वर्ष भर गर्म रहता है। यहाँ तक कि मानसून में भी पानी गर्म ही रहता है। इस कुंड का पानी औषधीय गुणों से भरपूर भी माना जाता है। यहाँ भगवान शिव की एक विशाल मूर्ति भी है।
कब जायें- गर्मी के मौसम में सर्दी का अनुभव कराने वाले इस छोटे से हिल स्टेशन पर वर्ष पर्यन्त कभी भी जा सकते हैं। गर्मी के मौसम में जहां हल्की ठंड होती है, वहीं मानसून के दौरान यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य और भी निखर उठता है।
आस-पास - मैनपाट और अम्बिकापुर के आस-पास कई दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं…..
डाँगरी वॉटर फाल- अम्बिकापुर से लगभग 90 किमी दूर स्थित है।
खुड़िया रानी गुफा -3000 फ़ीट ऊँचाई पर स्थित 100 मीटर लंबी गुफा में विराजी है, 200 फ़ीट ऊँची माँ खुड़िया रानी की प्रतिमा। गुफा के अंदर निरंतर बहती जलधारा से हर मौसम में ठंड का अहसास होता है।
सेदम झरना - अम्बिकापुर- रायगढ़ मार्ग पर 45 किमी की दूरी पर सेदम नामक गाँव के पास पहाड़ियों के बीच एक सुंदर झरना प्रवाहित होता है। झरने वाले स्थान पर एक जल कुंड निर्मित है। यहाँ पर एक शिव मंदिर भी है। इस झरने को "राम झरना" के नाम से भी जाना जाता है।
कैथोलिक चर्च कुनकुरी - अम्बिकापुर से लगभग 100 किमी दूर जिला जशपुर में स्थित है। कुनकुरी का कैथोलिक चर्च एशिया का दूसरा सबसे बड़ा चर्च है। इस चर्च में एक साथ दस हज़ार लोग प्रार्थना कर सकते हैं।
रामगढ़ - रामगढ़, अम्बिकापुर के ऐतिहासिक स्थलों में से सबसे प्राचीन है। भगवान राम एवं महाकवि कालिदास से सम्बन्धित होने के कारण शोध का केन्द्र बन चुका है।
कैसे पहुँचें -
वायु मार्ग - निकटतम एयरपोर्ट अम्बिकापुर, दरिमा हवाई अड्डा है। रायपुर का स्वामी विवेकानन्द इण्टरनेशनल एयरपोर्ट यहाँ से 381 किमी दूर और रांची का बिरसा मुंडा एयरपोर्ट 298 किमी दूर है।
रेल मार्ग - मैनपाट होते हुए कोई रेलवे लाइन नहीं है। निकटतम रेलवे स्टेशन अम्बिकापुर यहाँ से 55 किमी दूर है। विश्रामपुर 74 किमी और अनूपपुर रेलवे स्टेशन 175 किमी दूर स्थित है।
सड़क मार्ग - अम्बिकापुर से मैनपाट जाने के लिये दो रास्ते हैं, एक रास्ता अम्बिकापुर-सीतापुर रोड होकर जबकि दूसरा ग्राम दरिमा होते हुए जाता है। अम्बिकापुर से मैनपाट निजी वाहन या टैक्सी से पहुँच सकते हैं। अम्बिकापुर में मैनपाट जाने के लिए टू व्हीलर किराये पर उपलब्ध हैं।
मैनपाट दिल्ली से लगभग 1176 किमी, रायपुर से 366 किमी, राउरकेला से 255 किमी और कोरबा से 202 किमी दूर स्थित है।
कहाँ ठहरें -
मैनपाट में पर्यटकों के ठहरने के लिये छत्तीसगढ़ पर्यटन निगम की ओर से शानदार दो रिसोर्ट बनाये गये हैं। साथ ही वन विभाग के विश्राम गृह के अलावा हर स्तर के होटल उपलब्ध हैं। यहाँ तिब्बती समुदाय के लोगों द्वारा होमस्टे की भी सुविधा दी जाती है, जिससे आप यहाँ की नैसर्गिक सुंदरता के साथ साथ तिब्बती संस्कृति से भी समीप से जुड़ सकते हैं।