श्री गीता जी को बहुत बार पढ़ने का उपक्रम किया, सुखद अनुभूति होती रही, कुछ को आत्मसात करने का प्रयास हुआ और कुछ समझ नहीं आया। कालांतर में जब दोहा लिखने की समझ आयी और
शौक चर्राया तो एक विचार कौंधा कि श्री गीता जी का भावानुवाद दोहों में किया जाय। परमपिता परमेश्वर के श्री मुख से उत्पन्न वाणी के समक्ष हम सभी नतमस्तक हैं। इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड में हमारा अस्तित्व सापेक्षता के सिद्धांत के अनुसार नगण्य है, हम सब की भूमिका सिर्फ एक गिलहरी के
समान है।
श्री गीता सांसारिक, आध्यात्मिक, लोक एवं परलोक कल्याण से हमारा परिचय तो कराती है,
साथ ही साथ यदि हम प्रबंधन के दृष्टिकोण से देखें तो यह मैनेजमेंट के समस्त पहलुओं से भी
साक्षात्कार कराती है। जब हम अपने प्रोफेशनल लाइफ में किसी भी प्रोजेक्ट पर कार्य करते हैं तो
हम मार्केट सर्वे करते हैं, मार्केट इनफार्मेशन इकट्ठा करते हैं, मार्केट प्लेयर्स यानी कि प्रतियोगियों
के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं तत्पश्चात SWOT Analysis करते हैं। अपने व प्रतियोगी
की शक्तियों एवं कमजोरियों का विश्लेषण करते हैं, अवसरों को तलाशते और उन अवसरों के
साथ आने वाले जोखिमों का चिंतन कर रास्ता निकालते हैं और उस विचार या प्रोजेक्ट का सफलतापूर्वक निष्पादन करते हैं ।
श्री गीता का प्रथम अध्याय अपने प्रतियोगियों को जानने का उपक्रम है जिसमें अर्जुन
ने श्री कृष्ण से अपने रथ को दोनों सेनाओं के मध्य ले चलने का अनुरोध किया और
यह जानना चाहा कि हमारे सम्मुख कौन-कौन से प्रतियोगी हैं। अर्जुन के मन में
विभिन्न प्रकार की शंकाओं ने जन्म लिया। जिस प्रकार किसी भी विचार के
निष्पादन के पूर्व शंकायें उत्पन्न होती हैं और उन शंकाओं के समाधान हेतु
हम किसी विशेषज्ञ से राय प्राप्त करते हैं, उसी प्रकार अर्जुन के मन में
शंका उत्पन्न होने पर भगवान श्री कृष्ण ने उनकी समस्त जिज्ञासा
का समाधान किया और कार्य के निष्पादन के लिये प्रेरित किया
और जिसका निष्पादन सफलतापूर्वक हुआ।
हे संजय ! अब यह बता, कैसा है सब दृश्य ।
धर्मक्षेत्रे-कुरुक्षेत्रे, कैसे द्रोणा-शिष्य ।।
दुर्योधन ने है कहा, गुरु से जाकर पास ।
देखें युद्धक-व्यूह को, द्रुपद-पुत्र संत्रास ।।
भीमा-अर्जुन सम वहाँ, कई अनेकों वीर ।
महारथी युयुधान के, तरकस में हैं तीर ।।
धृष्टकेतु, चेकितान व, नरपुंगव हैं वीर ।
काशिराज, पुरुजित सबै, राखे सब हैं धीर ।।