मानव जीवन में एकता और शक्ति की अधिक आवश्यकता होती है। इस संसार रूपी युद्ध क्षेत्र में सफलता उसी को मिलती है जिसके पास शक्ति है। मनुष्य ने स्फूर्तिवान और शक्तिवान बनने के लिए अन्य साधनों की खोज की है। मित्रता भी इसी प्रकार का एक साधन है जो मनुष्य को शक्तिवान बनाने में सहायक होती है और उसे संसार रूपी युद्ध क्षेत्र में विजयी बनाने की क्षमता प्रदान करती है। वैसे भी मित्रता एक गुण है, जिसे अपनाने में सभी को सदैव तत्पर रहना चाहिए। जिस समाज में मनुष्यों के ह्रदय में इस गुण का विकास होता है वह समाज और देश शीघ्र ही उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो जाता है।
मनुष्य में जन्म से ही आपस में मिलजुल कर रहने की आदत होती है। मनुष्य ही नहीं पशु - पक्षी भी मिल जुल कर रहते हैं और उन में यह गुण स्वाभाविक होता है। मानव जीवन बहुत ही संघर्षमय है। मित्रता मनुष्य को शक्ति देती है जिससे वह अपने जीवन युद्ध में बड़े ही सुख और शांति के साथ विजय प्राप्त करता है। मित्रता मनुष्य के हृदय को जोड़ती है और प्राणों के तार मिलाती है। यही कारण है कि मित्रता की स्थिति में मनुष्य एक दूसरे के सुख - दुःख में उसका साथ देता है।
जिस प्रकार सत्य, धर्म, बुद्धि, संस्कार मनुष्य को पाप से बचाते हैं उसी प्रकार सच्चा मित्र कठिन समय में अपने मित्र को संकट से उबारता है। सच्चा मित्र एक शिक्षक की भांति होता है। जिस प्रकार शिक्षक अपने शिष्य को सही मार्ग की ओर ले जाता है उसी प्रकार सच्चा मित्र अपने मित्र को पाप के गर्त से दूर लेकर आता है। जीवन के उतार - चढ़ाव में, निर्माण कार्य में मित्र जितना सहायक हो सकता है, उतना शायद ही दूसरा कोई हो। इसलिए मित्र बनाते समय भी बड़ी सतर्कता बरतनी चाहिए। पाश्चात्य संस्कृति के विनाशकारी प्रभाव से आज हमारे समाज में चरित्रहीनता का विश फैल गया है, इसलिए हम लोगों को मित्र के चुनाव में बड़ी सतर्कता बरतनी चाहिए और मित्र बनाते वक्त उसके आचरण पर अवश्य दृष्टि डाल लेनी चाहिए जिससे बाद में पछताना न पड़े। हमारे देश में भगवान कृष्ण ने सुदामा जी के साथ जो आदर्श मित्रता स्थापित की थी वैसा अन्य किसी देश में नहीं देखने को मिलता है। प्रभु श्री राम जी और सुग्रीव की मित्रता आज भी स्मरणीय है। मनुष्य के जीवन में मित्रों की अधिक उपयोगिता है। मित्र के अभाव में जीवन सूना और नीरस बन जाता है। वह मनुष्य बहुत ही भाग्यशाली है जिसका कोई सच्चा मित्र है। वास्तव में अच्छा मित्र बड़े ही पुण्य करने से ही मिलता है। मित्रता हमारे जीवन का वह सबसे महत्वपूर्ण संबंध है, जिसका चुनाव हम स्वयं करते हैं और जो वाकई में हमारे जीवन की पूर्णता का द्योतक है।