बाल साहित्य एक समस्त पद है जो बाल और साहित्य दो शब्दों से मिलकर बना है। बाल साहित्य बालकों बालिकाओं का साहित्य है, बाल पाठकों के लिए स्वीकृत साहित्य को ही हम बाल साहित्य कहेंगे। देखा जाये तो साहित्य का निर्माण बड़ों को ध्यान में रखकर किया जाता है और बच्चे उसी से अपना मनोरंजन कर लेते हैं, किन्तु बहुत सारी परिस्थितियों में देखा गया कि बच्चों के मनोरंजन के लिए भी साहित्य का निर्माण किया जाना चाहिए, यदि हम संस्कृत साहित्य पर दृष्टि डालें तो हमें पता चलेगा की बालकों को शिक्षा देने के लिए विष्णु शर्मा ने पंचतंत्र की रचना की जो मनोरंजन के साथ-साथ उन्हें ज्ञान भी प्रदान करता है और आज भी उसका हिंदी अनूदित रूप बच्चों में लोकप्रिय है।
आज जीवन को जोड़ने वाले बाल साहित्य की अत्यधिक आवश्यकता है जो सामयिकता और स्थितियों के परिपेक्ष्य में लिखा गया हो। बाल साहित्य में बच्चों की रुचियों, ज़रूरतों भावनाओं और संवेदनाओं को भी समझने की आवश्यकता है। आज बाल साहित्य बच्चों के मनोरंजन तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि उनकी भावनाओं को आगे बढ़ाने, ज्ञान को समृद्ध करने यथार्थ बोध को समझने सरल और सुबोध भाषा शैली में रचित सृजनात्मक चेतना को प्रेरित कर बालक में आशावादी दृष्टिकोण एवं आत्मनिर्भरता की भावना के विकास में सहयोग देने वाला साहित्य ही बाल साहित्य कहलाने लगा है।
बालकों के भविष्य निर्माण में घर के वातावरण के साथ-साथ बाल साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका रही है मुंशी प्रेमचंद लिखते है- "हर मनुष्य को अपने बचपन की वे कहानियाँ याद होगी जो उसने अपनी माता या बहन से सुनी थीं"। बाल मन बहुत ही कोमल होता है और उस पर पड़ने वाले प्रभाव भी बहुत गहरे और स्थायी होते हैं। महात्मा गांधी के अनुसार - "सच्ची शिक्षा वह है जो बालकों की आध्यात्मिक बौद्धिक और शारीरिक क्षमताओं को अभिव्यक्त और प्रोत्साहित कर सके।" अतः बालकों के विचार भावना और संवेदना का पोषक यह साहित्य ही होता है जिसे बाल साहित्य कहा जाता है बालकों के भविष्य निर्माण उनकी रुचियों के परिष्कार में बाल साहित्य की महती भूमिका है।
वर्तमान समय में यदि हम एक संस्कारित पीढ़ी आने वाले समाज को देना चाहते हैं तो बाल साहित्य की सृजनात्मकता पर ज़ोर देना होगा। बालकों की बुद्धि पर कथाओं का गहरा प्रभाव पड़ता है और उन्हें संस्कारित करने हेतु आज के समय में ऐसी कथाओं की महती आवश्यकता है, जिनमें उनके ज्ञान को परिष्कृत एवं परिवर्धित किया जा सके। आज हमें ऐसे साहित्य की उपादेयता चाहिए जो बालकों में प्रेम, सहिष्णुता एवं आपसी सहयोग के महत्व को विकसित करें और बच्चों में उदात्त भावना का विकास करें।