डिजिटल हाउस अरेस्ट

क्या है और इससे बचाव के उपाय

        राजकुमार जैन
     एआइ विशेषज्ञ, इंदौर

 

कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए वीडियो कॉल या ऑनलाइन निगरानी के ज़रिए ‘गिरफ़्तारी’ करने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। अगर आपको ऐसे कॉल आते हैं, तो यह एक स्पष्ट घोटाला है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 धारा 63 के तहत समन को इलेक्ट्रॉनिक रूप से तामील करने का प्रावधान करती है। इसमें कहा गया है कि इलेक्ट्रॉनिक रूप से तामील किया जाने वाला प्रत्येक समन एन्क्रिप्टेड होगा और उस पर न्यायालय की मुहर या डिजिटल हस्ताक्षर की छवि होगी। इसके अलावा, बीएनएसएस की धारा 532 के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक संचार के उपयोग से या ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक साधनों के उपयोग से परीक्षण और कार्यवाही इलेक्ट्रॉनिक मोड में आयोजित की जा सकती है। लेकिन डिजिटल गिरफ़्तारी जैसा कोई प्रावधान कानून में नहीं है।

इंटरनेट और कृत्रिम बुद्धि के साथ डिजिटल युग ने हमें हैरतअंगेज सुविधाएं तो प्रदान की हैं, लेकिन इसने साइबर अपराधियों के एक नए वर्ग को भी जन्म दिया है जो परिष्कृत तकनीकी जालसाजी का उपयोग कर मासूम लोगों को ठगते हैं। साइबर खतरों के तेजी से विकसित हो रहे परिदृश्य में, सबसे खतरनाक और भयावह घोटालों में से एक “डिजिटल हाउस अरेस्ट” एक ऐसा सोशल इंजीनियरिंग घोटाला है, जिसमें साइबर अपराधी कानून प्रवर्तन अधिकारियों का छद्म रूप धारण कर फोन कॉल, ईमेल या सोशल मीडिया संदेशों के माध्यम से अपना शिकार चुनते हैं। कूटरचित दस्तावेजो और बलपूर्वक उपायों के माध्यम से लोगों की अज्ञानता और कमज़ोरियों का फ़ायदा उठाते हैं। ये घोटालेबाज आपको बरगलाने के लिए आधिकारिक रूप से यह दावा करते हैं कि आपके या आपके परिवार के किसी सदस्य के बैंक खाते, सिम कार्ड, आधार कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेन्स या अन्य पहचान पत्र का गैर कानूनी गतिविधियों में उपयोग किया गया है।

डिजिटल अरेस्ट संबंधित फ्रॉड के मामले तेजी से अपने पाँव पसार रहे हैं। पिछले महीने, नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन के एक वरिष्ठ अधिकारी से ₹55 लाख ठग लिए गए। वर्धमान समूह के 82 वर्षीय अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक एसपी ओसवाल ₹7 करोड़ की बड़ी ठगी का शिकार हो गए। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ सहित विभिन्न सरकारी एजेंसियों के उच्च पदस्थ अधिकारी होने का दिखावा करने वाले धोखेबाजों के एक समूह ने इस योजना को अंजाम दिया। इंदौर स्थित राजा रमन्ना प्रगत प्रोद्योगिकी केंद्र के एक वरिष्ट वैज्ञानिक अनिल कुमार भी इस जालसाजी के शिकार बने, अपराधियों ने अनिल और उनकी पत्नी को सात दिनों तक नकली सीबीआई और ईडी अफ़सर बनकर वीडियो कॉल पर पूछताछ की और फर्जी क्राइम ब्रांच अधिकारी राकेश कुमार ने अनिल को सीबीआई का फर्जी नोटिस भेजा और कहा कि मनी लान्ड्रिंग और मानव तस्करी में गिरफ्तारी वारंट जारी हो चुका है। आरोपितों ने सीबीआई और ईडी से प्रमाण पत्र देने का झांसा देकर अलग-अलग खातों में 71 लाख रुपये जमा करवा लिए।

आम तौर पर, यह घोटाला किसी सरकारी संस्था, जैसे पुलिस, सीबीआई या अन्य कानून प्रवर्तन संगठनों के प्रतिनिधि के रूप में किसी व्यक्ति द्वारा अनचाहे संदेश, फोन कॉल या वीडियो कॉल से शुरू होता है। घोटालेबाज दावा करता है कि आप या आपके परिवार का सदस्य मनी लॉन्ड्रिंग, कर चोरी, ड्रग या पोर्न जैसी किसी गंभीर अवैध गतिविधि में संलग्न पाया गया है। ये जालसाज अपने शिकार के मन में भय पैदा करने के लिए कई तरह के अनूठे हथकंडे अपनाते हैं। मामले की तहकीकात कर “हल” करने के लिए वो तत्काल वीडियो कॉल की मांग करते है।

कॉल पर आते ही कॉल करने वाला आपको डराने के लिए सरकारी वेशभूषा में अपराध की गंभीरता के बारे में चेतावनी देते हुए उससे जुड़े सजा के प्रावधानों के बारे में कानूनी भाषा में बढ़ा चढ़ाकर बताता है और गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहने के लिए कहता है। कॉल के दौरान, घोटालेबाज जाली पहचान पत्र या अदालती दस्तावेज दिखाकर पीड़ित को और अधिक डरा सकता है। एक बार आप डर गए तो वो आपको गिरफ्तारी की धमकी देते हुए और अधिक डराते हैं। स्थिति को अपने नियंत्रण में रखने के लिए, पीड़ितों को अक्सर वीडियो कॉल पर लंबे समय तक रहने के लिए कहा जाता है। इससे उनके शिकार किसी बाहरी सहायता या सच्चाई की जांच करने से वंचित हो जाते हैं। इनका एकमात्र उद्देश्य अपने शिकार को लूटना होता है तो ये अनुभवी अपराधी गिरफ़्तारी से बचने या जमानत के लिए तुरंत भुगतान करने के लिए दबाव बनाते हैं। आप पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए ये जालसाज एआइ जनित रोने की आवाजें निकालने या परिवार के सदस्यों के रूप में प्रस्तुत होने जैसी तकनीकों का उपयोग कर घोर संकट की मनगढ़ंत संभावना पैदा करके पीड़ित की भावनात्मक स्थिति को कमजोर बना देते हैं और आप उनकी बात मानने के लिए मजबूर हो जाते हैं। जब आप उनके सामने समर्पण की मुद्रा में आ जाते हैं तो वो मामला रफा-दफा करने में आपकी सहायता करने की पेशकश सामने करते हैं, मामले को बंद करने और ‘समझौता’ करने के बदले में आपसे एक बड़ी राशी लूटने में सफल हो जाते हैं।

देश में इस तरह के मामलों की बढ़ती तादाद देखकर गृह मंत्रालय की साइबर सुरक्षा जागरूकता शाखा साइबर दोस्त ने ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ घोटालों में वृद्धि के जवाब में एक सार्वजनिक सलाह जारी की, जिसमें नागरिकों को ऐसी धोखाधड़ी वाली योजनाओं का शिकार न होने की चेतावनी दी गई। परामर्श में स्पष्ट किया गया है कि घबराएँ नहीं, सतर्क रहें, केंद्रीय जांच ब्यूरो, पुलिस, सीमा शुल्क, प्रवर्तन निदेशालय या न्यायालय सहित कोई भी कानून प्रवर्तन एजेंसियां वीडियो कॉल पर गिरफ़्तारी नहीं करती हैं।

आम जनता को यह जानकारी होना जरूरी है कि सम्पूर्ण विश्व में कहीं भी ऐसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं है, जो ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ की अनुमति देता हो। गिरफ्तारी एक औपचारिक कानूनी प्रक्रिया है, जिसके लिए कानून प्रवर्तन अधिकारियों की भौतिक उपस्थिति की आवश्यकता होती है और सख्त कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाता है। फिर भी यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रौद्योगिकी के विकास के साथ, घोटालेबाज नकली डिजिटल गिरफ्तारी वारंट या तत्काल कानूनी कार्रवाई की धमकी जैसी रणनीति का उपयोग कर रहे हैं और आम लोग उनके झांसे में फंस भी जाते हैं।

डिजिटल गिरफ्तारी घोटालों का शिकार होने से बचने के लिए क्या किया जाना चाहिए। घोटालेबाजों द्वारा तेजी से परिष्कृत रणनीति अपनाने के साथ, सतर्क रहना और आवश्यक सावधानी बरतना आवश्यक है। ये घोटालेबाज अपने संभावित शिकार को मजबूर करने के लिए डर और तत्परता पर भरोसा करते हैं अत: सबसे पहले तो ऐसी कॉल मिलते ही घबराएं बिल्कुल भी नहीं, उत्तेजित भी ना हों और चौकस दृष्टिकोण बनाए रखें। अपनी प्रतिक्रिया देने से पहले स्थिति का शांति से आकलन करने के लिए कुछ समय निकालें। कॉल करने वाले व्यक्ति की पहचान सत्यापित करें, यदि कोई कानून प्रवर्तन एजेंसी से होने का दावा करता है, तो वीडियो कॉल पर संलग्न न हों या कोई पैसा ट्रांसफर न करें। उनकी पहचान का प्रमाण मांगें और आधिकारिक स्रोतों से क्रॉस-चेक करें। इस कॉल के दौरान व्यक्तिगत जानकारी साझा करने से बचें, कभी भी फोन या वीडियो कॉल पर संवेदनशील व्यक्तिगत या वित्तीय विवरण साझा न करें, खासकर अज्ञात नंबरों के साथ। वीडियो कॉल या चैट प्लेटफ़ॉर्म की जाँच करें, असली सरकारी एजेंसियाँ आधिकारिक संवाद या गिरफ़्तारी के लिए वाट्सएप, जूम या स्काइप जैसे एप प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग नहीं करती हैं। डर को अपने निर्णय पर हावी न होने दें। अगर आप दबाव या धमकी महसूस करते हैं, तो तुरंत कॉल काट दें और दोबारा उनकी कॉल ना उठायें।

संदिग्ध कॉल की तुरंत रिपोर्ट करें, अगर आपको कोई संदिग्ध कॉल आती है, तो तुरंत अपने स्थानीय पुलिस थाने में या राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल https://cybercrime.gov.in/ पर इसकी रिपोर्ट करें। साइबर अपराध हेल्पलाइन 1930 पर कॉल करके सहायता मांग सकते हैं। इनके अलावा भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया दल (CERT-In) https://www.cert-in.org.in/ और राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा गठबंधन: https://staysafeonline.org/ से भी संपर्क कर सकते हैं।

घोटाले के बारे में जागरूक होने और आवश्यक सावधानी बरतने से, आप शिकार बनने के अपने जोखिम को काफी हद तक कम कर  सकते  हैं