मैं तकरीबन 14 साल से ध्यान कर रही हूं, जो जीवन यात्रा नैविगेट करने में यह काफी प्रभावी रहा है। ध्यान करना ना केवल चिंता और अवसाद को कम करने में मदद कर सकता है, इसके नियमित अभ्यास से अटेंशन स्पैन भी बढ़ता है और मेरे लिए तो यह खुशियों की चाबी है। आपको शुरुआत में यह समझने में परेशानी हो सकती है कि यह सीधे आपके रोजमर्रा के कामों या निजी जीवन को कैसे प्रभावित कर रहा है। यह भी एक अभ्यास है जिस पर टिके रहना कठिन हो सकता है परंतु अगर आप अनुशासन से इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएंगे तो आप स्वयं को बेहतर समझने लगेंगे। स्व-प्रबंधन आसन हो जाने से समय प्रबंधन, परियोजना प्रबंधन, लोग प्रबंधन इत्यादि काफी सरल और आसान हो जाएंगे। जब आप पहली बार ध्यान करना शुरू करते हैं
तो ऐसा महसूस हो सकता है कि आप कुछ नहीं कर रहे हैं, कुछ नहीं हो रहा, कोई बदलाव नहीं दिख रहा, मैं कितना समय दूँ इत्यादि। तीन मार्गदर्शक प्रश्न जो मेडिटेशन अभ्यास करते समय मैं स्वयं से पूछती हूँ :
इस बात पर ध्यान दें कि आपका मन कहाँ भटकता है और इसे अपनी सांसों पर फिर से केंद्रित करने का प्रयास करें। शुरुआत प्राणायाम से कर सकते हैं। इस बारे में सोचें कि आप किस मूड में हैं। इसे तुरंत से बदलने की कोशिश न करें, बस मानसिक रूप से ध्यान दें कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं। अपने आप को याद दिलाएं कि आप ध्यान क्यों करना चाहते थे। इन सवालों के जवाब आपको माइंडफुल बने रहने में मदद करेंगे।
कुछ बेसिक सवाल जो अक्सर मुझसे पूछे जाते हैं :
१) सचेतन (माइंडफुल) होने का क्या अर्थ है ?
जागरूक, सचेतन, माइंडफुल होने का मतलब है कि आपको आंतरिक और बाह्य रूप से क्या हो रहा है, इसके बारे में जागरूक हैं। आपके अपने शरीर और मन में क्या चल रहा है, इसके बारे में जानते हैं। आप जागरूक अवस्था में सोच समझ कर भावनात्मक प्रतिक्रिया करते हैं। आप अपने मन में चल रहे विचारों से अवगत हैं। और ध्यान में जब आप रुक कर अपने आप के साथ समय बिताते हों तब आप अपने विचारों को देख, समझ और सुधार सकते हैं ।
२) ध्यान को कैसे अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाऊँ ?
परिणाम देखने के लिए आपको ध्यान देना शुरू करना होगा। शुरू में आप चाहें तो पांच मिनट भी ध्यान लगाने की जरूरत नहीं है। बस पूरे दिन माइंडफुल रहे कि आप क्या कर रहे हैं, क्या सोच रहे हैं। छोटे क्षण जैसे आपके दांतों को ब्रश करना या कपड़े पहनते वक्त, घर के छोटे-मोटे काम करते वक्त बस जागरूक रहें। निर्देशित ध्यान के एक या दो मिनट करने से भी काफी फर्क पड़ेगा। अधिकांश शुरुआती लोग जो छोटी शुरूआत करते हैं। वे प्रतिदिन ध्यान करने की मात्रा में वृद्धि करते जाते हैं। आप स्वाभाविक रूप से अधिक समय इसे करना चाहेंगे ।
३) क्या मैं ध्यान करते समय संगीत बजा सकता हूँ ? क्या मैं अगरबत्ती जला सकता हूँ ?
ये सारे बाहरी इंतजाम कर सकते हैं। कोई रोक नहीं है, पर अपने आप से पूछे - क्या स्वाभाविक रूप से जो भी आवाजें आ रही हैं, उनके साथ बैठने का अनुभव असहज है ? क्या संगीत के बिना बैठना बहुत उबाऊ है ? आप किस पर ध्यान करना चाहते हैं या फिर आप एक सुखद डिस्ट्रेक्सन खोज रहे हैं। ध्यान का अंतिम लक्ष्य आत्म निर्भरता है। हम बाहरी उद्दीपन पे जितना कम डिपेंड करें उतना हमारे लिए बेहतर होगा। अपनी आत्म शक्ति पर ध्यान दें।
4) क्या मुझे नीचे बैठना है ?
आप आंख खोल कर, बंद करके, बैठ कर, चलते समय, अपना काम करते वक्त - हर समय ध्यान में हो सकते हैं। जो भी करें बस ध्यान से करें। आत्म जागरुकता की यह एक आदत आपके ध्यान अनुभव को बेहतर करती जायेगी।
5) ध्यान के बाहर मुझे अपने जीवन पर क्या प्रभाव दिखाई देंगे ?
समय के साथ आप रिएक्ट नहीं रेसपोंड करने की क्षमता विकसित करेंगे। जब हम माइंडफुल नहीं होते हैं तो हम माइंडलेस तरीके से व्यवहार करते हैं। ध्यान का अभ्यास यह पहचानने का अभ्यास है कि आप कैसा महसूस करते हैं और अपने नेगेटिव (या पॉजिटिव भी) इमोशंस के पूरी तरह से कंट्रोल में आए बिना आप कैसे माइंडफुल प्रतिक्रिया करते हैं। चाहे जो करें - ध्यान में रहकर, ध्यान से करें। कोशिश करते रहें, पढ़ते रहें, सीखते रहें, धन्यवाद।