बचपन का अनुभव (childhood experience) - अर्जुन ने बचपन से ही बड़ेजनों का सम्मान करना, शिक्षकों के प्रति समर्पण; अपने सगे-संबंधियों के प्रति प्रेम और क्षमा का भाव रखना सीखा था। उन्होंने, बचपन में अपने पिता पांडु की अकाल मृत्यु को झेला था जिसने भविष्य के बारे में अनिश्चितता का माहौल बना दिया था। उन्होंने अपने पिता के बड़े भाई धृतराष्ट्र को पिता स्वरूप देखना चाहा परंतु वे पक्षपाती थे, उनपर सदा ही अपनी मां और गुरूजनों की भारी उम्मीदों का भार रहा।
मानसिक संरचना (psychic structure) - अर्जुन में प्रबल बड़प्पन और गर्व के लक्षण दिखते हैं, जो शायद भीष्म, विदुर और द्रोण जैसे महान अभिभावक के व्यक्तित्व के कारण हैं। साथ ही, उनके जीवन में एक दुविधाग्रस्त अभिभावकीय छवि भी है, जो उनके अंधे ताऊजी धृतराष्ट्र हैं।
संघर्ष (conflict) - अर्जुन मुख्य रूप से दो परस्पर विरोधी कार्यवाहियों के बीच उलझे हुए हैं, जो उसके मानस को युद्ध के मैदान में बदल देते है। युद्ध में बने रहने से उन्हें अपने परिजनों के खिलाफ युद्ध करना होगा, जो उनके नैतिक मूल्यों के अनुकूल नहीं है और इसमें उनके अपनों का विनाश शामिल हो सकता है। और यदि अर्जुन युद्ध से पीछे हट जाते हैं, तो उन्हें अपमान का जीवन जीना होगा और शायद अपने कर्तव्य से विमुख होने का आजीवन अपराध बोध भी सहना पड़ेगा।
संघर्ष का समाधान (conflict resolution) - अर्जुन का संघर्ष आत्म-ज्ञान विकसित करने के साथ हल हो जाता है। कृष्ण 3 गुणों के बीच मानसिक संघर्ष का ज्ञान देकर इसमें सहायता करते हैं और अर्जुन को उनसे ऊपर उठकर स्थितप्रज्ञ की स्थिति में आने के लिए कहते हैं। हालाँकि, अर्जुन प्रारंभिक चरणों के दौरान कुछ संदेह व्यक्त करते हैं, जो संभवतः अंतर्मुखता से संबंधित हों, अंततः वे आत्मसाक्षात्कारी आत्मा की तरह उचित कर्म का मार्ग अपनाते हैं।